रंगपंचमी मनानेका उद्देश्य

सारणी


१. रंगोंद्वारा देवतातत्त्वका आवाहन करना

        ब्रह्मांडमें विद्यमान गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं भगवान श्रीकृष्णजी ये सात उच्च देवताएं सात रंगोंसे संबंधित हैं । उसी प्रकार मानवकी देहमें विद्यमान कुंडलिनीके सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओंसे संबंधित हैं । रंगपंचमी मनानेका अर्थ है, रंगोंद्वारा सातों देवताओंकी तत्त्वतरंगोंको जागृत कर उन्हें आकृष्ट करना एवं उन्हें ग्रहण करना । इस प्रकार सभी देवताओंके तत्त्व मानवकी देहमें परिपूर्ण होनेसे आध्यात्मिक दृष्टिसे उसकी साधना पूर्ण होती है । वह आनंदमें निमग्न होता है । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि, इन रंगोंद्वारा देवतातत्त्वके स्पर्शकी अनुभूति लेना, यही रंगपंचमीका एकमात्र उद्देश्य है । इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए रंगोंका उपयोग दो प्रकारसे किया जाता है । पहला है, हवामें रंग उडाना एवं दूसरा है, पानीकी सहायतासे एकदूसरेपर रंग डालना ।

२. रंग उडाना

        रंगपंचमीके दिन एक-दूसरेके शरीरको स्पर्श कर रंग लगानेसे नहीं; अपितु केवल वायुमंडलमें रंगोंको सहर्ष उडाकर उसे मनाना चाहिए । उस समय ‘रंगोंके माध्यमसे देवताको ब्रह्मांडमें कार्य करनेके लिए बुला रहे हैं । अवतरित होनेवाले देवताके चैतन्यस्त्रोतका स्वागत करनेके लिए रंगकणों की दरी बिछा रहे हैं ।’, ऐसा भाव रखकर प्रार्थना सहित रंग उडाने चाहिए । इससे रंग उडानेवाले व्यक्तिमें देवताके प्रति भाव बढनेमें सहायता मिलती है । साथ ही देवतातत्वोंका लाभ भी प्राप्त होता है । इस प्रकार देवताके चरणोंमें नतमस्तक होनेसे रंगपंचमी मनानेका उद्देश्य सफल होता है ।

३. रंगपंचमीके दिन हवामें रंग उडानेसे होनेवाला परिणाम

        वातावरणमें होनेवाली प्रक्रिया रंगपंचमीके दिन तेजतत्त्वामक शक्तिके कण ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह एवं आनंद का प्रवाह पृथ्वीकी ओर आकृष्ट होता है । साथ ही ब्रह्मांडसे निर्गुण तत्त्व भी पृथ्वीकी ओर आकृष्ट होता है । वातावरणमें चैतन्यके वलय कार्यरत होते हैं । आनंदका वलय निर्माण होता है । निर्गुण तत्त्व एक स्थिर वलय के रूपमें विद्यमान रहता है । हवामें उडाए गए रंगोंके माध्यमसे आनंदके प्रवाहोंका प्रक्षेपण होता है । उसी प्रकार तेजतत्त्वात्मक शक्तिके कण आनंदयुक्त ईश्वरीय चैतन्यके कण एवं कुछ मात्रामें निर्गुण तत्त्वात्मक कण वातावरणमें संचारित होते है । शक्तिके कण कुछ मात्रामें कार्यरत अनिष्ट शक्तिसे युद्ध करते हैं ।

४. हवामें सात्त्विक रंग उडानेका व्यक्तिपर होनेवाला परिणाम

        व्यक्तिके अनाहत चक्रके स्थानपर भावका वलय निर्माण होता है । इस कारण व्यक्तिके देहमें चैतन्य एवं आनंदके वलय निर्माण होते हैं । तथा कार्यरत रूपमें घूमते रहते हैं । हवामें उडाए गए रंगोके माध्यमसे तेजतत्त्वात्मक शक्तिके कण आनंदयुक्त ईश्वरीय तत्त्वात्मक कण और निर्गुण तत्त्वात्मक कण व्यक्तिकी देहकी ओर आकृष्ट होते हैं । एवं ये कण व्यक्तिके देहमें संचारित होते हैं । इस कारण व्यक्तिके देहपर आया काला आवरण दूर होता है । और उसकी ईश्वरीय तत्त्व ग्रहन करनेकी क्षमतामें वृद्धि होती है ।

५. पानीकी सहायतासे रंग डालना

        वायुमंडलमें रंग उडाना अर्थात ब्रह्मांडमें विद्यमान देवतातत्त्वकी पूजा करना है, तो दूसरी ओर पानीमें रंग मिलाकर एवं उसे पिचकारीकी सहायतासें एक-दूसरेपर उडाना, यह दूसरे जीवमें विद्यमान ईश्वरीय तत्त्वकी पूजा करना है । एक-दूसरेपर पिचकारीकी सहायतासे रंग डालते समय ‘दूसरे जीवमें विद्यमान ईश्वरीय तत्त्वको जागृत कर रहे हैं’, ऐसा भाव रखना चाहिए । इससे चैतन्यकी फलप्राप्तिकी दृष्टिसे अधिक इष्ट सिद्ध होता है ।

६. पिचकारीसे एक दूसरेपर रंग डालनेका परिणाम

        पिचकारीसे एक दूसरेपर रंग डालनेसे पूर्व दोनों व्यक्ति एक दूसरे पर विद्यमान देवतातत्त्वकी वंदना करते हैं । इससे व्यक्तिमें भावका वलय निर्माण होता है । उसके अनाहत चक्रके स्थानपर चैतन्यका वलय कार्यरत रूपमें घूमता रहता है । उसका ईश्वरसे संधान साध्य होने लगता है । उसकी ओर ईश्वरीय चैतन्यका  प्रवाह आकृष्ट होता है । पिचकारीसे एक दूसरेपर रंग डालनेसे पानीको वेग प्राप्त होता है । इससे व्यक्ति और वेगवान आपतत्त्वात्मक चैतन्यके फुवारेका प्रक्षेपण होता है । इस फुवारेसे एवं शक्तिके आनंदयुक्त ईश्वरीय तत्त्वोंके कणोंका उसकी ओर प्रक्षेपण होता है । फुवारेसे प्रक्षेपित चैतन्य तथा शक्तिके तथा आनंदयुक्त ईश्वरीय तत्त्वके कणोंका उसकी देहमें संचारण होता है ।  व्यक्तिका देह, मन एवं बुद्धिपर बना आवरण दूर होता है । इसी प्रकारका परिणाम दूसरे व्यक्तिपर भी होता है ।

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