Menu Close

हनुमानजी को तेल, सिंदूर, मदार के फूल एवं पत्ते इत्यादि अर्पण करने का महत्त्व

सारणी


हनुमान जयंती दृश्यपट

१. हनुमानजी को तेल, सिंदूर, मदार के फूल एवं पत्ते इत्यादि क्यों अर्पण करें ?

ऐसा कहते हैं कि, देवता को जो वस्तु भाती है, वही उन्हें पूजा में अर्पण की जाती है । उदाहरण के रूप में गणपति को लाल फूल, शिवजी को बेल, विष्णु को तुलसी इत्यादि । वास्तव में उच्च देवताओं की रुचि-अरुचि नहीं होती । विशिष्ट वस्तु अर्पण करने के पीछे अध्यात्मशास्त्रीय कारण होता है । पूजा का उद्देश्य है, मूर्ति में चैतन्य निर्माण होकर पूजक को उसका लाभ हो । यह चैतन्य निर्माण होने के लिए विशिष्ट देवता को विशिष्ट वस्तु अर्पित की जाती है, जैसे हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के फूल तथा पत्ते । इन वस्तुओं में हनुमानजी के महालोकतक के देवता के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण, जिन्हें पवित्रक कहते हैं, उन्हें आकृष्ट करने की क्षमता होती है । अन्य वस्तुओं में ये पवित्रक आकृष्ट करने की क्षमता अल्प होती है । इसी कारण हनुमानजी को तेल, सिंदूर एवं मदार के पुष्प-पत्र इत्यादि अर्पण करते हैं ।

इसके संबंधित एक कथा बहुत प्रचलित है। एक दिन मां सीता अपनी मांग में सिंदूर भर रही थीं । यह देखकर हनुमानजी ने उनसे पूछा, ‘सीतामैय्या, आप प्रतिदिन यह सिंदूर क्यों लगाती हैं ? तब सीताजी ने बताया, ‘इससे आपके स्वामी श्रीरामजी की आयु बढती है । इसलिए मैं यह सिंदूर लगाती हूं ।’ यह सुनने के बाद हनुमानजी को लगा कि, केवल मांग में सिंदूर भरने से श्रीरामजी की आयु बढती हैं, तो मैं अपने पूर्ण शरीरपर सिंदूर लगाऊंगा । फिर हनुमानजी ने अपने संपूर्ण शरीरपर सिंदूर लगा लिया । उसी समय से हनुमानजी का रंग सिंदूरी हो गया ।

२. हनुमानजी की पूजा में प्रयुक्त मदार के पत्ते का सूक्ष्म-चित्र

PR15_Pa_C2_H

ब्रह्मांड-मंडल से चैतन्य का प्रवाह पत्ते की ओर आकृष्ट होता है । इस के कारण मदार के पत्ते में चैतन्य का वलय निर्माण होता है । इस चैतन्य के वलयद्वारा पत्ते में चैतन्य के प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । मदार के पत्ते में हनुमानतत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए हनुमानतत्त्व-स्वरूप शक्ति का प्रवाह ब्रह्मांड-मंडल से मदार के पत्ते में आकृष्ट होता है । इसके कारण पत्ते में हनुमानतत्त्व-स्वरूप शक्ति का वलय निर्माण होता है । इस वलय से कार्यरत शक्ति के वलय निर्माण होते हैं । शक्ति के वलय से पत्ते के हरितद्रव्य अर्थात chlorophyll में शक्ति के कण संग्रहित होते हैं । पत्ते के डंठल के निकट भाग में डंठल से प्रवाहित शक्ति का वलय निर्माण होता है । पत्ते की शिराओं में शक्ति तरंगें प्रवाहित होती हैं । मदार के पत्ते में तारक शक्ति के वलय कार्यरत रूप में घूमते रहते हैं । मदार के पत्ते के चारों ओर हनुमानतत्त्व का कवच निर्माण होता है । इस सूक्ष्म-चित्रद्वारा आपको यह स्पष्ट हुआ होगा कि, मदार के पत्ते की ओर हनुमानजी की तत्त्वतरंगें किस प्रकार आकृष्ट होती हैं, एवं किस प्रकार मदारपत्र के माध्यम से उनका प्रक्षेपण होता है । मदार के पत्तोंद्वारा आकृष्ट चैतन्य, शक्ति आदी का प्रक्षेपण सूक्ष्म स्तरपर अर्थात आध्यात्मिक स्तर की प्रक्रिया है । इसका परिणाम विविध प्रकार से होता है । इनमें से एक है, वातावरण में विद्यमान रज-तम प्रधान तत्त्वों का प्रभाव अल्प होना । मदार के पत्तोंद्वारा प्रक्षेपित पवित्रकों के कारण वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होता है । उनकी तमप्रधान काली शक्ति कम होती है, या नष्ट होती है । संक्षेप में कहा जाए, तो मदार के पत्ते  हनुमानजी की तत्त्वतरंगों को प्रक्षेपित कर वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों के साथ एक प्रकार से युद्ध ही करते हैं । जब अनिष्ट शक्तियों से पीडित व्यक्ति का मदार के पत्तों से संपर्क होता है, तो उसे कष्ट होने लगता है ।

३. अनिष्ट शक्तियों से पीडित साधिका पर मदार के पत्ते का परिणाम

पत्ते में हनुमानतत्त्व से आकृष्ट चैतन्य का वलय निर्माण होता है । इस वलय से व्यक्ति की ओर चैतन्य का प्रवाह प्रक्षेपित होता है एवं उसके देह में चैतन्य का वलय निर्माण होता है । पत्ते में हनुमानतत्त्व से आकृष्ट शक्ति का वलय निर्माण होता है । वातावरण में इस शक्ति के वलयों का प्रक्षेपण होता है । शक्ति के वलय से शक्ति का प्रवाह पीडित व्यक्ति की दिशा में प्रक्षेपित होता है । बडी अनिष्टशक्ती नेत्रों के माध्यम से काली शक्ति प्रक्षेपित करता है एवं वह पत्ते से प्रक्षेपित हनुमानतत्त्व की शक्ति के प्रवाह से लडता रहता है । हनुमानतत्त्व की शक्ति के प्रवाह से व्यक्ति के देह में इसके अनेक प्रवाह प्रक्षेपित होते हैं । इस मारक शक्ति का वलय व्यक्ति के देह में कार्यरत रूप में घूमता रहता है एवं उनका अनिष्टशक्तीद्वारा सप्तचक्रों पर निर्माण किए गए काले शक्ति के स्थान से युद्ध होता है । सप्तचक्रों पर हनुमानतत्त्व की शक्ति के वलय निर्माण होते हैं । अनिष्ट शक्तियों की पीडा के कारण व्यक्ति के देह के चारों ओर काली शक्ति का घना आवरण रहता है । काले आवरण में शक्ति के कण संचारित होते हैं एवं शक्ति के कणों का काले आवरण के साथ युद्ध होता है । व्यक्ति के देहपर बने काला आवरणका विघटन होता है ।

४. हनुमानजीको चढाए जानेवाले मदारके फूल

हनुमानजी की पूजा में मदार के फूलों का प्रयोग किया जाता है । फूल चढाते समय फूलों के डंठल हनुमानजी की प्रतिमा के ओर होते हैं । कहते हैं, हनुमानजी को मदारके फूल अच्छे लगते हैं; परंतु यह मानसिक स्तर का विश्लेषण हुआ । इसका अध्यात्मशास्त्रीय कारण यह है कि, मदार के फूलों में हनुमानजी की तत्त्वतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट होती हैं तथा फूलों से पवित्रकों के रूप में प्रक्षेपित भी होती हैं ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – त्यौहार, धार्मिक उत्सव एवं व्रत)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *