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हनुमानजीकी उपासना एवं उसका शास्त्राधार

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१. हनुमानजी की उपासना का उद्देश्य

          अन्य देवताओं की तुलना में हनुमानजी में अत्यधिक प्रकट शक्ति है । अन्य देवताओं में प्रकट शक्ति केवल १० प्रतिशत होती है, जबकि हनुमानजी में प्रकट शक्ति ७२ प्रतिशत होती है । अत: हनुमानजी की उपासना अधिक मात्रा में की जाती है । हनुमानजी की उपासना से जागृत कुंडलिनी के मार्ग में आई बाधा दूर होकर  कुंडलिनी को उचित दिशा मिलती है । साथ ही भूतबाधा, जादू-टोना, अथवा पितृदोषके कारण होनेवाले कष्ट, शनिपीडा इत्यादि का निवारण भी होता है । रोगी को स्वस्थ करने के लिए उसे हनुमान के मंदिर में ले जानेकी प्रथा है । रोग-मुक्ति हेतु वीरहनुमान-मंत्र का भी प्रयोग किया जाता है । महाराष्ट्र में शनिवार को हनुमानजी का दिन मानते हैं एवं भारत के अन्य भागों में शनिवार तथा मंगलवार मारुति के दिन माने जाते हैं । इस दिन हनुमानजी के देवालय में जाकर उन्हें सिंदूर एवं तेल अर्पण करने की प्रथा है । कुछ स्थानों पर हनुमानजी को नारियल भी चढाते हैं ।

२. शनि की साढेसाती एवं हनुमान की पूजा

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शनि की साढेसाती के प्रभाव को न्यून (कम) करने हेतु हनुमानजी की पूजा करते हैं । यह विधि इस प्रकार है – एक कटोरी में तेल लें एवं उसमें काली उडदके चौदह दाने डालकर, उस तेल में अपना मुख देखें । उसके उपरांत यह तेल हनुमानजी को चढाएं । जो व्यक्ति अस्वस्थता के कारण मंदिर नहीं जा सकता, वह भी इस पद्धतिनुसार पूजा कर सकता है । तेल में मुख प्रतिबिंबित होता है, तब अनिष्ट शक्ति भी प्रतिबिंबित होती है । वह तेल हनुमान को चढाने पर उसमें विद्यमान अनिष्ट शक्ति का नाश होता है । खरा तेली शनिवार के दिन तेल नहीं बेचता, क्योंकि जिस अनिष्ट शक्ति के कष्टसे छुटकारा पाने के लिए कोई मनुष्य हनुमान पर तेल चढाता है, उस शक्ति द्वारा तेली को भी कष्ट दिए जाने की आशंका रहती है । इसलिए हनुमान मंदिर के बाहर बैठे तेल का विक्रय करनेवालों से तेलका क्रय न कर घर से ही तेल ले जाकर अर्पित करें ।

३. हनुमान-उपासना अंतर्गत कुछ पारंपरिक कृत्य

प्रत्येक देवता का विशिष्ट उपासनाशास्त्र होता है । इसका अर्थ है कि प्रत्येक देवता की उपासना के अंतर्गत बताए प्रत्येक कृत्य को विशिष्ट प्रकार से करने के पीछे कुछ शास्त्र है, जिससे उस देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ होता है । हनुमानजी की उपासना अंतर्गत कुछ नित्य कृत्यों की उचित पद्धति के विषय में सनातन की संत पू. (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को ईश्वरीय कृपास्वरूप स्फुरित ज्ञान आगे दिया है । इस प्रकार के विविध कृत्यों का अध्यात्मशास्त्र सनातन की ग्रंथमाला ‘धर्मशास्त्र ऐसे क्यों कहता है ?’ में दिया है ।

उपासना का कृत्य कृत्यसंबंधी विवेचन
१. हनुमान पूजन से पूर्व उपासक स्वयं को सिंदूर कैसे लगाए ? अनामिका से (करांगुलि के पासवाली उंगली)
२. फूल चढाना

अ. कौनसे चढाएं ?

आ़ संख्या कितनी हो ?

इ. फूल चढाने की पद्धति क्या हो ?

 

मदार के पत्ते एवं फूल

पांच अथवा पांच गुना

फूलों का डंठल वता की ओर कर चढाएं ।

३. अगरबत्ती से आरती उतारना

अ. उपासना हेतु किस गंधकी अगरबत्ती का प्रयोग करें ?

आ. संख्या कितनी हो ?

इ. उतारने की पद्धति क्या हो ?

 

केवडा, चमेली एवं अंबर

दो

दाहिने हाथ की तर्जनी एवं अंगूठे में अगरबत्तियां पकडकर घडी की दिशा में पूर्ण गोलाकार पद्धति से तीन बार घुमाकर उतारें ।

४. हनुमानजी की कितनी परिक्रमा करें ? न्यूनतम पांच एवं उससे अधिक लगानी हों, तो पांच गुना

४. हनुमानजी के नाम का जप करने का महत्त्व

कलियुग में सर्वश्रेष्ठ एवं सरल, सुलभ तथा देवता से सतत सान्निध्य साध्य करानेवाली एकमात्र उपासना उस देवता का नामजप है । देवता के नामजप से देवता का तत्त्व अधिकाधिक ग्रहण करने के लिए, नामजप का उच्चारण अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से उचित करना आवश्यक है । इसके अनुसार हनुमानजी के ‘श्री हनुमते नमः ।’ इस नामजप को कैसे करें, यह समझने के लिए आइए एक ध्वनिमुद्रि का अर्थात (recording) सुनते हैं…

‘हनुमान जयंती’की तिथिपर हनुमानजी का तत्त्व पृथ्वी पर सदैव की तुलना में १००० गुना कार्यरत होता है । इस दिन ‘श्री हनुमते नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करने से नित्य की तुलना में अधिक मात्रा में कार्यरत हनुमानतत्त्व का लाभ हमें मिलता है ।

नामजप करने से होनेवाले लाभ

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हनुमानजी का नामजप करने से अनिष्ट शक्ति से पीडित किसी व्यक्ति को विविध शारीरिक तथा मानसिक कष्ट होते हों, तो उनका निवारण होता है । साथही नामजप करनेवाले व्यक्ति को हनुमानजी के चैतन्यका लाभ भी मिलता है । भावपूर्ण नामजप करने हेतु नामजप आरंभ करने से पूर्व हनुमानजी के चरणों में प्रार्थना करें । प्रार्थना करते समय हनुमानजी का चित्र अथवा मूर्ति आंखों के समक्ष लानेका प्रयास करें । इससे प्रार्थना भी एकाग्रता से होगी । प्रार्थना से एकाग्रता साध्य होनेपर किया जानेवाला नामजप निश्चित ही भावपूर्ण होगा ।

५. हनुमानस्तोत्र का पाठ

समर्थ रामदासस्वामीजी का तेरह करोड रामनाम का जप पूर्ण होने पर हनुमान उन के समक्ष प्रकट हुए तथा उस दर्शन के उपरांत स्वामीजी ने हनुमानस्तोत्र (भीमरूपीस्तोत्र) रचा । इस स्तोत्र में रामदासस्वामीजी ने विविध नामों से हनुमान के रूप का वर्णन एवं उनकी स्तुति की है । ‘यह स्तोत्रपाठ करनेवाले को धनधान्य, पशुधन, संतति आदि एवं उत्तम रूप विद्यादि का लाभ होता है । इस स्तोत्र के पाठ से भूत, पिशाच, समंध आदि अनिष्ट शक्ति की बाधा, सर्व रोग, व्याधि (त्रिविध ताप) नष्ट होते हैं, उसी प्रकार हनुमान के दर्शन से सारी चिंताएं दूर होकर आनंद की प्राप्ति होती है’, ऐसी फलश्रुति इस स्तोत्र में दी गई है ।

६. हनुमानजी को नारियल क्यों एवं कैसे अर्पित करना चाहिए ?

नारियल अच्छी तथा बुरी, दोनों प्रकार की तरंगों को आकर्षित एवं प्रक्षेपित कर सकता है । नारियल अर्पित करने से पूर्व हनुमानजी की मूर्ति के समक्ष नारियल की चोटी कर, हनुमान के सात्त्विक स्पंदन नारियल में प्रविष्ट होने के लिए हनुमानजी से प्रार्थना कीजिए । इसके पश्चात नारियल फोडकर उसका आधा भाग अपने लिए रखिए तथा शेष भाग स्थानदेवता को अर्पित कीजिए । इससे कष्टदायक शक्तियों को उतारा मिलकर वे भी संतुष्ट होती हैं । इसके पश्चात अपने लिए रखे नारियलके आधे भाग को प्रसाद के रूपमें ग्रहण करने से हनुमान की सात्त्विक तरंगों का हमें लाभ होता है । कुछ श्रद्धालु देवता को पूर्ण नारियल अर्पित करते हैं । पूर्ण नारियल अर्पित करने से उनके मन में विशुद्ध त्याग की भावना क्वचित उत्पन्न होती है; इससे उन्हें आध्यात्मिक लाभ नहीं होता । अतः संभवतः देवता को पूर्ण नारियल अर्पित नहीं करना चाहिए; इसकी अपेक्षा नारियल फोडकर आधा भाग देवालय में देकर शेष भाग अपने लिए रखकर देवता के तत्त्व का अधिकाधिक लाभ लीजिए ।

७. हनुमानचालीसा

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संध्या के समय हमारे घरों में भगवान के समक्ष दीया जलाने के उपरांत ‘ॐ जय जगदीश हरे’ एवं हनुमानचालीसा परिपाठ की प्रथा है । हनुमानचालीसा की रचना संत तुलसीदासजी ने की है । सर्व देवताओं में केवल हनुमानजी को ही अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं दे सकतीं । हनुमानजी भूतों के स्वामी हैं । इस कारण यदि किसी को भूत-प्रेतादि द्वारा कष्ट हो, तो कष्ट निवारण हेतु उस व्यक्ति को हनुमानजी के मंदिर ले जाते हैं अथवा हनुमानचालीसा पढते हैं । भूतावेश, जादू-टोना इत्यादि द्वारा कष्ट दूर करने के लिए वीरमारुति की उपासना करते हैं । हनुमानचालीसा में दासमारुति एवं वीरमारुति, दोनों का वर्णन है ।

८. कालानुसार आवश्यक उपासना

समाज को हनुमानजी की उपासना से संबंधित धर्मशिक्षा देना

अधिकांश हिन्दुओं में अपने देवता, आचार, संस्कार, त्यौहार आदि के विषय में आदर एवं श्रद्धा होती है; परंतु अनेकों को उनकी उपासना का धर्मशास्त्रीय आधार ज्ञात नहीं होता । इसे समझकर उचित पद्धति से धर्माचरण करने पर फलप्राप्ति अधिक होती है । अतः हनुमानजी की उपासनांतर्गत विविध कृत्यों की उचित विधि एवं उनके धर्मशास्त्रीय आधार की शिक्षा समाज को प्रदान करने हेतु यथाशक्ति प्रयत्न करना, हनुमानभक्तों के लिए कालानुसार आवश्यक एवं श्रेष्ठ स्तर की समष्टि साधना है ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – ‘श्री हनुमान

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