१. हनुमानकी मूर्ति का रंग
हनुमान के स्वरूप संबंधी भी अलग-अलग जानकारी मिलती है । अधिकांशत: हनुमानजी का वर्ण लाल एवं कभी-कभी काला भी होता है । लाल वर्ण की हनुमानजी की मूर्ति अर्थात सिंदूर से लीपी हुई । सिंदूर में तेल मिलाकर उससे यह मूर्ति लीपी जाती है । उसका काला वर्ण संभवतः शनि के प्रभाव से निर्मित हुआ । काले वर्ण की हनुमानजी की मूर्ति काले पत्थर से बनी होती है । उस मूर्तिपर केवल तेल चढाया जाता है ।
२. हनुमानजी का रूप
आकार एवं मुख के अनुसार हनुमानजी की साधारणतः निम्न प्रकार की मूर्तियां दृष्टिगोचर होती हैं ।
अ. प्रताप हनुमान
प्रताप हनुमान का स्वरूप भव्य होता है । एक हाथ में द्रोणागिरी एवं दूसरे हाथ में गदा, ऐसा रूप होता है ।
आ. दास हनुमान
दास हनुमान राम के आगे हाथ जोडे खडे रहते हैं । उनका मस्तक किंचित आगे की ओर झुका हुआ और पैर जुडे होते हैं । उस समय उनकी पूंछ भूमि पर रहती है ।
इ. वीर हनुमान
वीर हनुमान योद्धा मुद्रा में होते हैं । वीर हनुमान की मूर्ति वीरासन मुद्रा में होती है । इस मूर्ति के बाएं हाथ में गदा होती है । आगे किए हुए बाएं हाथ को बार्इं जांघ का आधार देकर वह गदा बाएं कंधे पर टिकी होती है । दाहिना पैर घुटने से मुडा हुआ होता है तथा दाहिना हाथ अभयमुद्रा में होता है । उनकी पूंछ उठी हुई होती है । कभी-कभी उनके पैरों तले राक्षस की मूर्ति भी होती है । भूतावेश, जादू-टोना इत्यादि द्वारा पीडा को दूर करने के लिए वीर हनुमान की उपासना करते हैं । वीर हनुमान से शक्ति व दास हनुमान से (राम से उनकी एकरूपता के कारण) भाव एवं चैतन्य प्रक्षेपित होता है ।
र्इ. पंचमुखी हनुमान
पंचमुखी हनुमान की मूर्ति प्रचलित है । पांच मुख हैं – गरुड, वराह, हयग्रीव, सिंह एवं कपिमुख । ऐसी दशभुज मूर्तियों के हाथों में ध्वज, खड्ग, पाश इत्यादि शस्त्र हैं । पंचमुखी देवता का एक अर्थ ऐसा है कि पूर्व, पश्चिम, दक्षिण एवं उत्तर, ये चार दिशाएं एवं ऊध्र्व दिशा, इन पांचों दिशाओं पर उस देवता का अवधान अथवा स्वामित्व है ।
उ. दक्षिणमुखी (दाहिनी ओर देखनेवाले) हनुमान
‘दक्षिण’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों से किया जाता है – दक्षिण दिशा एवं दाहिनी ओर (बाजू) ।
दक्षिण दिशावाचक अर्थ : यह मूर्ति दक्षिणाभिमुखी होती है, इसलिए इसे ‘दक्षिणमुखी हनुमान’ कहते हैं ।
दाहिनी ओरका अर्थ : इस रूप में हनुमानजी का मुख उनकी दाहिनी ओर मुडा रहता है ।
इस रूप में हनुमान की सूर्यनाडी कार्यरत रहती है । सूर्यनाडी तेजस्वी तथा शक्तिदायक है । (गणपति एवं हनुमान की सुषुम्नानाडी सदैव कार्यरत रहती है, परंतु रूप में थोडा परिवर्तन होते हुए, उनकी सूर्य अथवा चंद्रनाडी भी अल्प मात्रा में कार्यरत हो जाती है ।) दाहिनी ओर अभिमुख हनुमान की दाहिनी सूंडवाले गणपति समान विधिनिषेध-पूर्वक उपासना करनी पडती है । अनिष्ट शक्तियों के निवारण के लिए इनकी उपासना की जाती है ।
ऊ. वाममुखी (बार्इं ओर देखनेवाले) हनुमान
वाम अर्थात बार्इं बाजू अथवा उत्तर दिशा ।
उत्तर दिशावाचक अर्थ : इस मूर्ति का मुख उत्तर की ओर होता है ।
बार्इं ओर का अर्थ : इस रूप में हनुमानजी का मुख उनकी बार्इं ओर मुडा रहता है ।
इस हनुमान की चंद्रनाडी कार्यरत रहती है । चंद्रनाडी शीतल तथा आनंददायी है तथा उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है ।
आे. ग्यारहमुखी हनुमान
इस रूप में हनुमानजी के बाईस हाथ तथा दो पैर होते हैं । (हनुमानजी का यह रूप सौराष्ट्र में प्रचलित है ।)
संदर्भ – सनातन का ग्रंथ, ‘श्री हनुमान’