सारणी
- १. दत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोंकी पीडासे रक्षा कैसे होती है ?
- २. पूर्वजोंके कष्टोंकी तीव्रताके अनुसार किया जानेवाला दत्तात्रेयका नामजप
- ३. पितृपक्षमें दत्तात्रेय देवताका नाम जपनेका महत्त्व
- ४. दत्तात्रेय देवताके नामजपसे हुई कुछ अनुभूतियां
१. दत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोंकी पीडासे रक्षा कैसे होती है ?
१ अ. पूर्वजोंको गति मिलना
१ आ. सुरक्षा-कवचका निर्माण होना
१ इ. दत्तात्रेय देवताका पूर्वज-अनिष्ट शक्तियोंका नाश करना
२. पूर्वजोंके कष्टोंकी तीव्रताके अनुसार किया जानेवाला दत्तात्रेयका नामजप
वर्तमान कालमें लगभग सबको पूर्वजोंका कष्ट है, इसलिए ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रत्येक व्यक्तिको प्रतिदिन १ से २ घंटे करना आवश्यक है । मध्यम स्वरूपके कष्टके लिए यह नामजप प्रतिदिन २ से ४ घंटे करें । तीव्र स्वरूपका कष्ट हो, तो यह नामजप प्रतिदिन ४ से ६ घंटे करें ।
३. पितृपक्षमें दत्तात्रेय देवताका नाम जपनेका महत्त्व
पितृपक्षमें श्राद्धविधिके साथ-साथ दत्तात्रेयका नामजप करनेसे पूर्वजोंके कष्टसे रक्षा होनेमें सहायता मिलती है । इसलिए पितृपक्षमें दत्तात्रेयका नामजप प्रतिदिन न्यूनतम १ से २ घंटे (१२ से २४ माला) तथा संभव हो तो अधिकाधिक निरंतर करें ।
अ. दत्तात्रेय देवताका नामजप करते समय पूर्वज संतुष्ट दिखाई देना तथा सिरपर हाथ रखकर आशीर्वाद देना : ‘१८.९.२००५ को प्रातः ४.३० बजे दत्तात्रेयका नामजप करते समय मुझे अपनी दादी, नाना-नानी, भाई, बुआ, सगे एवं चचेरे ससुर, सबकी लिंगदेह दिखाई दीं । मुझसे हो रहे नामजपसे वे संतुष्ट दिखाई दिए । प्रत्येकने अपने दोनों हाथ मेरे सिरपर रखकर आशीर्वाद दिए व ‘तुम्हारा भला हो !’ कहकर वे सब चले गए । संपूर्ण दिन मुझे आनंदका अनुभव होता रहा ।’ – श्रीमती सुजाता कुलकर्णी, महाराष्ट्र.
आ. पितृपक्षमें किए दत्तात्रेयके नामजपके कारण, बंद होनेकी स्थितिमें आए दुग्धालय (डेरी) की कायापलट होना : ‘मेरे पति कई वर्षोंसे दुग्धालयमें नौकरी करते हैं । गत कुछ महिनोंसे दुग्धालय बंद होनेकी स्थितिमें था । इससे घरमें तनाव हो रहा था । पितृपक्षमें मैं ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करने लगी । तत्पश्चात दुग्धालयमें अचानक दूधकी भरपूर आपूर्ति होने लगी । नामजप प्रारंभ करनेसे घरमें वातावरण भी तनावरहित हो गया । इस घटनासे पूर्व सब लोग कह रहे थे कि दुग्धालय बंद ही हो जाएगा; परंतु दत्तात्रेय देवताकी कृपासे यह संकट टल गया ।’ – एक साधिका
संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)’