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कुमकुमार्चन करनेका शास्त्रीय आधार

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देवीकी उपासनामें कुमकुमार्चनका महत्वपूर्ण स्थान है । अनेक स्थानोंपर नवरात्रिमें भी विशेष रूपसे यह विधि करते हैं ।

१. देवीकी मूर्तिपर कुमकुमार्चन करनेकी पद्धतियां

पद्धति १ : ‘देवीका नामजप करते हुए एक चुटकीभर कुमकुम (रोली), देवीके चरणोंसे आरंभ कर देवीके सिरतक चढाएं अथवा  देवीका नामजप करते हुए उन्हें कुमकुमसे आच्छादित करें ।’

पद्धति २ : कुछ स्थानोंपर देवीको कुमकुमार्चन करते समय कुमकुम केवल चरणोंपर अर्पित किया जाता है ।

२. देवीकी मूर्तिपर कुमकुमार्चन करनेका शास्त्रीय आधार

‘मूल कार्यरत शक्तितत्त्वकी निर्मिति लाल रंगके प्रकाशसे हुई है, इस कारण शक्तितत्त्वके दर्शकके रूपमें देवीकी पूजा  कुमकुमसे करते हैं । कुमकुमसे प्रक्षेपित गंध-तरंगोंकी सुगंधकी ओर ब्रह्मांडांतर्गत शक्तितत्त्वकी तरंगें अल्प कालावधिमें आकृष्ट होती हैं, इसलिए मूर्तिमें सगुण तत्त्वको जागृत करने हेतु लाल रंगके दर्शक तथा देवीतत्त्वको प्रसन्न करनेवाली  गंध-तरंगोंके प्रतीकके रूपमें कुमकुम- उपचार (शृृंगार)को देवीपूजनमें अग्रगण्य स्थान दिया गया है । मूल शक्तितत्त्वके बीजका गंध भी कुमकुमसे पैâलनेवाली सुगंधसे साधर्म्य दर्शाता है, इसलिए देवीको जाग्रत करने हेतु कुमकुमके प्रभावी माध्यमका  प्रयोग किया जाता है ।’

३. देवी की मूर्ति को कुमकुमार्चन करने के सूक्ष्म-स्तरीय लाभ

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४. कुमकुमार्चनके फलस्वरूप हुई अनुभूति

देवीके शृंगारमें प्रयुक्त कुमकुमको मस्तकपर लगानेसे प्रार्थना एवं नामजप अच्छा होना तथा उत्साह प्रतीत होना : ‘२७.१.२००४ के दिन हम देवालयमें कुमकुमार्चन हेतु गए थे । हमारे द्वारा दिए गए कुमकुमसे पुजारीने दोनों मूर्तियोंका अर्चन किया तथा उसके उपरांत प्रार्थना कर वह कुमकुम हमें दिया । कुमकुम लेते हुए मैंने देवीसे प्रार्थना की, ‘हे सातेरीदेवी, इस कुमकुमसे हमें  शक्ति मिले, हमसे प्रार्थना एवं नामजप उत्तम हो ।’ तबसे मैं जब भी अपने माथेपर कुमकुम लगाती हूं, मेरा नामजप आरंभ हो  जाता है और एक अनोखे उत्साहकी प्रतीति होती है ।’ – श्रीमती रक्षंदा राजेश गांवकर, फोंडा, गोवा.

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ, ‘देवीपूजनसे संबंधित कृत्योंका शास्त्र

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