१. श्री दुर्गासप्तशती पाठ करना
नवरात्रिकी कालावधिमें देवीपूजनके साथ उपासनास्वरूप देवीके स्तोत्र, सहस्रनाम, देवीमाहात्म्य इत्यादि के यथाशक्ति पाठ और पाठसमाप्तिके दिन विशेष रूपसे हवन करते हैं । श्री दुर्गाजीका एक नाम ‘चंडी’ भी है ।
मार्कंडेय पुराणमें इसी देवीचंडीका माहात्म्य बताया है । उसमें देवीके विविध रूपों एवं पराक्रमोंका विस्तारसे वर्णन किया गया है । इसमेंसे सात सौ श्लोक एकत्रित कर देवी उपासनाके लिए `श्री दुर्गा सप्तशती’ नामक ग्रंथ बनाया गया है । सुख, लाभ, जय इत्यादि कामनाओंकी पूर्तिके लिए सप्तशतीपाठ करनेका महत्त्व बताया गया है ।
शारदीय नवरात्रिमें यह पाठ विशेष रूपसे करते हैं । कुछ घरोंमें पाठ करनेकी कुलपरंपरा ही है । पाठ करनेके उपरांत हवन भी किया जाता है । इस पूरे विधानको `चंडीविधान’ कहते हैं । संख्याके अनुसार नवचंडी, शतचंडी, सहस्रचंडी, लक्षचंडी ऐसे चंडीविधान बताए गए हैं । प्राय: लोग नवरात्रिके नौ दिनोंमें प्रतिदिन एक-एक पाठ करते हैं ।
नवरात्रिमें यथाशक्ति श्री दुर्गासप्तशतीपाठ करते हैं । पाठके उपरांत पोथीपर फूल अर्पित करते हैं । उसके उपरांत पोथीकी आरती करते हैं ।
श्री दुर्गासप्तशती पाठमें देवीमांके विविध रूपोंको वंदन किया गया है ।
१ अ. पाठ करनेकी पद्धति
- पाठ करते समय प्रथम आचमन करते हैं ।
- तदउपरांत पोथीका पूजन करते है ।
- अब श्रीदुर्गासप्तशतीका पठन करते हैं ।
- पाठके उपरांत पोथीपर पुष्प अर्पित करते हैं ।
- उपरांत आरती करते हैं ।
१ अा. श्री दुर्गासप्तशती पाठकरनेके परिणाम
१. भावसहित पाठ करनेसे व्यक्तिमें भावका वलय निर्माण होता है ।
२. ईश्वरीय तत्त्वका प्रवाह श्री दुर्गासप्तशती ग्रंथमें आकृष्ट होता है ।
- २ अ. ग्रंथमें उसका वलय निर्माण होता है ।
- २ आ. ईश्वरीय तत्त्वका प्रवाह पाठ करनेवाले व्यक्तिकी ओर आकृष्ट होता है ।
- २ इ. व्यक्तिमें उसका वलय निर्माण होता है ।
३. संस्कृत शब्दोंके कारण चैतन्यका प्रवाह श्री दुर्गासप्तशती ग्रंथमें आकृष्ट होता है ।
- ३ अ. ग्रंथमें चैतन्यका वलय निर्माण होता है ।
- ३ आ. चैतन्यके वलयोंसे प्रवाहका प्रक्षेपण पाठ करनेवालेकी ओर होता है ।
- ३ इ. व्यक्तिमें चैतन्यका वलय निर्माण होता है ।
- ३ ई. पाठ करनेवालेके मुखसे वातावरणमें चैतन्यके प्रवाहका प्रक्षेपण होता है ।
- ३ उ. चैतन्यके कण वातावरणमें फैलकर दीर्घकालतक कार्यरत रहते हैं ।
४. श्री दुर्गासप्तशती ग्रंथमें मारक शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
- ४ अ. ग्रंथमें मारक शक्तिके वलयकी निर्मिति होती है ।
- ४ आ. इस वलयद्वारा पाठ करनेवालेकी ओर शक्तिके प्रवाहका प्रक्षेपण होता है ।
- ४ इ. व्यक्तिमें मारक शक्तिका वलयका निर्माण होता है ।
- ४ ई. मारक शक्तिके वलयसे देहमें शक्तिके प्रवाहोंका संचार होता है ।
- ४ उ. शक्तिके कण देहमें फैलते हैं ।
- ४ ऊ. पाठ करते समय व्यक्तिके मुखसे वातावरणमें मारक शक्तिके प्रवाहका प्रक्षेपण होता है ।
- ४ ए. मारक शक्तिके कण वातावरणमें फैलकर अधिक समयतक कार्यरत रहते हैं ।
- ४ ऐ. यह पाठ नौ दिन करनेसे आदिशक्तिस्वरूप मारक शक्तिका प्रवाह व्यक्तिकी ओर आता रहता है ।
५. पातालकी बलशाली आसुरी शक्तियोंद्वारा व्यक्तिके देहपर लाया गया काली शक्तिका आवरण तथा देहमें रखी काली शक्ति नष्ट होते हैं ।
६. व्यक्तिके देहके चारों ओर सुरक्षा कवच निर्माण होता है ।
२. कवचपठन
कवच मंत्रविद्याका एक कार है । इसमें देवताओंद्वारा हमारे शरीरकी रक्षा होने हेतु प्रर्थना होती है । अनेकविध मंत्रोंकी सहायतासे मानवीय देहपर मंत्रकवचोंकी निर्मिति करना संभव है । ये कवच स्थूल कवचसे अधिक शक्तिशाली होते हैं । स्थूल कवच बंदूककी गोली समान स्थूल आयुधोंसे रक्षा करते हैं तथा सूक्ष्म कवच स्थूल एवं सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षा करते हैं । दुर्गाकवच, लक्ष्मीकवच, महाकालीकवच आदि के पठनसे शत्रु तथा अनिष्ट शक्तियोंसे संरक्षणमें सहायता मिलती है ।