१. अतृप्त पूर्वजोंसे अपने रक्षणके लिए गुरुकृपा
और कठोर साधनाके अतिरिक्त अन्य पर्याय न होना
‘कुछ मृत व्यक्तियोंका अपने घरके सदस्यों – पत्नी, बच्चे तथा अन्यपर इतना प्रेम होता है कि उन्हें छोडकर मृत्युके पश्चात आगेका प्रवास करना उन्हें कठिन लगता है । इस कारण जिस व्यक्तिमें लिंगदेह अटकी हुई है वह भी उसके साथ जाए, ऐसी उस लिंगदेहकी इच्छा होती है । जिस व्यक्तिमें यह लिंगदेह अटकी होती है, उस व्यक्तिके मनमें यह लिंगदेह आत्महत्याका विचार डालकर आत्महत्या करनेको बाध्य करती है अथवा अपघात करवाना, रोग उत्पन्न करना, ऐसा कर उस व्यक्तिको मारकर अपने साथ ले जाती है । ऐसे हठी अतृप्त पूर्वजोंसे रक्षणके लिए गुरुकृपा और कठोर साधनाके अतिरिक्त अन्य पर्याय नहीं ।
२. अतृप्त पूर्वज घरके सदस्योंको कष्ट क्यों देते हैं ?
पूर्वज स्वयं अत्यंत कष्ट कर भूमि, घर, संपत्ति आदि अर्जित करते हैं । उनकी मृत्युके पश्चात उनकी वह संपत्ति उनके परिजनोंको मिलती है । परिजन यदि उस संपत्तिका विनियोग उचित ढंगसे न कर, अपव्यय करते हों, तो पूर्वजोंको क्रोध आता है । परिणामस्वरूप वे अपने परिजनोंको कष्ट देते हैं । कालांतरमें उनकी विपुल आर्थिक हानि होती है ।
उपाय : घरके सदस्योंको पूर्वजोंद्वारा उपार्जित संपत्ति मिली हो, तो उसका सुयोग्य उपयोग करना चाहिए । धर्मशास्त्र के अनुसार उस संपत्तिका २० प्रतिशत भाग धर्मकार्यके लिए व्यय करना अथवा संतोंको दान करना चाहिए । इस दानसे पूर्वज और परिजनोंको साधनाका फल प्राप्त होकर पूर्वजोंको सद्गति मिलती है तथा परिजनोंका कष्ट दूर होता है ।
३. पूर्वजोंकी आसक्ति भूमि तथा घरमें होना
कुछ पूर्वजोंकी आसक्ति उनकी भूमि तथा घर इत्यादिमें इतनी तीव्र होती है कि वे आगेके लोकमें जानेके स्थानपर भुवलोकमें ही अटककर अपनी भूमि तथा घरमें रहते हैं । कुछ पूर्वजोंकी आसक्ति इतनी तीव्र होती है कि उनके परिजन यदि उस घरकी रचनामें कुछ परिवर्तन करें अथवा वह बेचें अथवा वहांपर नया घर बनानेके लिए उसे तोडें, तो वे क्रुद्ध होकर कष्ट देते हैं ।
उपाय : वास्तुशुद्धि और नामजप करने तथा घरके सर्व सदस्योंके साधना करनेपर उनकी और वास्तुकी सात्त्विकता बढनेसे पूर्वज घरमें प्रवेश नहीं कर पाते और उनकेद्वारा होनेवाले कष्टसे घरके सदस्योंका रक्षण होता है ।
संदर्भ – सनातनके ग्रंथ – ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’ एवं ‘श्राद्ध (श्राद्धविधिका शास्त्रीय आधार)’