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भैयादूज (यमद्वितीया)

कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया इस दिन यम अपनी बहनके घर भोजन करने गए थे, इसलिए इस दिनको यमद्वितीया कहते हैं । असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए, इसलिए यमदेवताका पूजन करनेके तीन दिनोंमेंसे कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्वका समापन दिन है । ‘यमद्वितीया’ एवं ‘भैयादूज’के नामसे भी यह पर्व परिचित है ।

यमद्वितीयाकी तिथिपर करनेयोग्य धार्मिक विधियां

१ भाई-बहनद्वारा यमादि देवताओंका पूजन
२ बहनद्वारा भाईका औक्षण अर्थात आरती एवं सम्मान करना
३ भाईका बहनको उपहार दिया जाना

शास्त्रकी जानकारी हो, तो कोई भी धार्मिक कृत्य मनःपूर्वक एवं श्रद्धापूर्वक किया जाता है । परिणामतः उससे लाभ भी अधिक प्राप्त होता है ।

१. कार्तिक शुक्ल द्वितीयाको ‘यमद्वितीया’ एवं ‘भैयादूज’ कहनेके कारण

कार्तिक शुक्ल द्वितीयाकी तिथिपर वायुमंडलमें यमतरंगोंके संचारके कारण वातावरण तप्त ऊर्जासे संचारित रहता है । ये तरंगें नीचेकी दिशामें प्रवाहित होती हैं । इन तरंगोंके कारण विविध कष्ट हो सकते हैं, जैसे अपमृत्यु होना, दुर्घटना होना, स्मृतिभ्रंश होनेसे अचानक पागलपनका दौरा पडना, मिरगी समान दौरे पडना अर्थात फिटस् आना अथवा हाथमें लिए हुए कार्यमें अनेक बाधाएं आना । भूलोकमें संचार करनेवाली यमतरंगोंको प्रतिबंधित करनेके लिए यमादि देवताओंका पूजन करते हैं । पृथ्वी यमकी बहनका रूप है । इस दिन यमतरंगें पृथ्वीकी कक्षामें आती हैं । इसलिए पृथ्वीकी कक्षामें यमतरंगोंके प्रवेशके संबंधमें कहते हैं, कि कार्तिक शुक्ल द्वितीयाकी तिथिपर यम अपने घरसे बहनके घर अर्थात पृथ्वीरूपी भूलोकमें प्रवेश करते हैं । इसलिए इस दिनको यमद्वितीयाके नामसे जानते हैं । यमदेवताके अपनी बहनके घर जानेके प्रतीकस्वरूप प्रत्येक घरका पुरुष अपनेही घरपर पत्नीद्वारा बनाए गए  भोजनका न सेवन कर बहनके घर जाकर भोजन करता है  । बहनद्वारा यमदेवताका सम्मान करनेके प्रतीक स्वरूप यह दिन ‘भैयादूज’के नामसे भी प्रचलित है ।

कार्तिक शुक्ल द्वितीयाको ‘यमद्वितीया’ एवं ‘भैयादूज’ कहनेके कारण – दृश्यपट (Video)

२. भाई-बहनद्वारा यमादि देवताओंका पूजन करनेका शास्त्रीय कारण

दीपावलीकी कालावधिमें अकालमृत्युसे रक्षा हेतु यमदेवताके उद्देश्यसे तीन दिनोंपर धार्मिक विधि करनेका विधान है । इन तीन दिनोंमें एक दिन यह है । इन दिनों भूलोकमें यम तरंगें अधिक मात्रामें आती हैं । इन दिनों यमादि देवताओंके निमित्त किया गया कोई भी कर्म अल्प समयमें फलित होता है । इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीयाकी तिथिपर यमदेवका पूजन करते हैं ।

भाई-बहनद्वारा किया जानेवाला यमादि देवताआेंका पूजन – दृश्यपट (Video)

  • चौपाईपर रखे चावलके तीन पुंजोंपर तीन सुपारियां रखते हैं ।
  • भाई प्रथम आचमन करता है उपरांत प्राणायाम, देशकालकथन एवं संकल्प करता है ।
  • यमादि देवताओंका  पूजन करनेके लिए अपनी दांयी ओरसे पहली सुपारीपर  यम देवताको  दूसरी सुपारीपर  चित्रगुप्त देवताको  एवं तीसरी सुपारीपर  यमदूतको  अक्षत अर्पित कर आवाहन किया जाता है ।
  • उपरांत आसन पाद्य अर्घ्य इत्यादि उपचार अर्पित किए जाते हैं।
  • तदुपरांत कपासके वस्त्र, चंदन, हलदी कुमकुम इत्यादि उपचार अर्पित कर पूजन किया जाता है ।
  • उपरांत धूप दीप दिखाकर नवैद्य समर्पित किया जाता है ।
  • तदुपरांत बहन आचमन करती है ।
  • उपरांत इन देवताओं का पूजन करती है ।

२ अ. यमतर्पण, यमदीपदान एवं यमसे प्रार्थना करना

अपमृत्यु निवारणार्थ ‘श्री यमधर्मप्रीत्यर्थं यमतर्पणं करिष्ये ।’ ऐसा संकल्प कर यमके चौदह नामोंका तर्पण करें । इस विधिकी जानकारी पंचांगमें उपलब्ध होती है । ‘इसी दिन यमको दीप दान करना होता है । यम मृत्यु एवं धर्मके देवता हैं । सतत भान आवश्यक है कि ‘प्रत्येक मनुष्यकी मृत्यु निश्चित है’ । इससे मनुष्यके हाथों कभी बुरा कर्म अथवा धनका अपव्यय नहीं होगा ।  ऐसेमें यमको दीपदान देकर कहें, ‘हे यमदेवता, इस दीप समान हम सतर्क हैं, जागरूक हैं । जागरूकता एवं प्रकाशके प्रतीक दीप तुम्हें अर्पण कर रहे हैं, इन्हें स्वीकारें । हम नहीं जानते कब आपका आगमन हो जाए; इसलिए हम समय-समयपर अपना  लेखा-विवरण बनाकर रखते हैं, जिस कारण कुछ अधूरा छोड देनेकी चिंता नहीं होती । हम जानते हैं कि आप अचानक कभी भी पधार सकते हैं ।’ – प.पू. परशराम माधव पांडे महाराज, देवद, पनवेल.

३. भाईदूजके दिन बहनद्वारा भाईका औक्षण अर्थात आरती करना

इस दिन भाई बहनके पास जाए और बहन भाईके रूपमें यमदेवका औक्षण कर उनका आवाहन करती हैं । उनका यथोचित आदरसहित सम्मान करती हैं और भूलोकमें संचार करनेवाली यमतरंगोंपर तथा पितृलोककी अतृप्त आत्माओंको प्रतिबंधित करनेके लिए उनसे प्रार्थना करती हैं ।

किसी स्त्रीका भाई न हो, तो वह किसी परपुरुषको भाई मानकर उसकी आरती उतारे । यदि यह संभव न हो, तो वह चंद्रको भाई मानकर उसकी आरती करे । `इस दिन किसी भी पुरुषको अपने घरपर अथवा अपनी पत्नीके हाथका अन्न नहीं खाना चाहिए । इस दिन उसे अपनी बहनके घर वस्त्र, गहने इत्यादि लेकर जाना चाहिए और उसके घर भोजन करना चाहिए । ऐसे बताया गया है कि यदि सगी बहन न हो, तो किसी भी बहनके पास अथवा अन्य किसी भी स्त्रीको बहन मानकर उसके यहां भोजन करना चाहिए ।’

३ अ. बहनद्वारा भाईका औक्षण करनेकी पद्धति

  • भोजनसे पहले बहन भाईका औक्षण करती है ।
  • इसमें वह प्रथम भाईको कुमकुम तिलक एवं अक्षत लगाती है ।
  • तदुपरांत भाईके मुखके चारों ओर अर्धगोलाकार आकृतिमें तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाती है ।
  • इसके उपरांत अर्धगोलाकारमें तीन बार आरती उतारती है ।
  • उपरांत उपहार देकर भाईका सम्मान करती है ।

३ आ. बहनद्वारा भाईका औक्षण करनेके सूक्ष्म-स्तरीय परिणाम

  • औक्षण करते समय बहनमें भावका वलय निर्मित होता है ।
  • ब्रह्मांडसे चैतन्यका प्रवाह औक्षण करनेवाली बहनकी ओर आकृष्ट होता है ।
  • बहनमें इस चैतन्यका वलय निर्मित होता है ।
  • बहनके हाथोंसे चैतन्य तरंगें ताम्रपात्रकी ओर प्रवाहित होकर, उसमें चैतन्यका वलय जागृत होता है ।
  • ईश्वरीय चैतन्यका प्रवाह भाईकी ओर आकृष्ट होता है ।
  • और उसमे चैतन्यका वलय निर्मित होता है ।
  • औक्षण करनेके लिए उपयोगमें लाए गए तेलके दीपमें शक्तिका प्रवाह आकृष्ट होता है ।
  • औक्षण करते समय अर्धवर्तुलाकारमें दीप घुमानेसे दीपके चारों ओर शक्तिका कार्यरत वलय निर्मित होता है ।
  • इस वलयद्वारा शक्तिकी कार्यरत तरंगें भाईकी ओर प्रक्षेपित होती हैं ।
  • भाईकी सूर्यनाडी कार्यरत होती है ।
  • भाईको कार्य करनेके लिए ऊर्जाशक्ति प्राप्त होती है और उसमें शक्तिका वलय निर्मित होता है ।
  • भाईकी देहमें शक्तिके कणोंका संचार होता है  ।
  • और उसके देहके चारों ओर सुरक्षाकवच निर्मित होता है ।
  • बहनद्वारा भाईका औक्षण करनेके कारण वातावरण भी शक्तिके कणोंसे संचारित होता है ।
  • औक्षण करनेके कारण पाताल एवं वायुमंडलसे आक्रमण करनेवाली अनिष्ट शक्तियोंसे भाईका रक्षण होता है ।
  • भाईमें भाव जागृत होता है ।

इससे स्पष्ट होता है कि, भाईदूजके दिन बहनद्वारा भाईका औक्षण किए जानेके कारण बहन तथा भाई दोनोंको लाभ प्राप्त होता है ।

३ इ. बहनद्वारा भावसहित भाईका औक्षण करनेसे होनेवाले लाभ

१. परिजनोंको यम तरंगोंके कारण होनेवाले कष्ट घटते हैं ।

२. यमतरंगोंसे परिजनोंकी रक्षा होती है ।

३. वास्तुका वायुमंडल शुद्ध बनता है ।

४. पृथ्वीका वातावरण सीमित समयके लिए यातना रहित अर्थात आनंददायी रहता है ।

औक्षणके उपरांत भाई बहनके हाथसे बना भोजन ग्रहण करता है । ऐसे बताया है, कि सगी बहन न हो, तो भाईदूजके दिन चचेरी, ममेरी किसी भी बहनके घर जाकर अथवा किसी परिचित स्त्रीको बहन मानकर उसके घर भोजन करना चाहिए ।

बहनद्वारा भाईका औक्षण करनेकी पद्धति एवं भाईद्वारा सात्त्विक उपहार देनेकी पद्धति – दृश्यपट (Video)

४. भाईका बहनको उपहार देना

भोजनके उपरांत भाई यथाशक्ति वस्त्राभूषण, द्रव्य इत्यादि उपहार देकर बहनका सम्मान करता है । यह उपहार सात्त्विक हो, तो अधिक योग्य है । जैसे साधना संबंधी, धर्मसंबंधी ग्रंथ, देवतापूजन हेतु उपयुक्त वस्त्र इत्यादि  ।

५. भाईदूजके दिन स्त्रियोंद्वारा चंद्रमाका औक्षण करनेके परिणाम

कुछ स्थानोंपर स्त्रियां सायंकालमें चंद्रमाका औक्षण कर उसके उपरांतही भाईका औक्षण करती हैं । भाई न हो, तो कुछ स्थानोंपर बहन चंद्रमाको भाई मानकर उनका औक्षण करती है । भाईदूजके दिन स्त्रियोंद्वारा चंद्रमाका औक्षण करनेके परिणाम,

स्त्रीद्वारा चंद्रमाका आवाहन किये जानेसे चंद्रतरंगें कार्यरत होती हैं । ये तरंगें वायुमंडलमें प्रवेश करती हैं । इन तरंगोंकी शीतलताके कारण ऊर्जामयी यमतरंगें शांत होती हैं और वातावरणकी दाहकता घटती है । इससे यमदेवका क्षोभ भी मिटता है । इसके उपरांत वातावरण प्रसन्न अर्थात सुखद बनता है । वातावरणकी इस प्रसन्नताके कारण स्त्रियोंके अनाहत चक्रकी जागृति होती है । परिणामस्वरूप यमदेवताके उद्देश्यसे भाईके पूजनकी विधिद्वारा भाव बढनेमें सहायता मिलती है और इष्ट फलप्राप्ति होती है ।

भाईदूजके दिन स्त्रियोंद्वारा चंद्रमाका औक्षण करनेके परिणाम – दृश्यपट (Video)

६. भाईदूज मनानेसे भाई और बहनको प्राप्त लाभ

यमद्वितियाके अर्थात भाईदूजके दिन ब्रह्मांडसे आनंदकी तरंगोंका प्रक्षेपण होता है । इन तरंगोंका सभी जीवोंको अन्य दिनोंकी तुलनामें ३० प्रतिशत अधिक लाभ होता है । इसलिए सर्वत्र आनंदका वातावरण रहता है ।

१. इस दिन स्त्रीमें देवीतत्त्व जागृत रहता है । इसका लाभ भाईको उसके भावानुसार मिलता है । भाई साधना करता हो, तो उसे आध्यात्मिक स्तरपर लाभ मिलता है । वह साधना न करता हो, तो उसे व्यावहारिक लाभ मिलता है । भाई कामकाज संभालते हुए साधना करता हो, तो उसे दोनों स्तरपर पचास-पचास प्रतिशत लाभ मिलता है ।

२. भाई-बहनका लेन-देन घट जाना: भाईदूजके दिन भाईको बहनके घर बहनके हाथसे बना भोजन करना चाहिए । इससे भाई-बहनके बीच सांसारिक (मायाके नातेसे निर्मित) लेन-देन घटता है । यमद्वितियाकी तिथिपर बहन अपने भाईके कल्याणके लिए प्रार्थना करती है । इसका फल भाईको बहनके भावानुसार प्राप्त होता है । इसलिए बहनका भाईके साथ लेन-देन अंशत: घट जाता है । इसी कारण यह दिन एक अर्थसे लेन-देन घटानेके लिए होता है ।

३. स्त्रीमें विद्यमान विविध प्रकारके भावोंमें एक है ‘वात्सल्यभाव’ । इसमें करुणाकी मात्रा अधिक होती है । भाईदूजके दिन अपने भाईकी आरती उतारते समय उसमें वात्सल्यभाव कार्यरत रहता है ।

४. भाईदूजके दिन जब बहन भाईकी आरती उतारती है, तब भाईके श्वासोच्छवाससे उसकी देहमें तेजतत्त्वके कण प्रवाहित होते हैं, जिससे उसकी आयु बढती है और शरीरके सर्व ओर सुरक्षा-कवच निर्मित होता है ।

५. जब बहन भाईकी आरती उतारती है, तब उसमें विद्यमान अप्रकट अवस्थाके शक्तिस्पंदन, प्रकट स्वरूपमें कार्यरत होते हैं । तत्पश्चात उसका प्रक्षेपण भाईकी दिशामें होता है, जिससे भाईको कार्यशक्ति प्राप्त होती है ।

६. बहनका प्रारब्ध घट जाना: भाईदूजके दिन भाईमें शिवतत्त्व जागृत होता है । इससे बहनका प्रारब्ध एक सहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है । भाईदूजके दिन शास्त्रमें बताए अनुसार कृति करनेके लाभ हमने समझ लिए । इन सूत्रोंसे हिंदु धर्ममें बताए पर्वो उत्सवोंका महत्त्व समझमें आता है ।

संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’

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