संस्कार – सम् अर्थात् सम्यक अर्थात् अच्छे, अच्छी
कार – अर्थात् कार्य, कृति
प्रत्येक कार्य ही अच्छा अर्थात् संस्कारयुक्त होना चाहिए । उदा. केला खाकर हम छिलका फेंक देते हैं यह कृत्य है । केला खाकर छिलका कूडेदान में फेंकना यह प्रकृति । केला खाकर छिलका सडकपर फेंक देना, यह विकृति । अन्य व्यक्तिद्वारा रास्तेपर फेंका हुआ छिलका कूडेदान में फेकना यह संस्कृति ।
भूख लगने के उपरांत खाना यह प्रकृति । अन्य व्यक्ति के लिए रखे खाने का भाग भी स्वयं खा जाना यह विकृति एवं अतिथि तथा घर के सभी सदस्य अर्थात नौकर, गाय इत्यादि का खाना हुआ अथवा नहीं यह देखकर बाद में भगवान को नैवेद्य समर्पित कर प्रसाद समझकर खाना यह संस्कृति ।
मनन (चिंतन) कर सर्वांगीण विचार कर कृति करनेवाला अर्थात् मानव । विचार एवं कृति अच्छी होने के लिए संस्कारों की आवश्यकता है । भारतीय शास्त्र के अनुसार प्रत्येक कृति ही संस्कारयुक्त होनी चाहिए ।
संस्कार अर्थात सदगुणों को गुणा करना अर्थात् बढाना एवं दोषों का भागफल अर्थात् दोषों को घटाना । संस्कार करना अर्थात् अच्छी आदतें लगाना एवं बुरी आदतें निकाल कर फेंकना । बच्चोंपर अच्छे संस्कार करना अर्थात् उन्हें ‘मां-पिताजी को प्रतिदिन नमस्कार करें’, ‘अन्यो की निंदा न करें’ इत्यादि सिखाना; परंतु वह भी कैसे सिखाना चाहिए । मात्र तत्त्वज्ञान कहकर नहीं, कथाएं कहकर नहीं, चॉकलेट, आईस्क्रीम का लालच दिखाकर नहीं, अपितु अपनी कृतिद्वारा । आठ साल के बच्चों को प्रतिदिन आयु से बडों को नमस्कार करने की आज्ञा देंगे, तो चार दिन करेंगे । पांचवे दिन कहेगा”मैं नही करूंगा’’। उसे नमस्कार करने से होनेवाले लाभ के बारे में तत्त्वज्ञान बताया, तो भी उपयोग नहीं होगा । यदि आपको लगता है कि, आपके बच्चे ज्येष्ठों को नमस्कार करें, तो एक मात्र उपाय है, कि आज से आप घर के सर्व बडों को प्रतिदिन एक बार नमस्कार करें । बच्चे को एक बार भी नमस्कार करने के लिए न कहें । चार दिनों के उपरांत ही आपका बच्चा आपके पीछे आकर घर के ज्येष्ठों को नमस्कार करने लगेगा । उसे लज्जा आएगी, कि मेरे मां-पिताजी प्रतिदिन दादा-दादी को नमस्कार करते हैं । मैं मात्र बेशरम की तरह खडा हूं । संस्कार करना अर्थात् मौन रहकर कृत्य करते रहना !