जन्म
कोकण का एक युवा माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने हेतु संभाजीनगर (औरंगाबाद) जाता है, वहां वह क्रांतिकार्य में भाग लेता है, उसके हाथ स्वा. सावरकर की लंदन से भेजी गई पिस्तौल पडती है और वह एक कपटी एवं उच्चपदस्थ अंग्रेज का वध कर देता है । ये सब अतक्र्य तथा असंभव ! परंतु यह असंभव कृत्य संभव कर दिखानेवाले युवा का नाम था, अनंत लक्ष्मण कान्हेरे !
अनंतराव का जन्म १८९१ में रत्नागिरी जनपद के आयनी-मेटे गांव में हुआ । अंग्रेजी शिक्षण हेतु वह अपने मामा के पास संभाजीनगर (औरंगाबाद) गए थे । कुछ वर्षों के पश्चात ही वे गंगाराम मारवाडीजी के पास किराए का कमरा लेकर रहने लगे । नाशिक के स्वतंत्रतावादी गुप्त संस्था के काशीनाथ टोणपेने गंगाराम तथा अनंतराव को गुप्त संस्था की शपथ दिलाई । मदनलाल धींगरा के कर्जन वायली से प्रतिशोध लेने के उपरांत अनंतराव भी ऐसी कृति करने के लिए अधीर हो उठे । गंगारामने एक बार अनंतराव के हाथपर तपता हुआ लोहे का चिमटा रखकर तथा पुनः एक बार जलती हुई लालटेन की कांच दोनों हाथों से पकडने को कहकर उनकी परीक्षा ली । दोनों पराक्रम करके भी अनंतराव की मुखमुद्रा निर्विकार रही !
जैक्सन वध की योजना
उसी समय नाशिक के जनपदाधिकारी के पदपर जैक्सन नामका क्रूर एवं ढोंगी अधिकारी आया । उसने अधिवक्ता (वकील) खरे, कीर्तनकार तांबेशास्त्री, बाबाराव सावरकर आदि देशभक्तों को कारागृह में डाल दिया था । ऐसे अनेक दुष्कर्म कर जैक्सनने अपना मृत्युपत्र लिख लिया था । इस कार्य हेतु नियतिने ही अनंतराव का चुनाव किया था । जैक्सन को मारने के लिए अनंतरावने पिस्तौल चलाने तथा अचूक निशाने का अभ्यास किया । जनपदाधिकारी कार्यालय में जाकर उसने जैक्सन को ठीक से देख लिया । ‘जैक्सन को मारनेपर फांसी चढना पडेगा, तब माता-पिता के पास स्मरणार्थ मेरा एक तो छायाचित्र हो’; इस हेतु उन्होंने स्वयं का एक छायाचित्र भी खिंचवाया ।
जैक्सनपर उसने चार गोलियां दागी !
२१ दिसंबर, १९०९ को जैक्सन के सम्मान हेतु नाशिक के विजयानंद नाट्यगृह में किर्लोस्कर नाटक मंडली की ओर से ‘शारदा’ नाटक का प्रदर्शन आयोजित किया गया था । जैक्सन द्वार से नाट्यगृह में प्रवेश कर रहा था, वहां पूर्व से ही बैठे अनंतरावने उसपर गोली चला दी । वह उसकी काख के नीचे से निकल गई । तत्परता से अनंतरावने जैक्सनपर सामने से चार गोलियां चलाई । जैक्सन वहीं लुढक गया । अनंतरावने शांतिपूर्वक स्वयं को आरक्षकों के सुपुर्द कर दिया ।
फांसी का दंड
जैक्सन वध के आरोप में अनंतराव तथा उनके सहयोगियों अण्णा कर्वे और विनायक देशपांडे को फांसी का दंड दिया गया । १९ अप्रैल १९१० को ठाणे के कारागृह में प्रात: ७ बजे ये तीनों निडर क्रांतिकारी फांसी चढ गए । उनके संबंधियों की विनतीपर ध्यान न देते हुए ब्रिटिश सरकारने ठाणे की खाडी के तटपर इन तीनों की मृतदेहों को जला दिया तथा उनकी राख का चिह्न भी न रहे इस हेतु राख खाडी के जल में फेंक दी।
अपनी आयु के १८वें वर्ष में देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करनेवाले हुतात्मा अनंत कान्हेरे जैसे अनेक बलिदानियों के कारण ही आज हम स्वतंत्र हैं ।