शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक
सिंहासनारूढ होने हेतु, बत्तीस मन का सुवर्ण का सिंहासन तैयार करवाया । अमूल्य नवरत्न जितने कोष में थे, उनमें से खोजकर बहुमूल्य रत्न सिंहासन में जडवाए गए । रायरीका नाम ‘रायगड’ रखा गया । सिंहासन का स्थल गढ ही रखा गया । सप्तमहानदियों तथा मुख्य-मुख्य नदियों, समुद्र तथा नामांकित तीर्थो के जल लाए गए । सुवर्ण के कलश तथा पात्र बनाए गए । आठ कलश तथा आठ पात्रों से अष्टप्रधानोंद्वारा राजा का अभिषेक करने का निश्चय कर, ‘शालिवाहन शके १५९६, ज्येष्ठ मास शुक्ल त्रयोदशी को शुभदिन देखकर शुभ मुहूर्त रखा गया ।’
साढे चार सहस्र राजाओं को निमंत्रण दिया गया । रायगडपर साढेचार सहस्र राजा एकत्रित हुए । गागाभट्ट पवित्र सप्तनदियों का जल लाए । शिवाजी महाराज ब्रह्ममुहूर्तपर उठे, स्नान किया, शिवाई माता का अभिषेक किया तथा जिजामाता का दर्शन किया । कौडियों की माला डाली, सिरपर टोप पहना, भवानीमां की तलवार कमर में लटकाई तथा गडपर घूमने लगे ।
शिवाजी महाराज के सभागृह में आते ही साढे चार सहस्र राजाओंने मानवंदना की, बत्तीस मन का सिंहासन ऊपर रखा था तथा उसपर चढने हेतु तीन सीढियां थीं । पहली सीढीपर पैर रखते ही राजा का हृदय डोल गया, राजा के नेत्रों में अश्रु भर आए तथा तत्क्षण उन्हें स्मरण हुआ ‘राजे लाख मारे गए चलेगा; परंतु लाखों का संरक्षक नहीं मरना चाहिए , शिवा नाई कितने ही जन्म लेंगे, शिवा काशीद जन्म लेंगे परंतु प्रजा का राजा, शिवाजी राजा पुनः जन्म नहीं लेगा राजे!’, राजा के बांए नेत्र में आंसू आ गए ।
राजाने जैसे ही दूसरी सीढीपर पैर रखा उन्हें स्मरण हुआ ‘राजा आप कुशलपूर्वक विशाल गढ जाएं तथा पांच तोपों की सलामी दें । जब तक ये कान पांच तोपों की सलामी नहीं सुनते, तब तक यह बाजीप्रभू देशपांडे देह नहीं छोडेगा राजे !’ राजा के दाएं नेत्र से आंसू की धारा बह चली ।
राजा को तीसरी सीढीपर पैर रखते ही स्मरण हुआ ‘राजे पहले विवाह कोंडाणा का, और फिर मेरे रायबा का । बचकर, जीत कर आया राजे, तो बच्चे का विवाह करूंगा नहीं तो माता-पिता समझकर आप ही उसका विवाह कर दीजिए ।’ राजा के अश्रु निरंतर बहने लगे और वे फूट-फूटकर रोने लगे ।
साढेचार सहस्र राजाओं को कुछ न सूझे । आज आनंद का दिन, अनाथ हुए हिंदुओं को पिता मिलेगा, मराठी मिट्टी को नायक मिलेगा, शिवाजी राजा होगें फिर राजा के नेत्रों में आंसू … तभी वहां खडे एक वयोवृद्ध व्यक्ति को राजाने बुलाया । मदारीकाका आगे आए और पूछा, ‘राजा आज आनंद का दिन है और तू रोता है ?’ इसपर राजा बोलें, ‘‘काका जिनके कारण मुझे सिंहासन मिला वे ही देखने को नहीं रहे । किस मुख से सिंहासनपर बैठूं ? काका, यह सिंहासन मुझे चुभेगा । इस ऋण से मुक्त होने का कुछ तो मार्ग बताओ । उन स्वर्गवासियों का प्रतिनिधि समझकर आप ही कुछ मांग लें ।’’ मदारीकाका बोले, ‘‘राजा जो चले गए उन्होंने कुछ नहीं मांगा, तो मेरे जैसा क्या मांगेगा ?’ राजा बोले, ‘‘कुछ तो मांगो काका, जो मेरा ऋण उतर सके ।’’ इसपर मदारीकाकाने कहा, ‘‘ऐसा कहता है ना शिवबा, तो इतना ही दे, इस बत्तीस मन के सिंहासन की चादर बदलने का काम राजा इस दीन को दें; और कुछ नहीं चाहिए ।’
शिलालेख
- कृष्णाजी अनंत सभासद विरचित ‘शिवछत्रपति का चरित्र ।’ (छत्रपति शिवराय के प्रथम चरित्रकार) कलम ८७, राज्याभिषेक : वेदमूर्ती गागाभट वाराणसी से आकर रायेगडी (रायगड) स्वामी को (शिवाजी महाराजजी को) मुंजी बंधन (मुंज कर) पटाभेषक सिंहासनारूढ हुए । शके १५९६ आनंदनाम संवछरे (संवत्सर) चैत्र सुध (शुद्धं) प्रतिपदा शुक्रवार ।
- मंत्री दत्तजी त्रिमल वाकेनिविस विरचित ‘९१ कलमी बखर’‘शाके षण्णव बाण भूमि गणानादानंद संवत्सरे ज्योतिराज मुहूर्त किर्ती महिते शुक्लेष सार्पे तिर्थो’।
- रायगड निमिर्ति के समय (राज्याभिषेक के समय) श्री शिवराय की आज्ञा से रायगड के जगदीश्वर प्रासाद में लगाए गए शिलालेख का उल्लेख । अर्थात ज्योतिषशास्त्र के अत्यंत शुभ कहे जानेवाले ऐसे ‘शालिवाहन शके १५९६, आनंदनाम संवत्सरे, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी’ इस शुभदिन शिवराय का राज्याभिषेक हुआ । ज्येष्ठ शुक्ल १२ शुक्रवार घटी २१ पले ३४ वी ३८/४० सी ४२ तीन घटिका रात्रि रह गई तब राजश्री शिवाजी राजे भोसले सिंहासनपर बैठे । छ १० रबिलवल सु।। खमस सबैन अलफ.- जेधे शकावली.
श्री शिवचरित्र कहनेवाले उपरोक्त लिखित सभी वास्तविक साधन तथा रायगड निमिर्ति का सबल प्रमाण श्री शिवाजी महाराज की अनुमति से हिरोजीने जगदीश्वर प्रासाद में लगाए गए शिलालेख इस सबसे यह निश्चित होता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का तिथिनुसार राज्याभिषेक हुआ ।
शिवराई चलन
आज के दिन से शिवाजी राजाने शिवराज्याभिषेक शक प्रारम्भ किया तथा शिवराई चलन स्थापित किया ।
स्वाभिमान की साक्षात मूर्ति शिवाजी राजा आज के दिन छत्रपति हुए । सारी अनाथ हुई जनता को राजा मिला । वंश-उपार्जित छत्र के नीचे नहीं, तो स्वयं के सैनिकों की सहायता से उठाए गए छत्र के नीचे शिवाजी राजा बैठे तथा स्वयं घोषित नहीं, लोक घोषित छत्रपति बने ।
आइए, जो शिवराज्य-सुराज्य स्थापित करने हेतु राजा छत्रपति हुए, वह राज्य पुनः स्थापित तथा सक्षम करने हेतु जितना संभव हो उसके अनुसार प्रयत्न करें ।