शिवाजी महाराज : हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक एवं एक आदर्श राज्यकर्ता !

        हिंदवी साम्राज्य के संस्थापक तथा एक आदर्श शासनकर्ता के रूप में पहचाने जानेवाले छत्रपति शिवाजीराजे भोसले, एक सर्वसमावेशक, सहिष्णु राजा के रूप में महाराष्ट्र एवं अन्यत्र भी वंदनीय हैं । शत्रु के विरुद्ध लडने हेतु महाराष्ट्र के पहाडों-पठारों में अनुकूल गुरिल्ला पद्धति से युद्ध कर, उन्होंने तत्कालीन बीजापुर की आदिलशाही, अहमदनगर की निजामशाही तथा शक्तिशाली मुगल साम्राज्य का डटकर सामना किया तथा मराठी साम्राज्य का बीजारोपण किया । आदिलशाही, निजामशाही तथा मुगल साम्राज्य शक्तिशाली थे, तब भी महाराष्ट्र में उनकी शक्ति स्थानीय सरदारों तथा किलेदारोंपर आधारित थी । वे सरदार जनतापर अन्याय-अत्याचार करते थे । शिवाजी महाराजने उस अन्याय-अत्याचार से जनता को मुक्त करवाया, तथा उत्तम शासन का एक उदाहरण भावी राज्यकर्ताओं के समक्ष प्रस्तुत किया । छत्रपति के व्यक्तित्त्व तथा कृतित्त्व का अवलोकन करनेपर कुछ बातें सामने आती हैं । शौर्य, पराक्रम, शारीरिक क्षमता, ध्येय, कुशल संगठन, कठोर तथा नियोजनबद्ध प्रशासन, नीतिज्ञ, साहस, दूरदृष्टि… आदि उच्च कोटि के गुण महाराज के व्यक्तित्त्व में  सम्मिलित थे ।

छत्रपति शिवाजी महाराजने

  • बचपन तथा युवावस्था में शारीरिक क्षमता बढाने हेतु स्वयं कठोर परिश्रम किया ।
  • पराक्रम हेतु शस्त्रों का अभ्यास किया ।
  • सीधे-सादे भोले-भाले मराठों को संगठित कर उन्हें निष्ठा तथा ध्येय के प्रति जागृत किया ।
  • स्वयं शपथ लेकर हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के कार्य में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दिया ।
  • महत्त्वपूर्ण किले जीते, नए किले निर्माण किए ।
  • उचित समय आक्रमण तथा आवश्यकता पडनेपर संधि यह सूत्र अति कुशलता से अपनाकर अनेक शत्रुओं का मानमर्दन किया, साथ ही विश्वासघात, धोखे, स्वराज्यांतर्गत कलह का भी सामना किया ।
  • आक्रमण के समय गुरिल्ला पद्धति / कृष्णनीति अपनाकर उसका चतुराई से उपयोग किया ।
  • सामान्य प्रजा की, कृषकों की, शूर सरदारों के धार्मिक स्थानों की अनेक व्यवस्थाएं की ।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण कृति यह की, कि अष्टप्रधान मंडल की स्थापना कर हिंदवी स्वराज्य के राज्यकार्यभार की परिपूर्ण व्यवस्था की ।
  • राजभाषा को विकसित करने का गंभीरतापूर्वक प्रयत्न किया; विविध कलाओं को राजाश्रय दिया ।
  • तथा थके-हारे, दबे जनामानस में स्वाभिमान, पराक्रम तथा स्वराज्य की निष्ठा जागृत की ।

यह सब उन्होंने केवल ५० वर्ष की आयु में साध्य कर लिया ।

१७ वीं शताब्दी में जागृत हुआ वह स्वाभिमान, वह स्वराज्यनिष्ठा आज भी सभी लोगों को प्रेरणा देती है ।

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