औरंगजेब को २७ वर्ष तक उत्तर हिंदुस्तान से दूर रखनेवाले संभाजीराजा
संभाजीराजाने जो अलौकिक कार्य अपनी अल्प आयु में किए, उसका प्रभाव संपूर्ण हिंदुस्तानपर पडा । इसलिए प्रत्येक हिंदु को उनका कृतज्ञ होना चाहिए । उन्होंने औरंगजेब की आठ लाख सेना का साहस एवं निडरता से सामना किया तथा अधिकांश मुगल सरदारों को युद्ध में पराजित कर उन्हें भागने के लिए विवश कर दिया । इसलिए औरंगजेब दीर्घकाल तक महाराष्ट्र में युद्ध करता रहा । संपूर्ण उत्तर हिंदुस्तान उसके दबाव से मुक्त रहा । इसे संभाजी महाराज का सबसे बडा कार्य कहना पडेगा । उन्होंने औरंगजेब के साथ समझौता किया होता अथवा उसका आधिपत्य स्वीकार किया होता तो वह फिर दो-तीन वर्ष में ही उत्तर हिंदुस्तान में आ धमकता; परंतु संभाजी राजा के संघर्ष के कारण औरंगजेब को २७ वर्ष दक्षिण भारत में ही रूकना पडा । इससे उत्तर में बुंदेलखंड, पंजाब और राजस्थान में हिंदुओं की नई सत्ताएं स्थापित होकर हिंदु समाज को सुरक्षा मिल गई ।
संभाजीराजाजी के सामर्थ्य से पुर्तगालियों को भय
संभाजीराजाने गोवापर आक्रमण कर धर्माभिमानी पुर्तगालियों का मस्तक झुका दिया । उनसे समझौता कर उन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया । गोवा प्रदेश में पुर्तगालियों के धर्मप्रसार को संभाजीराजाने रोक लगा दी; जिससे गोवा में हिंदु सुरक्षित हो गए । इसे विस्मरण करना असंभव है । पुर्तगाली संभाजीराजा से अत्यधिक भयभीत रहते थे । उन्होंने अंग्रेजों को लिखे हुए पत्र में कहा कि, ‘‘आज की परिस्थिति में संभाजीराजा ही सर्वशक्तिमान हैं, यह हमारा अनुभव हैं !’’ शत्रु से प्राप्त यह प्रमाणपत्र महाराजजी केसामर्थ्य का आभास कराता है ।
हिंदुओं के शुद्धीकरण के लिए निरंतर सजग रहनेवाले संभाजीराजा
शिवाजी महाराजजीने नेताजी पालकरजी को फिर से हिंदु धर्म में ले लिया, यह सभी को ज्ञात है; परंतु संभाजी महाराजजीने ‘शुद्धीकरण के लिए’ अपने राज्य में स्वतंत्र विभाग की स्थापना की थी, यह विशेष है । हरसुल गांव के कुलकर्णी उपनाम के ब्राह्मण की कथा संभाजीराजाजी के इतिहास में लिखी है । बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया, यह कुलकर्णी हिंदु धर्म में आने के लिए बहुत प्रयत्न कर रहा था; परंतु स्थानीय ब्राह्मण उसकी बात नहीं सुनते थे । अंत में यह ब्राह्मण संभाजी राजाजी से उनके अत्यधिक व्यस्त समय में मिला, उसने अपनी पीडा राजा के सामने रखी । महाराजजीने तुरंत उसका शुद्धीकरण करवाकर उसे पुनः स्वधर्म में प्रवेश दिलाया । संभाजीराजाजी की इस उदारता के कारण बहुत से हिंदु पुनः स्वधर्म में आ गए !
संभाजीराजाजी का तेजपूर्ण धर्माभिमान !
संभाजीराजाजी के बलिदान के इतिहास से लोग भली-भांति परिचित नहीं हैं । १ फरवरी १६८९ को पत्नी के सगे भाई गणोजी शिर्के की गद्दारी के कारण संगमेश्वर में संभाजीराजा अन्य जहांगीरों की समस्या सुनते समय पकड लिए गए । उस समय मुगलों के लाखों सैनिकों के संरक्षण में संभाजीराजाजी का घोर अपमान किया गया । उनको शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं दी गई । संभाजीराजाजी का उस समय चित्रकारद्वारा बनाया गया चित्र विदुषक की वेश-भूषा में, हाथ पैरों को लकडी में फंसाकर रक्तरंजित अवस्था में, अहमदनगर के संग्रहालय में आज भी देखा जा सकता है। असंख्य यातनाएं सहनेवाले यह हिंदु राजा चित्र में अत्यंत क्रोधित दिखाई देते हैं । संभाजीराजाजी के स्वाभिमान का परिचय इस क्रोधित भाव भंगिमा से ज्ञात होता है ।
१५ फरवरी १६८९को औरंगजेब से संभाजी राजाजी की पेडगांव के किले में भेंट हुई । ‘काफिरों का राजा मिल गया’ इसलिए औरंगजेबने नमाज पढकर अल्लाह को धन्यवाद दिया एवं अत्यधिक आनंद दर्शाया । उस समय संभाजीराजाजी को औरंगजेब के मंत्री इरवलासखान ने शरणागत होने के लिए कहा । संतप्त संभाजीराजाजीने औरंगजेब को झुककर अभिवादन करने के लिए मना कर दिया । वह निर्णायक क्षण था । महाराजजीने अपने व्यक्तिगत सुख की आशा की अपेक्षा हिंदुत्व का गर्व महत्त्वपूर्ण माना । अपने पिताजा के निर्मित स्वाभिमान की महान परंपरा को उन्होंने बनाए रखा । इसके पश्चात दो दिनों में औरंगजेब के अनेक सरदारोंने उनका मन परिवर्तन करने का प्रयास किया । उन्हें ‘मुसलमान बन जानेपर जीवनदान मिलेगा’ कहा गया; परंतु स्वाभिमानी संभाजीराजाजीने उन मुसलमान सरदारों का निरंतर अपमान किया ।
इतिहास में धर्म के लिए अमर होनेवाले संभाजीराजा
अंत में औरंगजेबने राजाजी की आंखें फोड डाली, जीभ काट दी, फिर भी राजाजी को मृत्यु स्पर्श न कर सकी । दुष्ट मुगल सरदारोंने उनको कठोर यातनाएं दी । उनके अद्वितीय धर्माभिमान के कारण यह सब सहन करना पडा । १२ मार्च १६८९को गुढी पाडवा (नववर्षारंभ) था । हिंदुओं के त्यौहार के दिन उनका अपमान करने के लिए ११ मार्च फाल्गुन अमावस्या के दिन संभाजीराजाजी की हत्या कर दी गई । उनका मस्तक भाले की नोकपर लटकाकर उसे सर्व ओर घुमाकर मुगलोंने उनकी अत्यधिक अपमान किया । इस प्रकार पहली फरवरी से ग्यारह मार्च तक ३९ दिन यमयातना सहन कर संभाजीराजाजीने हिंदुत्व के तेज को बढाया । धर्म के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करनेवाला यह राजा इतिहास में अमर हो गया । औरंगजेब इतिहास में राजधर्म को पैरों तले रौंदनेवाला अपराधी बन गया ।
संभाजीराजाजी के बलिदान के बाद महाराष्ट्र में क्रांति हुई
संभाजीराजाजी के बलिदान के कारण महाराष्ट्र उत्तेजित हो उठा । पापी औरंगजेब के साथ मराठों का निर्णायक संघर्ष आरंभ हुआ । ‘पत्ते-पत्ते की तलवार बनी और घर-घर किला बना, घर-घर की माताएं, बहनें अपने पतियों को राजाजी के बलिदान का प्रतिशोध लेने को कहने लगी’ इसप्रकार उस काल का सत्य वर्णन किया गया है । संभाजीराजाजी के बलिदान के कारण मराठों का स्वाभिमान फिर से जागृत हुआ, यह तीन सौ वर्ष पूर्व के राष्ट्रजीवन की अत्यंत महत्त्वपूर्ण गाथा है । इससे इतिहास को एक नया मोड मिला । जनता की सहायता और विश्वास के कारण मराठों की सेना बढने लगी और सेना की संख्या दो लाख तक पहुंच गई । सभी ओर मुगलों का प्रत्येक स्तरपर विरोध होने लगा । अंत में २७ वर्ष के निष्फल युद्ध के उपरांत औरंगजेब का अंत हुआ और मुगलों की सत्ता शक्ति क्षीण होने लगी एवं हिंदुओं के शक्तिशाली सामराज्य का उदय हुआ ।
२७ वर्ष औरंगजेब के पाशविक आक्रमण के विरूद्ध मराठोंद्वारा किए गए संघर्ष में हंबीरराव, संताजी, धनाजी ऐसे अनेक योद्धा थे; परंतु संभाजीराजाजी के बलिदान के पश्चात समाज में हुई जागृति के कारण युद्ध को एक नई दिशा मिली ।
शेर शिवा का छावा था ।देश धरम पर मिटनेवाला तेज:पुंज तेजस्वी आँखे, दोनो पैर कटे शंभूके, जिव्हा काटी खून बहाया, रामकृष्ण, शालिवाहन के, वर्ष तीन सौ बीत गये अब, मातृभूमी के चरण कमल पर, |