आबाजी सोनदेव ने आगे बढकर शिवाजी महाराज को अभिवादन किया और सील-बंद कोशका संदूक प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘‘आपके आशीर्वाद से हमने बीजापुर का यह कोश अपने अधिकार में ले लिया है । कोश के साथ उनके सब सैनिक, सरदार सूबेदार, मुल्ला एवं मूहम्मद को बंदी बना लिया हैं । महाराज ! इस आक्रमण के समय एक बहुमूल्य वस्तू भी हमें मिली ।’’ इतना कहकर आबाजी सैनिकों के पीछेसे बुरकापोश सुंदरी को आगे ले आए और झुककर बोले ,‘‘महाराज, यह है वह बेशकीम…’’ उसका वाक्य तो रहा ही किंतु उनके शब्द भी पूरे न हो सके । शिवाजी महाराज क्रोध में आपे से बाहर हो गए और गरज उठे, ‘‘खामोश! बेशर्म आबाजी, खामोश ! यह सब करने से पहले आपके हाथ टूट क्यों नहीं गए, यह कहने से पहले जीभ कटकर गिर क्यों नहीं गई । आखिर हम ने स्वराज्य की स्थापना का व्रत ही क्यों लिया है ? क्या दूसरों की बहू-बेटियों की अस्मत लूटने के लिए ? दूसरों के धर्मस्थान नष्ट करने के लिए ? कभी नहीं । हम हिंदु हैं । सबसे बडे शत्रु की बहू-बेटी भी हमारी मां-बेटी है, धर्मपुत्री है ।’’ महिला ने बुर्का मुंह से हटा दिया । शिवाजी महाराज ने महिला से कहा, ‘‘बहन! हम आपको किस मुंह से क्षमा मांगे । आप बंदी नहीं, हमारी प्रतिष्ठित अतिथि हैं । आप अपने सैनिकों के साथ जाने के लिए स्वतंत्र हैं ।’’‘‘ किन लफ्जों में आपका शुक्रिया अदा करूं, ऐ मेरे रहनुमा ! माफी मागंकर मुझे गैरत में न डालिए । आप जैसे फरिश्तों की कामयाबी में ही कौम और मुल्क की इज्जत छिपी है,’’ कहते हुए उस सुंदरी ने झुककर सलाम किया और पुन: बुर्का मुंहपर ओढ लिया ।