विद्यार्थियों का शिक्षकों के प्रति भाव कैसा होना चाहिए ?

प्राचीन काल में शिक्षकों को गुरु अथवा आचार्य संबोधित करते थे । गुरु-शिष्य परंपरा हिंदु संस्कृति की अनमोल विशेषता है । गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन । जैसे गुरु शिष्य को ब्रह्मज्ञान देते हैं, वैसे ही शिक्षक उनके पास जो विद्यारूपी अमूल्य धन है, उसे विद्यार्थियों को देते हैं । इसी कारण उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु शिक्षक दिन गुरुपूर्णिमा के दिन मनाएं । गुरुपूर्णिमा को शिक्षक दिन मनाने के कारण अपनी संस्कृति का जतन होगा ।

१. जीवन का योग्य दिशादर्शक

शिक्षक हमारे जीवन का अज्ञान दूर कर व्यवहार के अनेक विषयों का ज्ञान देते हैं । हमारे जीवन के योग्य दिशादर्शक शिक्षक ही हैं । हमें उनका प्रतिदिन आदर ही करना चाहिए ।

२. शिक्षक के दंड देने का कल्याणकारी हेतू

जीवन में हमें अयोग्य काम करना टालना चाहिए । आदर्श आचरण करें, इस हेतुसे ही शिक्षक हमें माता के समान दंड देते हैं । उनका विचार यह होता है कि हम आदर्श बनें । अज्ञान के कारण उनके द्वारा दंडित करनेपर हमें क्रोध आता है; परंतु उनकी कृति का उद्देश्य हमें समझना चाहिए । जिस-प्रकार कुम्हार कच्चे मटके को पक्का बनाने के लिए मारता है उसी-प्रकार शिक्षक हमें दंड देते हैं । शिक्षकों को लगता है कि, ‘बच्चों के जीवन को योग्य आकार मिले उनका जीवन समाज के लिए आदर्श एवं आनंददायी बने ।’

३. शिक्षक से निरंतर सीखने की स्थिति में रहें

शिक्षकों को अनेक विषयों का ज्ञान होता है; इसी कारण हम उनके पास जाते समय निरंतर सीखने की स्थिति में रहकर हम यदि शिक्षक से शंका पूछते हैं, तो उन्हें भी सिखाने में आनंद मिलता है । परोक्ष रूप से वे आगे का-आगे का ज्ञान स्वयं ही देते हैं; इसी कारण हमें निरंतर सीखने की स्थिति में रहें ।

४. शिक्षकों का आज्ञापालन करें

समाज में विद्यमान योग्य-अयोग्य बातों का हमें ज्ञान नहीं होता । शिक्षक ज्ञानी होते हैं ; इसी कारण वे जब कोई बात ‘करें अथवा न करें’, ऐसे कहते हैं, तब उनकी आज्ञानुसार त्वरित कृत्य करनेपर हमारी प्रगति होती है । इसमें शंका न रखें ।

५. शिक्षकों को प्रतिदिन कृतज्ञता के भाव से नमस्कार करना

ईश्वर ही हमें शिक्षकों के माध्यम से अनेक विषयों का ज्ञान देता है । वे हमपर मां समान प्रेम करते हैं । उन्हें नमस्कार करने से ‘मैं अज्ञानी हूं’, इसका सतत भान रहता है । ‘विद्या विनयेन शोभते’, इस उक्ति के द्वारा नमस्कार की पद्धतिद्वारा ‘नम्रता’ गुण आत्मसात होता है । हम जितने नम्र होंगे, ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता उतनी अधिक होगी । इसलिए सतत कृतज्ञता का भाव जागृत रखना चाहिए । ‘उनके कारण ही मैं ज्ञानी बनूंगा एवं मेरा जीवन समृद्ध होगा’ यह भाव सतत रखने का अर्थ है, कृतज्ञता । वे मुझे गणित सिखाते हैं; इसीलिए मैं व्यवहार अच्छी तरह करता हूं, वे मुझे भाषा विषय सिखाते हैं; इसी कारण मैं संवाद साध सकता हूं, यह ध्यान में रखकर निरंतर कृतज्ञता व्यक्त करें ।

६. शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता एवं शरणागत भाव रखें

हम शिक्षक की ओर मां के समान ही आदर से देखें । वे हमें प्रेम करते हैं । वे प्रत्येक बात निरपेक्ष भाव से हमें सिखाते हैं । आज हमने शिक्षक के प्रति भाव वैसा होना चाहिए , यह देखा । शिक्षक अर्थात् हमारे जीवन के गुरु । निरंतर उनके प्रति कृतज्ञता एवं शरणागत भाव रखने से हमारा सर्वांगीण विकास होगा ।

– श्री. राजेंद्र पावसकर

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