शिक्षक ही सुसंस्कृत पीढी निर्माण कर सकते हैं !

शिक्षक यानी समाज के योग्य दिशानिर्देशक ! शिक्षक जिस पीढी का निर्माण करते हैं, वही पीढी राष्ट्र का कार्यभार संभालती है । पर्याय से राष्ट्र के पुनर्निर्माण की मुख्य नींव ही शिक्षक हैं।

सद्यस्थिति

आज के शिक्षकों की समस्याएं ही (शिकायतें) अधिक होती हैं ।

१. बच्चे बहुत विचित्र बर्ताव करते हैं ।

२. वे हमारी बातें सुनते ही नहीं ।

३. बच्चे बहुत चंचल हैं ।

४. शिक्षकों के साथ बहुत ही उद्दाम/निरंकुश ढंग से बर्ताव करते हैं ।

५. कक्षा में एक दूसरे को कष्ट देते हैं ।

६. अभ्यास नहीं करते ।

बच्चों के बर्ताव में बदलाव/परिवर्तन न होने के लिए शिक्षणपद्धति ही पूर्णत: जिम्मेदार

उपरोक्त सभी समस्याओं का चिंतन करना चाहिए । इतने वर्ष हम बच्चों को पढाते हैं । प्राय: सभी शिक्षक प्रामाणिकता से ही पढाते हैं, फिर भी हमें बच्चों में थोडा भी बदलाव दिखाई नहीं देता । शिक्षक बंधुओं को यह सब मानना ही पडेगा, इसका मुख्य कारण है अंग्रेजी शिक्षा पद्धति । यह हमारी शिक्षणपद्धति न होकर मेकॉले की शिक्षणपद्धति है । इस पद्धति से हृदयशून्य व्यक्ति तैयार होते हैं तथा उनके विषैले फल ही हमें देखने को मिल रहे हैं । अर्थात बच्चों के बर्ताव में बदलाव/परिर्वतन न होने के लिए शिक्षणपद्धति ही पूर्णत: जिम्मेदार है ।

अध्यात्मशास्त्र के अनुसार कुलदेवी की उपासना करने से बर्ताव में बदलाव/परिवर्तन होना

यदि शिक्षणपद्धति जिम्मेदार है , तो हमें ही इसमें से मार्ग निकालना होगा ; क्योंकि हम समाज के मार्गदर्शक हैं । यदि समाज दिशाहीन होता हो तो उसे दिशा देना , शिक्षक होने के नाते, निश्चित रूप से, यह कर्तव्य हमारा ही होता/बनता है । शिक्षक ही इसमें से सुकर/सरल मार्ग निकाल सकते हैं । शिवाजीराजा ने अल्प आयु में ही हिंदवी स्वराज्य स्थापना करने की शपथ ली । उसका कारण है भवानी देवी की उपासना ! यानी इसमें एक मुद्दा ध्यान में आता है कि ईश्वर के नामस्मरण से विद्यार्थियों के बर्ताव में परिवर्तन होता है; यही अटल/ध्रुव सत्य है । यह सत्य शिक्षकोंद्वारा स्वीकारकर स्वयं आचरण में लानेपर निश्चित ही अगली पीढी सुसंस्कृत होगी । प्रथम शिक्षकों को भगवान की उपासना करनी चाहिए । हम सभी किसी न किसी भगवान की उपासना तो करते ही हैं; किंन्तु उसकी अपेक्षा, अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, हमें अपनी कुलदेवी की उपासना करनी चाहिए ।

उपासना कर आनंदी होने वाला एक शिक्षक भी अनेक बच्चों को आनंद दे सकता है

शिक्षकोंद्वारा उपासना करने से उनकी वाणी में चैतन्य आनेपर बच्चे भी उनकी बताई हुई हरएक बात सुनकर तुरंत ही अपने आचरण में लाएंगे । यहां चिंतन का एक मुद्दा ध्यान में आता है कि समाज के निर्माता के रूप में हम अपने जीवन में उपासना को कितना महत्व देते हैं, यह सब इसपर ही निर्भर है । उपासना अर्थात भक्ति के बलपर हम विद्यार्थियों में परिवर्तन ला सकते हैं । अत: शिक्षकोंद्वारा अपनी उपासना बढानी चाहिए । इसके दो लाभ हैं, कुलदेवी की उपासना से हम जिस दबाव तथा मानसिक तनाव में रहते हैं, उससे मुक्त हो सकते हैं तथा नकारात्मक विचारों से दूर हो सकते हैं, अर्थात इस पर्याय से हम आनंदी हो सकते हैं । जो एक शिक्षक आनंदी हुआ हो वह अनेक बच्चों को आनंद दे सकता है ।

‘सभी शिक्षक कुलदेवता के उपासक बनकर स्वयं आनंदी बनें । सभी विद्यार्थियों को कुलदेवता के उपासक बनाकर सदगुणों की वृद्धि करें एवं आनेवाली उदयोन्मुख पीढी सुसंस्कृत होकर शीघ्र ही ईश्वरीय राज्य आए,` ईश्वर चरणों में यही विनम्र प्रार्थना है !

– श्री. राजेन्द्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.

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