शिशु के जन्म से पूर्व
गर्भपर उचित संस्कार कैसे करें : मां-पिता एवं परिवार के व्यक्तियों के सात्त्विक विचारों का भी गर्भ के मनपर प्रभाव पडता है । इस सात्त्विक वातावरण का शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास पर अच्छा परिणाम होता है । संत वाङ्मय, विनयपत्रिका, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता इत्यादि का वाचन करें । संतों के, देवताओं के चरित्र पढें । मन में क्षोभ हो ऐसा वाड्गमय, रहस्यकथा न पढें एवं वाहिनियों पर मारामारी, हत्या जैसे वीभत्स, दु:ख एवं क्रोध निर्माण करनेवाले दृश्य न देखें । गर्भवती स्त्री को जिस देवता, संत अथवा वीरपुरुष के गुण अपने शिशु में लाने की इच्छा हो, उनकी मूर्ति, छायाचित्र सामने रखकर उनका ध्यान करें । ध्यान के पश्चात गर्भवती स्त्री कुछ आवश्यक स्वयंसूचनाएं भी दे सकती है । गर्भवती स्त्री नामजप करे । माता के आहार-विहार, विचार तथा इच्छा का गर्भपर भी परिणाम होता है । गर्भवती के उत्तम आचार-विचारों की छाप गर्भ के मनपर भी उभरती है ।
अनुभव
गर्भावस्था में अखंड नामजप करने से प्रसूति के समय कष्ट न होना तथा तेजस (गर्भस्थ शिशु) पर भी नामजप का संस्कार होना : तेजस गर्भ में था, तब आधुनिक चिकित्सक ने मुझे विश्राम करने का परामर्श दिया था । मैं इस कालावधि में अपनी कुलदेवी श्री कामाक्षीदेवी का अखंड नामजप करती थी । इस कारण कु. तेजस के जन्म के समय मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ तथा ईश्वर के अखंड स्मरण से उसपर भी नामजप का संस्कार हुआ । इसके लिए मैं गुरुचरणों में कृतज्ञ हूं ।
– श्रीमती शिरोडकर
नामकरण संस्कार के विषय में सूचना
धर्म के अनुसार बच्चों के नाम रखें : अपने बच्चों के रीटा इत्यादि ईसाई पंथ अथवा अन्य पंथों के अनुसार पिंटू, बंटी इत्यादि अर्थहीन नाम रखन की अपेक्षा नामकरण विधिके शास्त्र के अनुसार नाम रखने से अधिक लाभ होता है । नाम का प्रभाव मानव के मन, व्यवहार तथा जीवनपर होता है । अतः हिंदु धर्मशास्त्र में किस वर्ण के लोगों को किस प्रकार का नामकरण करना है ? यह बताया गया है । बच्चा गर्भाशय में रहते हुए ही शिशु का लिंग एवं शिशु का नाम पहले से ही निर्धारित हो चुका होता है । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ये पांच घटक कभी भी एकत्र नहीं होते । इस कारण बच्चे के रूपानुसार उसका नाम भी होता है । यह हमें समझ में नहीं आता; परंतु आध्यात्मिक उन्नत यह समझ पाते हैं । हमें यदि कोई उन्नत न मिले तब बच्चे के लिए उपयुक्त नाम कौन-सा है इस विषय में ज्योतिषशास्त्र मार्गदर्शन कर सकता है ।
– कु. गिरीजा
उपर्युक्त बिंदु से संबंधित अनुभूति
बच्चे का उपनाम रखने से होनेवाला विस्मय लडकी का विद्यालय में पंजीकृत नाम अपरिचित लगना : एक कन्या का उपनाम तथा उपस्थिति पंजिका में नाम अलग था । घर में उसे `नमिता’ कहते थे तथा विद्यालय में `स्मिता’ उपस्थिति पंजिका का नाम उसे समझमें न आने के कारण वह लडकी कभी भी वर्ग में उपस्थिति नहीं दे सकी । उसका नाम पुकारनेपर `वह मैं हूं ही नहीं’ ऐसा उसके मुख का भाव रहता था । अनेक बार पालकों के समझानेपर भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ । वह लडकी बडे वर्ग में गई, तब उसमें रुचि-अरुचि निर्माण होने के कारण उपस्थिति पंजिका का नाम उसे भाता नहीं था । बारंबार यह समस्या आनेपर अंततः उसके पालकों को प्रतिज्ञापत्र देकर उसका नाम परिवर्तित करना पडा ।
घर पर प्रेम से पश्चिमी पद्धति का नाम देकर बुलाने से बच्चों का भ्रमित होना : कुछ पालक प्रेम से अपने बच्चों का पिंकी, विकी, डॉली आदि अंग्रेजी पद्धति का उपनाम रखते हैं । विद्यालय में उन छोटे बच्चों को उनके नाम से बुलानेपर उन्हें तुरंत समझ नहीं आता तथा वे भ्रमित हो जाते हैं । अभिभावकों को बतानेपर भी वे उसमें परिवर्तन नहीं करते । अनेक अभिभावक बच्चे बडे होनेपर भी उसी रीति से उन्हें पुकारते हैं । वे नाम बच्चों को उचित नहीं लगते, यह उनके ध्यान में नहीं आता ।’
– एक शिक्षिका