‘सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने के लिए गए । सुदामा की पत्नी ने सुदामा को श्रीकृष्ण से संपत्ति मांगने के लिए कहा था; परंतु सुदामाने कुछ भी मांगा नहीं । सुदामा को देखते ही उस प्रेमभेंट में श्रीकृष्ण की भी आंखे भर आर्इं । वे आनंदाश्रू थे । सच्चा मित्र कभी नहीं मांगता, मैंने कुछ मांगा तो भगवान को दु:ख होगा, यह सोचकर सुदामा चुप रहे । सुदामा लेने के लिए नहीं अपितु देने के लिए आए थे । साथ में उसने मुठ्ठीभर पोहा लेकर आए कि मित्र को कुछ तो दूं । ‘वह पोहा भगवान खाएं,’ ऐसे सुदामा की इच्छा थी, क्योंकि उस पोहा में उसका सर्वस्व समाया था । भगवान ने भी अति प्रेम से उसे खाया । भगवान पहले सर्वस्व लेते हैं और इसके उपरांत सर्वस्व देते हैं । भगवानने सुदामा के घर पहुंचने से पूर्व घर सोने का कर सर्व संपत्ति उसे दे दी ।
– डॉ. वसंत बालाजी आठवले (खिस्ताब्द १९९०)