गोवर्धनपीठ, पुरीके शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थने अपरंपार परिश्रम और ध्यान द्वारा `अथर्ववेद’के `सुलभसूत्र’ (गणितसूत्र) परिशिष्टके प्रत्येक अक्षरसे १६ सूत्र प्राप्त किए । इन १६ सूत्रोंके कारण अंकगणित, बीजगणित, भूमिति, त्रिकोणमिति, सरलरेखा और गोलीय भूमिति, कैलक्युलस, गतिशास्त्र, लोकस्थिति-गणित (स्टैटिस्टिक्स) जैसी सभी शाखाओंका अध्ययन सुलभ होता है । अत्यधिक बडी संख्याओंके गुणाकार, भागाकार, वर्गमूल, घनमूल, वर्ग करना अत्यंत सरल होता है । जब उनका ‘वैदिक गणित’ ग्रंथ प्रकाशित हुआ, उस समय संपूर्ण विश्व आश्चर्यचकित हो गया । अब ‘वैदिक गणित’पर संपूर्ण विश्वके विद्यापीठोंमें शोध किए जा रहे हैं ।
एक शोधके अनुसार विगत कुछ वर्षोंमें भारतमें उच्च पाठ्यक्रमोंके लिए प्रवेश परीक्षाओंमें सहभागी होनेवाले अधिकांश विद्यार्थी ‘वैदिक गणित’का बडी मात्रामें उपयोग करते हैं । व्यवस्थापन क्षेत्रमें स्नातकोत्तर शिक्षण हेतु ‘कैट’ और अभियांत्रिकी क्षेत्रमें स्नातकोत्तर शिक्षण हेतु ‘गेट’ जैसी परीक्षाओंमें साधारण पद्धतिसे कोई प्रश्न हल करनेमें यदि चार मिनट लग रहे हों, तो वैदिक गणितकी पद्धतियोंसे वह चार सेकंडमें हल कर सकते हैं ।