अनंत कोटि ब्रह्मांडनायक महाराजाधिराज योगिराज परब्रह्म सच्चिदानंद भक्तरक्षक शेगाव (महाराष्ट्र) – निवासी समर्थ सद्गुरु प.पू. श्री गजानन महाराजजी के जीवन चरित्र का कालखंड बत्तिस वर्ष का है । इस काल में महाराजजीने अनेक चमत्कार किए ।
श्री गजानन महाराज वरहाड क्षेत्र के शेगाव (शिवगाव, महाराष्ट्र में) प्रकट हुए थे ।२३ फरवरी, १८७८ को वे सर्वप्रथम युवावस्था में शेगाव में दिखे । उस समय प.पू. श्री गजानन महाराज, वहां के साधु देविदास पातुरकजी के मठ के बाहर पडे भोजनपत्र के जूठे कण खा रहे थे । जानवरों के लिए रखे पानी को पीकर वे वहां से चले गये । ब्रह्मनिष्ठ गोविंद महाराज टाकळीकरजी का शेगाव के श्री महादेव मंदिर में कीर्तन हुआ । टाकळीकर महाराजजी के घोडे के चार पैरों के बीच प.पू. श्री गजानन महाराज ब्रह्मानंद में लीन होकर सोए थे । वह अनियंत्रितघोडा उस समय शांत होकर खडा था । कीर्तन समाप्त होनेपर गोविंद महाराज मंदिर में सोए परंतु उनका ध्यान उस घोडेपर गया । सदैव अशांत रहनेवाला घोडा आज शांत कैसे खडा है ? इस बात का उन्हें आश्चर्य हुआ । वहां जाकर देखनेपर श्री गजानन महाराजजी घोडे के चारों पैरों के बीच सोए हुए दिखे । दूसरे दिन कीर्तन में श्री टाकळीकर महाराजजीने बताया,‘‘ प.पू. श्री गजानन महाराज साक्षात् शिवअवतार हैं,उनकी उपेक्षा न करें ।” श्री टाकळीकर महाराजजीने श्री गजानन महाराजजी की पूजा की । लोग उन्हें ‘श्री गजानन महाराज’ संबोधित करने लगे । वे कुछ भी खा लेते, कहींपर भी पडे रहते थे । कहीं भी घूमते थे । लोग उन्हें अनमोल वस्त्र, अलंकार, पैसे, खाद्यपदार्थ अर्पण करते परंतु वे उसे वहींपर छोडकर चले जाते । लोगों को उनके दर्शन से मनःशांति मिलती थी ।
श्री. बंकटलाल अगरवाल प.पू. श्री गजानन महाराजजी के चरणों में लीन होकर उन्हें अपने साथ घर लेकर आए । एक अवतारी स्वामी अगरवालजी के घर में आकर रुके हैं, यह जानकारी घर-घर में फैल गई । महाराजजी का दर्शन पाने हेतु गांव-गांव से लोग आने लगे । महाराजजी के चरण वंदनकर लोग धन , पुत्र, संतान, विद्या इत्यादि मांगने लगे । उनके मनोरथ पूर्ण होने लगे । महाराजजी ने वहां अलौकिक चमत्कार किए । गजानन महाराजजी के चेहरेपर सदैव ब्रह्मानंद एवं ब्राह्मतेज झलकता था । सहस्रों लोग उनके पास जमा होने लगे ।
एक बार बच्चों ने गजानन महाराजजी को चिलम भरकर दी और अग्नि लाने के लिये बंकटलालने उन्हें गली में रहनेवाले जानकीराम सोनार के पास भेजा । उसका सोना-चांदी का बडा धंधा था । वह नली फूंकते हुए अपना काम रहा था । बच्चोंने उससे अग्नि मांगी । उसने बच्चों से कहा, ‘अग्नि नहीं दूंगा’, और महाराजजी की निंदाकर बच्चों को भगा दिया । बच्चोंने महाराजजी को सोनार के विषय में बतानेपर उन्होंने कहा, ‘‘अरे! चिलिमपर लकडी रखो, अग्नि प्रज्वलित होगी ।’’ श्री. बंकटलालने प.पू. श्री गजानन महाराजजी के चिलमपर लकडी रखते ही चिलम में तात्काल अग्नि प्रज्वलित हो गई । प.पू. महाराजजी के श्रीमुख से धुआं निकलने लगा ।
प.पू. श्री गजानन महाराजजी को कोई रामावतार कहता, कोई कृष्णावतार, तो कोई भगवान शिवशंकर शेगाव में प्रकट हुए हैं, ऐसा मानते थे ।
अकोला में भास्कर नामक किसान था । वह खेतपर काम करता था । महाराजजी भरी दोपहरी में उसके पास पानी मांगने गए । भास्कर महाराजजी को गुस्से से उत्तर दिया, ‘‘सवेरे घडा भरकर लाया है । तुम्हें देकर क्या करुं ? चलते बनो यहां से ! बडे आये पानी मांगने वाले! जाओ यहां से ! …’’पडोस में सूखा कुआं था । उसके किनारे महाराज बैठ गए । महाराजजी ने तुरंत उस सूखे कुएं में पानी उत्पन्न किया । भास्कर ने क्षमायाचना की । उस समय से वह महाराजजी के साथ शेगाव में रहने लगा ।
शेगाव के श्री. खंडू पाटील महाराजजी के पास आए । उन्हें कोई संतान नहीं थी । उसने महाराजजी के चरण पकडकर याचना की, ‘‘स्वामी, मुझे एक पुत्र दें ’’। महाराजजी ने कहा, ‘‘अरे! तू धनवान पाटील होकर मुझसे भीख मांगता है ? जा, तुझे संतान होगी, उसका नाम भिक्या रखना! ” कुछ समय पश्चात श्री. खंडू पाटील को पुत्र हुआ । उसका नाम भिक्या रखा । श्री. खंडू पाटीलने प्रसन्न होकर पूरे गांव को आम रस-पूरी का भोजन खिलाया ।
आषाढ शुक्ल एकादशी को श्री.हरी पाटील को साथ लेकर प.पू. गजानन महाराजजी पंढरपूर में भगवान विठ्ठलजी के दर्शन हेतु गए । भक्तगण तथा पचास अन्य शेगाव के निवासी महाराजजी के साथ थे । ‘जय जय रामकृष्ण हरी!’ कहते हुए झांझ-मृदंग की ध्वनि करते हुए फेरी चली एवं गजानन महाराजजी के साथ फेरी पंढरपुर में आई । भगवान विठ्ठलजी के दर्शन की इच्छा महाराजजी ने पूर्ण की । महाराजजीने पंढरपुर में श्री. बापू काळे को श्रीविठ्ठल स्वरुप में दर्शन दिए । पंढरपुर की यात्रा समाप्तकर श्री विठ्ठल नाम का नामजप करते हुए शेगाव के निवासी लौट आए ।
भाद्रपद शुक्ल पंचमी, सन १९१० गुरुवार के दिन भगवान श्री विठ्ठल का नामजप करते हुए शेगाव में प.पू. श्री गजानन महाराज समाधिस्थ हुए । जिनको प.पू. श्री गजानन महाराजजी के प्रति प्रेम, भक्ति, श्रद्धा एवं निष्ठा है, उन्हें आज भी साक्षात्कार का पूर्ण अनुभव होता है, इस प्रकार की अनुभूतियां महाराजजी आज भी भक्तों को प्रदान करते हैं । उनकी रक्षा हेतु संकट में दौडकर आते हैं । उनके मनोरथ पूर्ण करते हैं । निर्धन को धन देते हैं । रोगी को उत्तम आरोग्य देते हैं । निर्वंश को पुत्र देकर कल्याण करते हैं ।