श्री विठ्ठल के ‘वारकरी’ भगवान विष्णु से संबंधित `एकादशी व्रत’का निष्ठा से आचरण करते हैं ।
तत्त्व
श्री विठ्ठल का तत्त्व तारक है । इसी कारण श्री विठ्ठल के हाथों में कोई भी शस्त्र नहीं हैं । श्री विठ्ठल के सर्व भक्तगणों का भाव भोला होने के कारण उन्हें `भक्त की रक्षा करनेवाले आराध्यदेवता’, ऐसे संबोधित किया जाता है । संत तुकाराम की प्रार्थनापर श्री विठ्ठल ने शिवाजी महाराज का रक्षण किया एवं शत्रुपक्ष को उस प्रसंग से अप्रत्यक्ष रूप से कष्ट दिए । श्री विठ्ठल किसी भी जीव का प्रत्यक्ष संहार नहीं करते । यह उनका निराला वैशिष्ट्य है ।
`पांडुरंग’ नाम की विशेषता
श्री विठ्ठल भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हैं । इस कारण दही-दूध से सने रूप में ही श्रीकृष्ण ने श्रीविठ्ठल का रूप धारण किया । इस कारण शास्त्र एवं पुराणों में पांडुरंग का रंग सावला बताया गया है, तब भी अभिषेक से वह गोरा होने के कारण श्री विठ्ठल को `पांडुरंग’ कहते हैं ।
श्री विठ्ठल को तुलसी चढाने की विशेषता
तुलसी श्रीलक्ष्मी का प्रतीक है एवं श्रीलक्ष्मी श्रीविष्णु की पत्नी होने के कारण (श्री विठ्ठल श्रीविष्णु के ही रूप हैं ।) वह तुलसी के माध्यम से श्रीहरि के चरणों में ही रहती हैं ।
भक्त की पुकार को झट से प्रत्युत्तर देनेवाली देवता
श्री विठ्ठल भक्त की पुकार को झट से सुनकर उत्तर देनेवाले देवता होने के कारण, पुरुष देवता होनेपर भी उन्हें भक्तगण `विठुमाऊली’ कहते हैं (माऊली अर्थात मां)। श्री विठ्ठल अत्यंत स्नेही एवं प्रेम के कारण `भक्तों के बुलानेपर वे दौडकर आएंगे ही’, यह भक्तों का दृढ विश्वास है । इस दृढ भाव के कारण ही विठुमाऊली ने भक्तों के घर आटा पीसा, गोबर थापा एवं भक्तों की सेवा की ।
मूर्तिविज्ञान काले रंग की, मोटे भद्दे आंखोंवाली, दोनों हाथ कमरपर रखे एवं इंटपर खडी विठ्ठल की मूर्ति होती है । पुंडलिक की माता-पिता की सेवा से प्रसन्न होकर विठ्ठल उसे दर्शन देने आए । उस समय पुंडलिक ने विठ्ठल की ओर र्इंट फेंककर ईटपर खडे रहने को कहा; क्योंकि वह माता-पिता की सेवा में विघ्न नहीं आने देना चाहता था। विठ्ठल उसकी सेवा की ओर आश्चर्य से खडे देखते रहे । अन्य देवताओं की मूर्तियों के हाथ में शस्त्र होता है अथवा एक हाथ आशीर्वाद देनेवाला होता है । ऐसा इस मूर्तिमें नहीं हैं । कुछ न करते हुए सर्वत्र साक्षीभाव से देखनेवाले विठ्ठल उसमें दिखाए गए हैं ।