बच्चों, हॅरी पॉटर की कथा वास्तविक नहीं है, यह काल्पनिक कथा है । यह काल्पनिक साहस कथा सत्य कभी भी नहीं हो सकती । उनके पीछे पडकर अपनी संस्कृति की अनमोल धरोहर ना भूलें । हमारी संस्कृति में साहसी बालक, चंदामामा, रामायण की कथाएं, महाभारत की कथाएं, हितोपदेश, विक्रम-बेताल कथाएं, सिंहासन बत्तीसी कथाएं, पंचतंत्र कथाएं हैं । इतना ही नहीं अद्वितीय पराक्रम करनेवाले राष्ट्रपुरुष और क्रांतिवीरों की सत्य गाथाएं हैं । युगपुरुष हैं । छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा जीवन अनेक पराक्रमी प्रसंगों से भरा है । शिवाजी ने मात्र १६ वर्षकी आयु में मुगलों से किस प्रकार टक्कर ली थी यह पढें ! बचपन में ही महान ग्रंथ लिखनेवाले ‘संत ज्ञानेश्वर’ कैसे बने, इसका अभ्यास करें ! भक्ति के लिए और सेवा के लिए आकाश में उडने की क्षमतावाले हनुमानजी की कथाएं क्या अधिक संस्कारक्षम नहीं हैं ?
किसी को लग सकता है कि ‘बच्चों की कथा में धर्म क्यों लाते हैं ? साहित्य तो साहित्य है, उसे देश, धर्म के बंधन नहीं होते ।’ अभिभाव कों याद रखें, कथाओं से संस्कार निर्माण होते हैं । पाश्चात्य कथाओं से ही पाश्चात्य रितीरिवाज आये, पाश्चात्य संस्कार आए एवं वही अपने आदर्श बन गए । ऐसे होगा नहीं, ऐसा ही हो रहा है । वर्तमान में अभिभाव कों और शिक्षकों को लगता है कि, हॅरी पौटर की रहस्यमय कथा अत्यंत रोमांचकारी हैं । हमारी बालकृष्ण की बाललीलाएं मात्र रोमांचकारी ही नहीं, अपितु साहसी, रहस्यमय, पराक्रमी तथा अच्छे संस्कार निर्माण करनेवाली हैं एवं महत्त्वपूर्ण यह है कि यह सर्व सत्य हैं, यह अभिभावकों को समझाने का समय आया है । यह प्रश्न मात्र एक कथा अथवा बच्चों की कथाओं तक सीमित न रहते हुए, यह भाषा, संस्कृति, धर्म – यहांतक व्यापक है । हम अंग्रेजों का अंधानुकरण करते हैं कि अंग्रेजी शब्द, खान-पान, वेशभूषा ये सब हमारे लिए आवश्यक हो गया है । ये सब ऐसा ही चलता रहा तो उनकी अयोग्य बातें सर्वसामान्य लोगों को आवश्यक लगने लगेगी ।
इसके उलट संतचरित्र, संतों के उपदेशों का अभ्यास करने से, जीवन में ईश्वर की उपासना का महत्त्व समझ में आता है । ईश्वर की उपासना करने से हमारे गुण बढते हैं और जीवन आनंदमयी बनता है । राष्ट्रपुरुष और क्रांतिकारकों के चरित्रों का अभ्यास करने से धर्म और राष्ट्र के विषय में अभिमान बढता है तथा हम से धर्म और राष्ट्र का कार्य होता है ।
Namaskar,
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