एक व्यक्ति गोकुल जाने के लिए निकला । उसे नाव में बैठकर यमुना नदी पार करनी थी; परंतु वह भांग के नशे में था । वह नाव में बैठा और पतवार चलाने लगा । उसने पूरी रात नाव चलाई, सवेरा हो गया । मथुरा समान दूसरा कौनसा गांव आया है, यह जानने के लिए उसने वहां एक व्यक्ति से पूछा, तो वह मथुरा ही थी । तब उसके ध्यान में आया कि उसने नाव को बांधी गई रस्सी खोली ही नहीं थी । नशे में होने के कारण वह नाव से बंधी रस्सी खोलना ही भूल गया था । पूरी रात पतवार चलानेपर भी वह व्यक्ति वहींपर था ।
सीख : यदि हमने भी जीवनरूपी नाव से यात्रा करते समय वासनारूपी रस्सी नहीं छोडी तो भगवान के पास नहीं पहुंच पाएंगें ।
– डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (इ.स. १९९०)