१. छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्कृष्ट नेतृत्व गुण !
१ अ. युद्ध के समय नियोजन कुशलता ! : ‘छत्रपति शिवाजी महाराज ने अभ्यास एवं नियोजन के बिना एक भी कृति नहीं की । शाहिस्तेखानपर आक्रमण करने के लिए लाल महल में केवल ५० जन गए थे । उस समय भी १,३५,००० के विरुद्ध १२,००० यह मात्रा थी । अफजलखान के समय १० सहस्र विरुद्ध ३६ सहस्र इतनी मात्रा थी । कोंडोजी फर्जदजी का पन्हाला किले का संग्राम हो अथवा शिवा काशीद एवं बाजीप्रभू देशपांडेजी का पावनखिंडी का पराक्रम हो, ये सभी प्रसंग उनका उत्तम नियोजन दर्शाते हैं !
१ आ. व्यक्ति की उत्तम परख : छत्रपति शिवाजी महाराज ने बोरू तथा समशेर को समान समझा । उन्हें व्यक्ति की उत्तम परख थी । ब्राह्मण विदेश मंत्रालय के वकील बनकर खडे हो गए । बाजीप्रभु देशपांडे जैसे लोग आदिलशाही छोडकर महाराज से आ मिले । संभाजी कावजी कोंढाळकर, बहिर्जा नाईक जैसे सामान्य लगनेवाले व्यक्तियों ने असामान्य कर्तृत्व दर्शाया । ऐसे अनेक सैनिक तथा सरदार थे जो स्वराज्य लिख भी नहीं सकते थे; परंतु उन्होंने स्वराज्य का निर्माण कर दिखाया । इतने विशाल कार्य में स्वराज्य के विस्तार में केवल ५-६ व्यक्तियों ने ही महाराज को छोडा ।
१ इ. अनुशासन : नेताजी पालकर ने आने हेतु जो दिन बताया था, उस दिन न आते हुए वह एक दिन विलंब से आए, तो महाराज ने उन्हें प्रमुख सेनापति के पद से पदच्युत किया । ४ प्रधानमंत्रियों में से तीन प्रधानमंत्री अनुशासन भंग करने की कार्यवाही के अंतर्गत महाराजद्वारा हटाए गए ।
१ ई. मितव्ययी : महाराज आगरा से सकुशल लौ्ट आए । इस आनंद में किलेपर रहनेवाले अधिकारियों ने तोप दागी, जल्लोष किया । इसपर छत्रपति शिवाजी महाराज ने तीव्र नापसंदी दर्शाई । उनका स्वभाव रुक्ष नहीं था; परंतु स्वराज्य का विकास प्रारंभ ही हुआ था, उस समय यह उत्सवबाजी उन्हें मान्य नहीं थी । महाराज ने तुरंत नियम बनाए कि किस समय कितना विस्फोटक तोपों के लिए व्यय करना है तथा कठोरतापूर्वक उसपर क्रियान्वयन भी किया ।
२. आज देश को युद्ध की सिद्धता करनेवाले,उसके अभ्यास एवं नियोजन का उत्तरदायित्व स्वयंपर लेनेवालों की आवश्यकता अधिक होना
वर्तमान काल के अनुरूप यह कहना पडता है कि राष्ट्रकार्य के लिए काम करनेवाले सैनिकों को मनःपूर्वक लगता है कि यह भगवान, देश, धर्म उच्च सिंहासनपर बैठे; परंतु उसके लिए थोडा नीरस अभ्यास तथा नियोजन करना पडता है, वह टाला जाता है । युद्ध का शंख बजनेपर हम सब युद्ध के लिए आएंगे, यह कहनेवाले अनेक लोग होते हैं; परंतु युद्ध की सिद्धता करेगा कौन ? तलवारों में धार कौन करेगा ? पट खुलनेपर क्या करना है यह सभी को जानकारी होती है; परंतु पटके पीछे के विभाग कौन संभालेगा ? वह अभ्यास तथा नियोजन कौन करेगा ? उसका उत्तरदायित्व स्वयंपर लेनेवालों की आज देश को आवश्यकता है । झुंड में उतरनेवालों की नहीं !
– श्री. समर वि. दरेकर, पुणे (साप्ताहिक वज्रधारी, वर्ष ५ अंक १८, ७ से १३ जुलाई २०११)