१.सात्त्विक रंगोलियां बनाएं तथा‘कार्टून’ एवं देवताओं के चित्रों की अनादरात्मक रंगोलियों के माध्यम से होनेवाली धर्महानि रोकें
इन दिनों में प्रत्येक घर के सामने रंगोली बनाई जाती है । अनेक लोगों को रंगोली का शास्त्र ज्ञात न होने से वे‘कार्टून’के अथवा देवताओं के चित्रोंवाली अनादरात्मक रंगोलियां बनाते हैं । यह पाप ही है । इसलिए हमें इसे रोककर हिंदू धर्म की रक्षा करनी चाहिए ।
२. पटाखे जलाकर होनेवाला ध्वनि तथा वायु प्रदूषण टालें
मित्रों, दीपावली का त्यौहार मौज मस्ती करने के लिए न होकर अपनी धर्म एवं संस्कृति की रक्षा करने के लिए तथा अन्योंको आनंद देने के लिए है । पटाखों की कर्णकर्कश आवाजने हम अन्यों को दुःख देते हैं अथवा आनंद देते हैं ? अनेक लोग इन दिनों में पटाखों से तंग आकर शहर छोडकर दूसरे स्थानपर रहने जाते हैं। हमें विद्यालय में ‘पर्यावरण का संरक्षण करो’, ऐसा सिखाया जाता है । इस दीपावली में हमें पर्यावरण की रक्षा करने का निश्चय करना है ।
३. पटाखों के दुष्परिणाम
३ अ. शारीरिक एवं मानसिक पीडा : पटाखों की आवाज से बहरापन आताहै । पटाखों के धुएं से वृद्धों को श्वसन की पीडा होती है । छोटे बच्चों को इसआवाज से मानसिक धक्का लगता है ।
३ आ. आग लगने का भय : बाण जैसे पटाखों के कारण घास की झोपडी तथा घास के ढेर को आग लगकर हानि होती है ।
३ इ. पैसे का अपव्यय : आज देश में बहुत गरीबी है, अनेकों को खाने के लिए अन्न भी नहीं मिलता उसपर हम पटाखोंपर अंधाधुंध पैसे खर्च करते हैं । हम इस देश के नागरिक हैं । ऐसी बातोंपर हो रहे पैसे का अपव्यय न कर देश की हानि टालना चाहिए ।
३ ई. देवता तथा राष्ट्रपुरुषों के चित्रोंवाले पटाखे न जलाएं : अनेक बच्चे देवताओं के चित्रवाले पटाखे जलाते हैं । इससे उस देवता के चित्र के टुकडे होते हैं । यह तो बडा पाप है । हमें माता- पिता के छायाचित्रों के टुकडे हो जाएं तो अच्छा लगेगा क्या ? हमें इसकी चिढ आनी चाहिए ।
देवताओं का गुणगान करनेवाले भजन तथा देवता की आरती के कारण देवता आकर्षित होते हैं । पटाखों की आवाज से लोगों को ही इतनी पीडा होती है,तो ऐसे स्थानपर देवताओं को आने की इच्छा होगी क्या ? हम इस आवाज से देवताओं का चैतन्य नष्ट करते हैं । ऐसे में हमपर देवताओं की कृपा होगी क्या ? नहीं ना ? मित्रों, इस दीपावलीपर हम पटाखों की यह कुप्रथा नष्ट करने के लिए प्रयासरत हों !
४. जिस प्रकार दीपक अंधेरे का नाश करता है, उसी प्रकार दोष एवं अहं का निर्मूलन करने का प्रयास बढाकर आंतरिक दीपावली मनाएं
दीपक अंधारे का नाश करता है । मित्रों, हमारे जीवन में कौनसा अंधकार है ? दोष एवं अहं के कारण हम दुःखी हैं । दीपक आनंद का प्रतीक है । दीपावली में हम दोष एवं अहं का निर्मूलन करने का अधिकाधिक प्रयास करेंगे तो आंतरिक दीपावली मनाने जैसा होगा । अहं का आवरण जानेपर ही आनंद प्राप्त होता है ।‘मैं बुदि्धमान हूं तथा मुझे समझता है, अन्यों को कुछ नहीं आता’, यह अहं के लक्षण हैं । उसकी अपेक्षा ‘ईश्वर सर्व करते हैं । वही हम में रहकर प्रत्येक कृति करते हैं, यह स्वीकार करना चाहिए । ‘ईश्वर बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते’, ऐसा विचार निरंतर करनेपर ही हम आनंदी हो सकते हैं ।
‘हे श्रीकृष्ण, आपको अपेक्षित ऐसा दीपावाली का यह त्यौहार हम मनाएं तथा दीपावली में होनेवाले सभी दुराचार नष्ट करने की शक्ति एवं बुदि्ध आप ही हमें दें’, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।’
– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल.