विद्यार्थी मित्रो, आप रात्रि में अधिक समय जागकर अभ्यास करते हैं क्या ? आपने कभी प्रात: शीघ्र उठकर अभ्यास किया है क्या ?
मित्रो, ध्यान रहे, रात्रि में अभ्यास करने के लिए मन की, बुद्धि की एवं शरीर की जितनी शक्ति व्यय होती है, उसकी तुलना में अत्यल्प शक्ति प्रात: उठकर अभ्यास करने में व्यय होती है ! इसलिए, प्रातःकाल बहुत अल्प समय में आपका उत्तम अभ्यास हो सकता है । उदाहरणार्थ, कोई वाक्य अथवा पाठ स्मरण में रखना है, तो इस प्रयास में रात्रि के समय जो समय एवं शक्ति लगती है, उसकी तुलना में बहुत अल्प समय एवं शक्ति प्रात:काल लगती है ! इसलिए, प्रात:काल किया गया अभ्यास भलीभांति स्मरण में रहता है ।
इसका कारण यह है कि प्रात:काल का वातावरण अधिक सात्विक होता है । इसलिए, ऐसे वातावरण में हमारे मन, शरीर एवं बुद्धिपर रज-तम के आवरण का प्रभाव अत्यल्प होता है । रात्रि के वातावरण में तमोगुण अधिक होता है, जिसका दुष्परिणाम हमारे मन, शरीर एवं बुद्धिपर होता है और उनकी सात्विकता न्यून हो जाती है । हम जितने अधिक सात्विक होंगे, हमारी अभ्यास को कंठस्थ करने एवं उसे समझने की क्षमता उतनी अधिक होती है । प्राचीन काल में विद्यार्थी ब्राह्ममुहूर्तपर उठकर वेदका अभ्यास करते थे ।
दिनभर हम विविध कार्य एवं विचार करते हैं । इससे हमारा मन, शरीर एवं बुद्धि थक जाते हैं एवं तनावग्रस्त भी हो जाते हैं । रात्रि के विश्राम के कारण प्रात:काल में यह तनाव नहीं रहता ।
प्रात:काल वातावरण सात्विक होने का कारण यह है कि इस समय विश्व का व्यवहार आरंभ नहीं होता, उस समय हिमालय में रहनेवाले अज्ञात ऋषि-मुनि तथा हमारे मध्य रहनेवाले संत एवं साधक साधना करते हैं । उनकी देहसे सात्विक तरंगें निकलकर वातावरण में फैलती हैं और रज-तम अल्प हो जाता है । इसीलिए, हम उन तरंगों को ग्रहण कर पाते हैं । आपने सुना ही होगा कि अनेक प्रसिद्ध गायक प्रात:काल उठकर गायन का अभ्यास करते हैं ।
प्रात:काल हमारे शरीर में बढे हुए वात, कफ इत्यादि पदार्थ त्यागने की क्रिया भलीभांति होती है । इससे हमारा उत्साह बढता है । ऐसा कहा गया है कि ‘जो शीघ्र सोकर शीघ्र उठता है, उसे आरोग्य, धन एवं विद्या प्राप्त होती है ।’ इसलिए बच्चो, शीघ्र सोओ, शीघ्र उठो तथा अभ्यास में मन को एकाग्र कर जीवन में सफल बनो !
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ, ‘सुसंस्कार एवं अच्छी आदतें’