प्राचीन समय में धौम्य नामक मुनि का एक आश्रम था । उस आश्रम में उनके अनेक शिष्य विद्याभ्यास लिए रहते थे । उनमें आरुणी नामक एक शिष्य था । एक समय धुंआधार वर्षा होने लगी । समीप के नाले का पानी खेत में न जाए, इसहेतु प्रतिबंध लगाने के लिए वहां एक बांध बनाया गया । उस बांध में दरारें पडने लगी तब गुरुदे वने कुछ शिष्यों से कहा, ‘पानी को खेत में आने से रोको !’
आरुणी एवं कुछ शिष्य बांध के समीप आए । बांध में आई दरारों को भरने के लिए सबने प्रयास किए ; परंतु पानी का वेग अत्यधिक होने के कारण संपूर्ण प्रयास निष्फल हो गए । बांध के बीच का भाग टूटने लगा एवं पानी धीरे-धीरे खेत में आने लगा । अब कोई लाभ नहीं, ऐसा सोचकर सभी शिष्य लौट आए । दिनभर परिश्रम करने से थके सभी शिष्य गाढी नींद से सो गए । सवेरेतक वर्षा थम गई । तब सब के ध्यान में आया कि आरुणी का कोई पता नहीं है । संपूर्ण आश्रम में ढूंढनेपर भी जब वह नहीं मिला, तब वे सभी गुरुदेवजी के समीप जाकर बोले, ‘‘ हे गुरुदेव, आरुणी खो गया है ।” श्रीगुरु बोले, ‘हम खेत में जाकर देखेंगे’ सब शिष्य एवं ऋषि धौम्य खेत में गए और उन्होंने देखा कि, टूटे हुए बांध के बीच में पानी को रोकने हेतु स्वयं आरुणी ही वहां आडा होकर सोया हुआ है । यह देखकर सबको आश्चर्य हुआ । रातभर पानी में भोजन-नींद के बिना ऐसा करते देख आरुणी के प्रति सभी के मन में प्रेमभाव निर्माण हुआ । वर्षा रूक जाने के कारण पानी का बहाव तो पूर्व की अपेक्षा घट गया था परंतु आरुणी को वहां नींद लग गई थी । सभी वहां गए और उसे जगाया । श्रीगुरु ने उसे समीप लेकर प्रेम से उसके सिरपर हाथ फेरा । यह देखकर सब शिष्यों के आंखों में पानी आया ।
बच्चो, आरुणी से हमें क्या सिखना है ? तो श्रीगुरु की आज्ञापालन करने की तीव्र उत्कंठा । आज्ञापालन करने के लिए आरुणी ने स्वयं का विचार नहीं किया; इसलिए वह गुरु का एक सच्चा शिष्य बना । अतः हम भी हमारे गुरु के चरणों में प्रार्थना करेंगे कि, ‘हे गुरुदेव, हम में भी ‘आज्ञापालन’ गुण निर्माण हो !’