एक बार संत तुकाराम महाराज ने अपनी पत्नी को वैराग्य के विषय में प्रचुर उपदेश किया । उसे यह समझाया कि, ‘विषयभोग कैसे अनिष्ट हैं’ और विठोबा का नामस्मरण करने के लिए कहा । उनका उपदेश सुनकर उसके मन में विरक्ति जागृत हुई । दुसरे दिन स्नान कर उसने भगवान की पूजा की और सर्व धन ब्राह्मणों से लुटवाया ।
घर में फूटी कौडी भी नहीं रखी । परंतु इसके उपरांत दोपहर में ‘घर में अन्न का दाना नहीं है’, यह देख वह चिंतित हो गई । एक दिन पहले एकादशी का व्रत रखने से वह और बच्चे भूख से अत्यधिक व्याकुल हुए । इस स्थितिमें जगन्माता ने एक शूद्र जाति की स्त्री का रूप लिया और वह संत तुकाराम महाराज की परीक्षा लेने आई । उसने कहा,‘‘मैं आपके गांव की जमादारीन हूं । मैंने सुना है कि आपने ब्राह्मणों में घर लुटवाया है । यदि कुछ बचा होगा, तो मुझे दीजिए ।’’ उसकी यह बात सुनकर संत तुकाराम महाराज ने घरमें जो साडी सूख रही थी, उसे भी उतारकर जमादारीनको दे दिया ।
उनकी पत्नी को जब इस बात का पता चला, तब वह अत्यंत क्रोधित हुई । जिस विठ्ठल के चरणों के चिंतन से इतना अनर्थ हुआ, वे चरण फोडने के लिए क्रोधित होती हुई पत्थर लेकर वह मंदिर की ओर दौडी । संत तुकाराम भी उसके पीछे दौडे, परंतु पत्नी के भीतर प्रवेश करनेपर विठ्ठल की पत्नी रूक्मिणी ने द्वार बंद किया । इधर तुकाराम महाराज के मन में अनेक तर्क आने लगे । वह विठ्ठल की मूर्ति के पैरोंपर पत्थर मारनेवाली ही थी, इतने में रुक्मिणी ने उसे रोका और कहा, ‘‘तुम्हारी गृहस्थी में जो कुछ न्यूनता रहेगी, उसे मैं पूरी करूंगी ।’’ रुक्मिणी ने उसे साडी, चोली देकर लौटाया । वह संतुष्ट होकर घर लौटी ।
इधर संत तुकाराम मन ही मन कहा, ‘‘मेरे इतने उपदेश करनेपर भी मेरी पत्नी अधीर होकर रुक्मिणी से साडी, चोली लेकर आई । उन्होंने पत्नी से कहा, ‘‘तुमने परमार्थ व्यर्थ किया । दुध की मलाई खाने से माखन कैसे आएगा ? ऋदि्ध-सिदि्ध एवं संपत्ति का मन से त्याग करनेपर ही भगवद्प्राप्ति होती है ।’’ इतना बताकर उन्होंने उसे सर्व निर्धनों में बांटने के लिए कहा ।’
– डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (खिस्ताब्द १९९०)