बच्चो, परमेश्वर की प्राप्ति के लिए हमारे अंदर तीव्र लगन का होना आवश्यक है । केवल लगन से ही परमेश्वर की प्राप्ति संभव है । आईए, परम पूजनीय रामकृष्ण परमहंस की एक कथा से तीव्र लगन का उदाहरण सुनें ।
संत रामकृष्ण परमहंस के माता-पिता निर्धन थे । अपने घर का अन्न भूखे को देकर सारा दिन वे स्वयं भूखे रहते थे; ऐसे परोपकारी माता-पिता के घर रामकृष्णजी का जन्म हुआ था । बचपन में ही उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था । इसलिए उन्हें अपने उदर भरण का मार्ग स्वयं ढूंढना पडा । वे कोलकाता के पास दक्षिणेश्वर गांव के एक मंदिर में पुजारी बने । प्रतिदिन वे देवी महाकाली की पूजा करते थे । उन्हें देवी से बात करने की उत्सुकता रहती थी । उन्हें सदैव यह जानने की उत्सुकता रहती थी कि क्या वास्तव में देवी की मूर्ति में देवी मां होती हैं । क्या करनेपर मुझे परमेश्वर के दर्शन होंगे, दिन-रात उन्हें यह तीव्र इच्छा सताने लगी ।
दिन-रात वे देवी मां के दर्शन के लिए व्याकुल हो कर रोते रहते थे । वे कहते थे, ‘मां आप वास्तव में हो न ? भगवान के दर्शन मिल सकते हैं या नहीं ? यदि हां तो वे कैसे मिलेंगे ?’ इस विचार के अतिरिक्त उन्हें और कुछ नहीं सूझता था । इस कारण प्रतिदिन पूजन करना, विधि एवं आचार नियमों का पालन करना उनके लिए धीरे-धीरे असंभव हो गया । देवी मां के दर्शन हेतु व्याकुल होकर कभी वे अपना मुंह भूमिपर घिसते थे; तो कभी रोते हुए याचना करते थे, ‘देवी मां, मुझपर दया करें । मेरे हृदय में आपके अतिरिक्त किसी की चाह नहीं रहे, मुझे ऐसा बनाएं ।’
उन्होंने सुना था, माता के लिए सर्वस्व का त्याग किए बिना माता के दर्शन कदापि नहीं होते । इस कथन के अनुसार उन्होंने अपने जीवन को आकार देना आरंभ किया । उनके पास जो भी पैसे थे, उन्हें त्याग दिया तथा शपथ ली कि वे पैसे को कदापि हाथ नहीं लगाएंगे । केवल प्रतिज्ञा न कर, उन्होंने पूर्ण रूप से यह सर्व अपने आचरण में उतारा । सभी लोग यही समझते रहे कि यह बच्चा पागल हो गया है !
इस प्रकार सत्य को ढूंढने के लिए अनेक दिन-रात एवं मास अथक प्रयत्नों में व्यतीत हो रहे थे । उस बच्चे को अनेक प्रकार के दर्शन मिले । उन्हें परमेश्वर के अद्भुत स्वरूप के दर्शन मिलने लगे । उन्हें धीरे-धीरे अपने वास्तविक रूप का रहस्य समझ में आने लगा । जगन्माता ने स्वयं गुरु बनकर उन्हें साधना का पाठ पढाया ।