सिखों का सिख पंथ भक्ति सिखाता है । उसमें प्रेम एवं अहिंसा प्रमुख तत्त्व हैं । गुरुनानकजी को बाबर ने कारागृह में डाला, तो भी पहले ९धर्मगुरूओंने अपने उपदेश में केवल भक्ति एवं प्रेम का उपदेश किया । मुसलमानों का प्रतिकार करने के लिए नहीं कहा । सिखों के ९वें धर्मगुरु तेग बहादुरजी को को भी मुगलों ने कष्ट देकर अंत में मार डाला । सिखों के १०वें गुरु, गोविंद सिंहने अनेक वर्ष मुगलोंद्वारा होनेवाले अन्याय को सहन किया ।
मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह के पिताजी की निर्दयता से हत्या की । पश्चात गुरु गोविंद सिंहने सब सिखों को संगठित कर धर्म के लिए मर-मिटनेवाले ५शिष्यों को चुना, जिन्हें पंच प्यारे कहते हैं । उन्होंने धर्मयुद्ध के लिए खालसा पंथ की स्थापना की । खालसा का अर्थ शुद्ध, पवित्र । खालसा पंथी प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर, मैं अन्याय के विरुद्ध लडूंगा । युद्ध करने जाते समय मेरा मन निर्भय रहे । हम ही युद्ध जीतेंगे ऐसा आत्मकिश्वास मन में उत्पन्न हो । मुझमें आपका गुणगान करने की रुचि उत्पन्न हो एवं अंत समय आपके चरणो में स्थान पाऊं । खालसा पंथ निरंकारी है। निरंकारी का अर्थ है, ईश्वर को निराकार माननेवाला । इसका दूसरा अर्थ है निरहंकार । श्री, यह देवी का नाम है और भगवती का अर्थ तलकार है । सिखो में युद्ध करनेवाले को संत-सिपाही, कहते हैं।
– डॉ. वसंत बाळाजी आठवले (ई. स. १९९१)