नरवीर उमाजी नाईक का जन्म पुरंदर तहसील के भिवडी गांव में हुआ था । अंग्रेजों के अत्याचारी शासन के विरोध में उमाजी नाईकने ही सर्वप्रथम क्रांतिकी मशाल जलाई थी । यह उनका पहला विद्रोह माना जाता है । उन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजों की आर्थिक नाडी को दुर्बल करने का प्रयास किया । २४ फरवरी १८२४ को अंग्रेजों का ‘भांबुडा’के दुर्ग में छिपाकर रखा गया कोष (खजाना) उमाजीने अपने सशस्त्र साथियों की सहायता से लूटा एवं अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया ।
उसी समय अंग्रजोंने उमाजी नाईक को पकडने का आदेश दिया । उमाजी नाईक को पकडनेवाले को १० सहस्र रुपयों का पुरस्कार घोषित किया गया । उमाजीने लोगों को संगठित कर छापामार पद्धति से युद्ध करते हुए अंग्रेजों के सामने बहुत बडी चुनौती खडी कर दी । १५ दिसंबर १८३१, उमाजी के जीवन का काला दिन बना । भोर के एक गांव में अंग्रेज सरकारने उन्हें पकडकर उनपर न्यायालय में राजद्रोह एवं देशद्रोह का अभियोग चलाया इस अभियोग में फांसी का दंड सुनाकर, ३ फरवरी १८३२ को पुणे के खडकमाल न्यायालय में उमाजी नाईक को फांसी दे दी गई । केवल ४१ वर्ष की अवस्था में उमाजी नाईक देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुए ।