क्रांतिकारियों की मालिका में चापेकर बंधुओं का नाम बडे आदर से लिया जाता है । तीनों भाई देश को स्वतंत्र कराने के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदेपर लटके । उस दिन दामोदर चापेकरजी को येरवडा कारागृह में फांसी होनेवाली थी ।
दामोदरजी उस दिन प्रसन्न एवं आनंदित थे । उनके हाथ में गीता का ग्रंथ था । वे गीतापाठ करते-करते फांसीपर चढने के लिए उद्यत थे ।
फांसी का समय हो चला था, तब भी अंग्रेज अधिकारी सुस्त दिखाई दे रहे थे । दामोदरजी को फांसी देने के लिए जो समय निश्चित किया गया था, उसकी अपेक्षा अंग्रेज अधिकारी उनके पास पांच-सात मिनट विलंब से पहुंचे ।अंग्रेज सरकार की यह असावधानी दामोदरजी को उचित न लगी । वे सहज शब्दों में अंग्रेज अधिकारियों को धिक्कारते हुए बोले, ‘‘मैं अभी तक तो समझता था कि, अंग्रेज सरकार समय का पालन करने में अत्यंत तत्त्वनिष्ठ है; परंतु आज की घटना से मेरा यह ग्रह चूक सिद्ध हुआ ।
फांसी के दिन की प्रतीक्षा करनेवाले व्यक्ति को नियत किए गए समय के पश्चात भी प्रतीक्षा करनी पडती है, इसकी अंग्रेज सरकार को लज्जा आनी चाहिए । निश्चित ही वह दिन अब बहुत दूर नहीं, जब शासनतंत्र भारतियों के हाथ में आएगा ।’’ अंग्रेज अधिकारी उन्हें इसपर नानाविध स्पष्टीकरण देते ही रहे ।