एक गांवमें एक विधवा स्त्री रहती थी । उसका बेटा जटील ही उसके जीवनका एकमात्र आधार था । अपना बच्चा उच्च शिक्षित हो और उसका कीर्तिमान हो, ऐसा उसे मन ही मन लगता था । उन दिनोंमें वहां पाठशाला नहीं थी इसलिए उसने उसे निकटके गांवकी पाठशालामें भरती किया था । वह गांव उनकी बस्तीसे बहुत दूर था ।
जटीलको पढाई करनेमें रूचि थी । उसके अध्यापक प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे एवं सहपाठी भी मिलनसार स्वभावके थे । इसलिए वह आनंदसे पाठशाला जाता था । दिनमें जाते समय उसे भय नहीं लगता था । परंतु पाठशाला छूटनेपर घर लौटते समय उसे जंगलसे आना पडता था । निर्जन मार्गसे जहां जंगली जानवरोंका निवास है, ऐसे वनसे आते समय वह भयभीत होता था । उस समय वह छोटासा बच्चा कैसे भी कर अपने प्राण बचाकर घर आता था ।
एक दिन उससे रहा न गया । उसने रोते हुए अपने मनका भय मांको बताया । उसकी व्यथा देख कर उसकी मां भी अपने अश्रू नहीं रोक पाई । जीवन-यापनके लिए दिनभर दूसरोंके घर जी तोड काम करनेवाली वह निर्धन स्त्री अपने बच्चेको लेनेके लिए पाठशाला कैंसे आ सकती थी ? परंतु उसने हार नहीं मानी । जटीलके पीठपर प्रेमसे हाथ फेरतेहुए वह बोली, ‘‘बेटे, इस जगत् मेजिनका कोई नहीं होता, उन्हें भगवान ही संभालते हैं, उनकी रक्षा करते है ! तुम जिस वनसे जाते हो न, वहां तुम्हारे गोपाल भैया रहते हैं । यदि तुम्हे भय लगे तो उन्हें पुकारो । वे तुम्हे मार्गमें साथ देंगे ।’’
बालक जटीलका अपनी मांके वचनपर विश्वास था । कुछ दिन पश्चात सांयके समय वनसे जाते समय उसे शेरकी दहाड सुनाई दी । उसे सुनते ही वह भयके कारण स्तंभित हो गया । क्या करें ? उसे कुछ न सूझा । तभी उसे अपने मांके शब्दोंका स्मरण हुआ और उसने तिलमिलाकर पुकारा, ‘‘गोपाल भैया, दौडकर यहां आईए । अब आपही मेरी रक्षा कीजिए ।’’ चमत्कार ! जटीलकी मांके शब्दोंपर बैठी श्रद्धाको दृढ करनेके लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गोपालाके रूपमें वहां प्रकट हुए । उन्होंने उसे सुरक्षित गांवतक छोडा । उसके उपरांत उनका प्रतिदिन यह नित्यक्रम बन गया, वन आनेपर जटीलद्वारा गोपालका स्मरण करना और गोपालद्वारा उसका साथ देना । मांको यह बात पता ही नहीं थी । जटील बिना भयके प्रतिदिन पाठशाला जा रहा है, इसी बातपर वह संतुष्ट थी ।
एक बार अध्यापकके घरमें कुछ धार्मिक विधि थी । इस निमित्तसे उन्होंने प्रत्येक विद्यार्थीको घरसे यथाशक्तिदूध लाने के लिए कहा । वह सुनकर जटील चिंतित हो गया । घरकी निर्धनस्थितिमें वह दूध कहांसे लाएगा ? उसने अपनी व्यथा गोपाल भैयाको बताई । दूसरे दिन पाठशाला जाते समय गोपाल भैयाने उसे कटोरा भरकर दूध दिया ।
जटील पाठशाला गया । उसके कटोरेको देखकर सभीने उसका उपहास उडाया । इसलिए वह रोने लगा । भगवान श्रीकृष्णको यह अच्छा नहीं लगा । अपने प्रिय भक्तके लिए उन्होंने एक चमत्कार किया । अध्यापकने कटोरा रिक्त किया । तब उन्हें वह कटोरा पुनश्चः भरा हुआ दिखाई दिया । ऐसा करते-करते अध्यापकके घरके सभी बरतन दूधसे भर गए । तब भी दूध आना रुका नहीं !
यह चमत्कार देखकर उसके अध्यापकने उससे क्षमा मांगी और यह सब कैसे हुआ पूछा । तदुपरांत वे स्वयं गोपाल भैयासे मिलनेके लिए निकल पडे; परंतु उन्हें उनके दर्शन नहीं हो पाए । यही सत्य है कि भगवंत श्रद्धावानोंको ही दर्शन देते है !
संदर्भ : साप्ताहिक ‘जय हनुमान’, १६.२.२०१३