१. बंगाली जनता को प्रेरणा देने के लिए छ. शिवाजी महाराज का व्यक्तित्त्व बंगाली भाषा में प्रस्तुत करना
‘उस काल में मुंबई में दिनदहाडे स्त्रियों को मुक्तता से, किसी भी बंधन के बिना विचरण करते हुए देखने का दृश्य इस पूर्व भारत के कवि के लिए अपूर्व संतुष्टि देनेवाला था । रवींद्रनाथजी ने मुंबई पर ‘बोम्बई शहर’, नाम का एक निबंध ही लिखा है । इस निबंध में उन्होंने लिखा, ‘मुंबई में दान के विषय में एक मुक्त हस्तता है । बंगाल में सबसे अल्प दान मिलता है ।’ रवींद्रनाथ ने बंगाली जनता को प्रेरणा मिले, इस हेतु छ. शिवाजी महाराज का असाधारण व्यक्तित्त्व बंगाली भाषा में उनके समक्ष प्रस्तुत किया । शिवराय ने जिस स्वराज्य धर्म की प्रतिष्ठापना के लिए जीवन न्यौछावर किया, उसी स्वराज्य धर्म का उद्घोष रवींद्रनाथ ने अपने काव्यद्वारा किया है ।
२. लोकमान्य तिलक के स्वराष्ट्रप्रेम और रवींद्रनाथ टैगोर की विद्वत्ता एवं कार्य के विषय में एक-दूसरे के मन में नितांत आदर होना
इ.स. १८९८ में पुणे में प्लेग की महामारी फैली थी । अंग्रेज अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण और स्वजनों के परावलंबित्व के कारण प्लेग की महामारी में अनेक नागरिकों को मृत्यु का सामना करना पडा । इससे व्यथित होकर अंग्रेज अधिकारियों की वृत्तिपर, विशेष रूप से उनकी कार्यपद्धति की निर्भत्सना करनेवाला लेख रवींद्रनाथजी ने बंगाली भाषा के अपने ‘भारती’ मासिक में लिखा था । ठीक उसी वर्ष लोकमान्य तिलक को डेढ वर्ष के कारावास का दंड हुआ था । तब रवींद्रनाथ टैगोर ने तिलकजी के अभियोग के लिए बंगाल की जनताद्वारा सहायता के रूप में पैसा इकट्ठा कर पुणे में भेजा था ।
तिलकजी के स्वराष्ट्र प्रेम के विषय में रवींद्रनाथजी के मन में नितांत आदर था । तिलकजी के मन में भी रवींद्रनाथ की विद्वत्ता और कार्य के विषय में कोई संदेह नहीं था ।
संदर्भ : दैनिक ‘तरुण भारत’, २.५.२०११