हनुमानको तेल, सिंदूर, रुईके पत्ते इत्यादि अर्पण क्यों किया जाता है?
सारणी –
- १. हनुमान जयंती
- २. भक्तोंकी मन्नत पूर्ण करनेवाले
- ३. अनिष्ट शक्तियोंका नियंत्रण करनेवाले हनुमान
- ४. मानसशास्त्रमें निपुण व राजनीतिमें कुशल हनुमान
- ५. जितेंद्रिय हनुमान
- ६. प्रचलित पूजा
- ७. हनुमानको तेल, सिंदूर, रुईके पत्ते इत्यादि अर्पण करनेका कारण
- ८. शनिकी साढेसाती व हनुमानकी पूजा
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१. हनुमान जयंती
जब भी दास्यभक्तिका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण देना हो, तो आज भी हनुमानकी रामभक्तिका स्मरण होता है । वे अपने प्रभुपर प्राण अर्पण करनेके लिए सदैव सिद्ध रहते । प्रभु रामकी सेवाकी तुलनामें शिवत्व व ब्रह्मत्वकी इच्छा भी उन्हें कौडीके मोलकी लगतीं । हनुमान सेवक व सैनिकका एक सुंदर सम्मिश्रण हैं ! हनुमान अर्थात शक्ति व भक्तिका संगम । अंजनीको भी दशरथकी रानियोंके समान तपश्चर्याद्वारा पायस (चावलकी खीर, जो यज्ञ-प्रसादके तौरपर बांटी जाती है) प्राप्त हुई थी व उसे खानेके उपरांत ही हनुमानका जन्म हुआ था । उस दिन चैत्रपूर्णिमा थी, जो `हनुमान जयंती’ के तौरपर मनाई जाती है ।
२. भक्तोंकी मन्नत पूर्ण करनेवाले
हनुमानको मन्नत पूर्ण करनेवाले देवता मानते हैं, इसलिए व्रत या मन्नत माननेवाले अनेक स्त्री-पुरुष हनुमानकी मूर्तिकी श्रद्धापूर्वक निर्धारित प्रदक्षिणा करते हैं । कई लोगोंको आश्चर्य होता है कि, जब किसी कन्याका विवाह न तय हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानकी उपासना करनेको कहा जाता है । मानसशास्त्रके आधारपर कुछ लोगोंकी यह गलतधारणा होती है कि सुंदर, बलवान पुरुषके साथ विवाह हो, इस कामनासे कन्याएं हनुमानकी उपासना करती हैं । वास्तविक कारण आगे दिए अनुसार है ।
३. अनिष्ट शक्तियोंका नियंत्रण करनेवाले हनुमान
हनुमान भूतोंके स्वामी माने जाते हैं । इसलिए यदि किसीको भूतबाधा हो, तो उस व्यक्तिको हनुमानमंदिर ले जाते हैं या हनुमानस्तोत्र बोलनेके लिए कहते हैं । जागृत कुंडलिनीके मार्गमें यदि कोई बाधा आ जाए, तो उसे दूर कर कुंडलिनीको योग्य दिशा देना । लगभग ३० % व्यक्तियोंका विवाह भूतबाधा, जादू-टोना इत्यादि अनिष्ट शक्तियोंके प्रभावके कारण नहीं हो पाता । हनुमानकी उपासना करनेसे ये कष्ट दूर हो जाते हैं व विवाह संभव हो जाता है । (१० % व्यक्तियोंके विवाह, भावी वधू या वरके एक-दूसरेसे अवास्तविक अपेक्षाओंके कारण नहीं हो पाते । अपेक्षाओंको कम करनेपर विवाह संभव हो जाता है । ५० % व्यक्तियोंका विवाह प्रारब्धके कारण नहीं हो पाता । यदि प्रारब्ध मंद या मध्यम हो, तो कुलदेवताकी उपासनाद्वारा प्रारब्धजनक अडचनें नष्ट हो जाती हैं व विवाह संभव हो जाता है । यदि प्रारब्ध तीव्र हो, तो केवल किसी संतकी कृपासे ही विवाह हो सकता है । शेष १० % व्यक्तियोंका विवाह अन्य आध्यात्मिक कारणोंसे नहीं हो पाता । ऐसी परिस्थितिमें कारणानुसार उपाय करने पडते हैं ।)
४. मानसशास्त्रमें निपुण व राजनीतिमें कुशल हनुमान
अनेक प्रसंगोंमें सुग्रीव इत्यादि वानर ही नहीं, बल्कि राम भी हनुमानकी सलाह लेते थे । जब विभीषण रावणको छोडकर रामकी शरण आया, तो अन्य सेनानियोंका मत था कि उसे अपने पक्षमें नहीं लिया जाए; परंतु हनुमानकी बात मानकर रामने उसे अपने पक्षमें ले लिया । लंकामें प्रथम ही भेंटमें सीताके मनमें अपने प्रति विश्वास निर्माण करना, शत्रुपक्षके पराभवके लिए लंकादहन करना, रामके आगमनसंबंधी भरतकी भावनाएं जानने हेतु रामद्वारा उन्हींको भेजा जाना, इन सभी प्रसंगोंसे हनुमानकी बुद्धिमत्ता व मानसशास्त्रमें निपुणता स्पष्ट होती है । लंकादहन कर उन्होंने रावणकी प्रजाका, रावणके सामर्थ्यपरसे विश्वास उठा दिया ।
५. जितेंद्रिय हनुमान
सीताको ढूढने जब हनुमान रावणके अंत:पुरमें गए, तो उस समय उनकी जो मन:स्थिति थी, वह उनके उच्च चरित्रका सूचक है । इस संदर्भमें वे स्वयं कहते हैं – `सर्व रावणपत्नियोंको नि:शंक लेटे हुए मैंने देखा तो सही, परंतु देखनेसे मेरे मनमें विकार उत्पन्न नहीं हुआ ।’ अनेक संतोंने ऐसे जितेंद्रिय हनुमानकी पूजा निश्चित कर, उनका आदर्श समाजके समाने रखा ।
६. प्रचलित पूजा
चैत्रपूर्णिमाके दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है । प्राय: शनिवार व मंगलवार हनुमानके दिन माने जाते हैं । इस दिन हनुमानको सिंदूर व तेल अर्पण करनेकी प्रथा है । कुछ जगह तो नारियल चढानेकी भी रूढि है । आध्यात्मिक उन्नतिके लिए वाममुखी (जिसका मुख बाईं ओर हो) हनुमान या दासहनुमानकी मूर्तिको पूजामें रखते हैं ।
दासहनुमान व वीरहनुमान: ये हनुमानके दो रूप हैं । दासहनुमान रामके आगे हाथ जोडे खडे रहते हैं । उनकी पूंछ जमीनपर रहती है । वीरहनुमान योद्धा मुद्रामें होते हैं । उनकी पूंछ उत्थित रहती है व दाहिना हाथ माथेकी ओर मुडा रहता है । कभी-कभी उनके पैरों तले राक्षसकी मूर्ति भी होती है । भूतावेश, जादू-टोना इत्यादि द्वारा कष्ट दूर करनेके लिए वीरहनुमानकी उपासना करते हैं ।
दक्षिणमुखी हनुमान: इस मूर्तिका मुख दक्षिणकी ओर होता है इसलिए इसे दक्षिणमुखी हनुमान कहते हैं । जादू-टोना, मंत्र-तंत्र इत्यादि प्रयोग प्रमुखत: ऐसी मूर्तिके सम्मुख ही किए जाते हैं । ऐसी मूर्तियां महाराष्ट्रमें मुंबई, पुणे, औरंगाबाद इत्यादि क्षेत्रोंमें व कर्नाटकमें बसवगुडी क्षेत्रमें पाई जाती हैं ।
७. हनुमानको तेल, सिंदूर, रुईके पत्ते इत्यादि अर्पण करनेका कारण
पूजाके दौरान देवताओंको जो वस्तु अर्पित की जाती है, वह वस्तु उन देवताओंको प्रिय है, ऐसा बालबोध भाषामें बताया जाता है, उदा. गणपतिको लाल फूल, शिवको बेल व विष्णुको तुलसी इत्यादि । उसके पश्चात् उस वस्तुके प्रिय होनेके संदर्भमें कथा सुनाई जाती है । प्रत्यक्षमें शिव, विष्णु, गणपति जैसे उच्च देवताओंकी कोई पसंद-नापसंद नहीं होती । देवताको विशेष वस्तु अर्पित करनेका तात्पर्य आगे दिए अनुसार है ।
पूजाका एक उद्देश्य यह है कि, पूजी जानेवाली मूर्तिमें चैतन्य निर्माण हो व उसका उपयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए हो । यह चैतन्य निर्माण करने हेतु देवताको जो विशेष वस्तु अर्पित की जाती है, उस वस्तुमें देवताओंके महालोकतक फैले हुए पवित्रक (उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण) आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य वस्तुओंकी अपेक्षा अधिक होती है । तेल, सिंदूर, रुईके पत्तोंमें हनुमानके पवित्रक आकर्षित करनेकी क्षमता सर्वाधिक है; इसी करण हनुमानको यह सामग्री अर्पित करते हैं ।
८. शनिकी साढेसाती व हनुमानकी पूजा
यदि शनिकी साढेसाती हो, तो उस प्रभावको कम करने हेतु हनुमानकी पूजा करते हैं । यह विधि इस प्रकार है – एक कटोरीमें तेल लें व उसमें काली उडदके चौदह दाने डालकर, उस तेलमें अपना चेहरा देखें । उसके उपरांत यह तेल हनुमानको चढाएं । जो व्यक्ति बीमारीके कारण हनुमान मंदिर नहीं जा सकता, वह भी इस पद्धतिनुसार हनुमानकी पूजा कर सकता है । खरा तेली शनिवारके दिन तेल नहीं बेचता, क्योंकि जिस शक्तिके कष्टसे छुटकारा पानेके लिए कोई मनुष्य हनुमानपर तेल चढाता है, संभवत: वह शक्ति तेलीको भी कष्ट दे सकती है । इसलिए हनुमान मंदिरके बाहर बैठे तेल बेचनेवालोंसे तेल न खरीदकर घरसे ही तेल ले जाकर चढाएं ।
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