भूदरगढ

कोल्हापुर से लगभग ५०-५५ कि.मी. की दूरीपर भूदरगढ किला है । यह किला यहां के जागृत भैरवनाथजी के देवालय के कारण विख्यात है । किला आठ सौ मीटर लंबा एवं सात सौ मीटर चौडा है । इस किले के दो दरवाजे हैं । तट बहुत स्थानोंपर टूट-फूट गया है । यहां प्रतिवर्ष माघ कृष्ण प्रतिपदा से दशमी तक बडा मेला लगता है ।

इतिहास

इ.स. १६६७में शिवाजी महाराजजी ने भूदरगढ की अच्छे प्रकार से मरम्मत करवाई एवं वहां सैनिकों को तैनात कर, प्रबल सैनिक थाना बनवाया था; परंतु मुगलोंने इस थाने को अल्पकाल में ही अपने अधिकार में ले लिया । पांच वर्ष के उपरांत मराठोंने अचानक आक्रमण कर के किले को जीत लिया और साथ ही प्रमुख मुगल सरदार को मार डाला । मुगलों के निशान उन्होंने भैरवनाथजी को अर्पित कर दिए, वे ध्वज आज भी देवालय में हैं ।

अठारहवें शतक के उत्तरार्ध में परशुराम पटवर्धनजीने किले के सैनिकों को अपने नियंत्रण में लेकर किले को अपने अधिकार में ले लिया । दस वर्ष तक किला उनके नियंत्रण में ही रहा ।

इ.स. १८४४में कोल्हापुर के कुछ लोगोंने विरोध कर अनेक किलों को अपने नियंत्रण में ले लिया । उनमें सामरगढ और भूदरगढ प्रमुख थे । उनको पराजित करने के लिए जनरल डिलामोटी अपने सैनिकों के साथ चल पडा । १३ अक्टूबर १८४४को अंग्रेजी सैनिकोंने भूदरगढ पूर्णत: अपने नियंत्रण में ले लिया । इस प्रकार का आक्रमण बार-बार ना हो इसलिए वहां के तटबंदी की अत्यधिक तोडफोड कर दी ।

किले के स्थान

किले का सबसे सुंदर एवं दर्शनीय स्थल श्री भैरवनाथजी का मंदिर हैं । किलेपर एक बहुत बडा सरोवर हैं । उसके तटपर श्री शिवजी के दो मंदिर एवं भैरवी का मंदिर हैं । जिसे जखुबाई के नाम से जाना जाता है । किलेपर अल्पसंख्या में वृक्ष, पेड-पौधे हैं । किले से दूधगंगा-वेदगंगा नदियों के कछार, राधानगरी का घना वन एवं अंबोली घाटी के समीप का भाग दिखाई देता है ।

कैसे पहुंचे

कोल्हापुर से गारगोटी तक बस सेवा उपलब्ध हैं । गारगोटी से किले के तटके नीचे तक एस.टी. महामंडल की बस सुविधा उपलब्ध है ।

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