अब समाचार-पत्रों के साथ दूरदर्शन भी एक बन गया है । मानव मन के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं । आज जो बालक दूरदर्शन पर बलात्कार, अश्लील दृश्य तथा हिंसा देखते हैं, वे भविष्य में क्या बनेंगे ? दूरदर्शन के कारण बालक अभिनेता एवं क्रिकेट के खिलाडियों समान अनुचित लोगों को आदर्श मान लेते हैं । इसी कारण समर्थ रामदासस्वामी, स्वामी विवेकानंद आदि धर्मपुरुष तथा छत्रपति शिवाजी महाराज, लो. टिळक आदि राष्ट्रपुरुषों के समान खरे आदर्शों की ओर उनका ध्यान नहीं जाता । दूरदर्शन मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है, अपितु समाज की नैतिकता, भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय आदर्श नष्ट करने का माध्यम बन गया है !
१. दूरचित्रवाणी के दुष्परिणाम
बच्चो, आपको दूरचित्रवाणी देखना निश्चितरूप से अच्छा लगता होगा; परंतु इस के लाभ अल्प एवं दुष्परिणाम ही अधिक हैं । यह आपको ज्ञात है क्या ? नहीं न ? फिर ये दुष्परिणाम कौनसे हैं, यह देखेंगे !
अ. आंखों की हानि होना
बच्चो, दूरचित्रवाणी अर्थात ‘टी.वी.’ आजकल सभी का अत्यंत प्रिय शब्द है ।इस शब्द ने सभीपर क्या जादू कर रखा है, कौन जाने ? कुछ बच्चे दूरचित्रवाणी के सामने एकाग्रता से डटे बैठे रहते हैं । उन्हें खेलने के लिए बुलानेपर भी वे दूरचित्रवाणी देखना ही पसंद करते हैं । अनेक बार ऐसे बच्चों के बडे नंबर का चश्मा भी चढा होता है । बीच-बीच में इन बच्चों को आंखों में वेदना होने की शिकायत भी रहती है ।
आ. दूरचित्रवाणीपर कार्यक्रम देखते हुए भोजन ग्रहण करने का बुरा परिणाम होना
कुछ बच्चे दूरचित्रवाणीपर के कार्यक्रमों को देखते हुए भोजन ग्रहण करते हैं । उस कार्यक्रम के झगडे, दुःखद प्रसंग, हत्या आदि का दुष्परिणाम भोजनपर होता है । उनका शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य बिगड सकता है ।
इ. अयोग्य कार्यक्रम देखने के कारण कुसंस्कार होना
अनेक बच्चे पारिवारिक धारावाहिक देखते हैं । उन धारावाहिकों में अधिकांशत: राग-द्वेष के कारण झगडे रोना-पीटना होता है । दूरचित्रवाणीपर सिनेमा, सिनेकलाकारों की मुलाकात, अश्लील गीत तथा नृत्य देखकर बच्चों में ऐसी भावना उत्पन्न होती है कि‘स्वयं भी उन कलाकारों का अनुकरण करें ।’
ई. गलत आदतें डालकर भावी पीढीपर विपरीत परिणाम होना
दूरचित्रवाणीपर मालिका तथा सिनेमाद्वारा उलटा बोलना, चोरी करना, मारपीट करना, हत्या करना, ऐसी अनेक कुसंस्कारजन्य बातों के कारण बच्चों के गलत मार्गपर जाने की संभावना बढ जाती है ।
भूतों विषयी मालिका देखकर बच्चे भयभीत होते हैं तथा नींद में हडबडाकर,चीखकर अथवा रोते हुए उठ जाते हैं ।
परीक्षा समीप आ गई, तब भी बच्चों को दूरचित्रवाणीपर के कार्यक्रम देखने का मोह नहीं छूटता है । इसका परिणाम यह होता है कि बच्चोंद्वारा ठीक से अभ्यास नहीं होता है और उसका परिणाम उनके भावी जीवनपर होता है ।
उ. जीवन का अमूल्य समय व्यर्थ जाना
बच्चे भूख, नींद, अभ्यास, खेल तथा अन्य काम छोडकर दूरचित्रवाणीपर के कार्यक्रम देखने में मग्न दिखाई देते हैं । दूरचित्रवाणी देखने में बचपन का उनका अधिकांश समय व्यर्थ जाता है ।
ऊ. मनोरंजन में डूबे होने से राष्ट्र तथा धर्म के विषय में कर्तव्य भूलना तथा साधना न करना
आजकल दूरचित्रवाणीपर ३ से १५ वर्षतक की आयु के बच्चों को भी नृत्य, गायन,अभिनय, विनोद समान मनोरंजनात्मक कार्यक्रमों में सहभागी किया जाता है । उनके सामने अभिनेता-अभिनेत्रियों का आदर्श रखा जाता है । इन सर्व मनोरंजन में बच्चों सहितबडे लोग भी स्वयं को इतना सम्मिलित कर लेते हैं कि, ‘राष्ट्र तथा धर्म के विषय में नागरिकों का कुछ कर्तव्य है’ यही सर्व जन भूल जाते हैं ।
भगवान का नामजप, स्तोत्रपाठ इत्यादि साधना प्रत्येक को ही प्रतिदिन करना आवश्यक है; परंतु वर्तमान में सभीपर दूरचित्रवाणी का इतना प्रभाव पडा है कि उन्हें प्रतिदिन यह सर्व करना चाहिए इसका भी विस्मरण हो जाता है ।
२. दूरदर्शनसंच को कैसे दूर रखें ?
अ. अच्छी पढाई कर सफलता करनेका ध्येय रखें !
बच्चो, दूरदर्शन निरंतर देखनेकी आदत छोडनी है, तो सर्व आप अपना ध्येय निश्चित कर लें । बच्चोंका ध्येय क्या होना चाहिए ? अच्छी पढाई कर परीक्षामें सफलता करना एवं बडे होकर शोधकर्ता, सैनिक अधिकारी आदि बनकर राष्ट्र एवं धर्म की सेवा करना ।
मित्रो, एक बार ध्येय निश्चित करनेपर उस दृष्टिसे आपकी पढाईके आरम्भ हो जाएंगे और पश्चात दूरदर्शन देखनेके लिए आपको रिक्त समय मिलेगा ही नहीं । रिक्त समय शेष नहीं रहेगा तो आपकी निरंतर दूरदर्शन देखनेकी आदत भी अपनेआप ही छूट जाएगी ।
आ. वाचन में रुचि अथवा कोई कला अथवा अन्य अभिरुचियों का विकास करें !
१. विविध वाचन करें ! : वाचनमें रुचि उत्पन्न होनेके लिएआरम्भमें जिस विषयमें रुचि है, उस पुस्तकका वाचन करें । आगे चलकर जीवनमें उपयुक्त अन्य विषयोंकी पुस्तकोंका भी वाचन करें । धीरे-धीरे विविध विषयोंकी पुस्तकोंका वाचन करें, इससे वाचन करनेमें ऊब नहीं होगी।
अपने तेजस्वी राष्ट्रपुरुषोंका इतिहास; हिन्दुस्थानका स्वतन्त्रता संग्राम, क्रान्तिकारियोंके चरित्र; युद्धकथा; कालसे हिन्दुस्थानके महान वैज्ञानिकोंद्वारा किए गए शोध; मैथिलीशरण गुप्त समान कविश्रेष्ठोंका काव्यसंग्रह; देवता एवं सन्तों के चरित्र, विशेषरूपसे समर्थ रामदासस्वामी, सन्त जनाबाई समान सन्तोंद्वारा छोटी आयुमें की साधना (सन्त गोस्वामी तुलसीदास, मीराबाई, सूरदास); महान हिन्दू संस्कृति इत्यादि विविध विषयोंकी पुस्तकोंका वाचन करें ।
‘छोडिए रिमोट’, पकडिए पुस्तक !’ यह मूलमन्त्र निरन्तर दूरदर्शन देखनेकी आदत छोडनेके लिए उपयुक्त होता है ।
२. गायन, वादन, मूर्तिकला, शिल्पकला आदि में से स्वयंको ि कला अथवा अन्य अच्छी अभिरुचि का विकास करें ।
३. निरन्तर दूरदर्शन देखनेकी आदत चरण-दर-चरण न्यून (कम) करें ! : दूरदर्शनपर अनावश्यक कार्यक्रम देखनेका अपने समयमें सप्ताह आधे घण्टेकी कटौती करें । छुट्टीके दिन तो दूरदर्शनपर कार्यक्रम देखना अत्यल्प करें । परीक्षा निकट आनेपर दूरदर्शन देखना बन्द ही करें ।
३. दूरचित्रवाणी का सीमित उपयोग हितकारी अथवा शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए करें !
‘दूरचित्रवाणीपर मनोरंजनात्मक चलचित्र, अश्लील नृत्य का कार्यक्रम इत्यादि निरर्थक कार्यक्रम देखने की अपेक्षा ‘रामायण, महाभारत, छ. शिवाजी महाराज जैसे धारावाहिक; संत तुकाराम महाराज, संत ज्ञानेश्वर महाराज जैसे संतों के जीवनपर आधारित चलचित्र अथवा क्रांतिकारियोंपर आधारित धारावाहिक देखें । ज्ञानवृदि्ध करनेवाले एवं राष्ट्रप्रेम जागृत करनेवाले कार्यक्रम (‘डिस्कवरी’ एवं ‘नेशनल जिओग्रॉफिक’ इन चैनलोंपर) सीमित समयके लिए ही देखें ।’
चलो बच्चो, आज से दूरदर्शन के कार्यक्रमों को देखने का समय हफ्ते में आधा घंटा न्यून करो !
अवकाश के दिन दूरदर्शन के कार्यक्रम अत्यअल्प देखें ! परिक्षा पास आनेपर दूरदर्शन देखना बंद ही कर दें ।
संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘सुसंस्कार तथा उत्तम व्यवहार’