हम बच्चों में सदैव दिखनेवाली तथा जिनपर घरेलू उपाय करने संभव हैं, ऐसी कुछ मानसिक समस्याओं पर विचार करेंगे ।
नाखून चबाना, अंगूठा चूसना, केश खींचना इत्यादि आदतें
नाखूनों को चबाने से होनेवाली क्षति के विषय में समझाना चाहिए : बच्चा यदि बीच-बीच में नाखूनों को चबाता हुआ दिखे, तो उसकी अनदेखी करना ही अच्छा; किंतु उसको नाखून चबाने की आदत लगी, तो नाखूनों में रहनेवाली गंदगी पेट में जाने से कैसे क्षति होती है, इसे समझाना चाहिए ।
लडकियों को ‘तू नाखून चबाती हो तो वे अच्छे नहीं दिखते; परंतु उनको न चबाने से हाथ सुंदर दिखते हैं, ऐसा कहकर उन्हें समझा सकते हैं ।
नाखूनों को तेल लगाकर उनको मृदु रखने से उनको चबाने की मात्रा अल्प होती है; क्योंकि मृदु नाखूनों को चबाना बच्चों को अच्छा नहीं लगता ।
बच्चों को सोने के समय ५ मिनट में जैसे हम जगनेपर बताते हैं, वैसे नाखून चबाने के विषय में समझाएं । तत्पश्चात ‘नाखून चबाना प्रारंभ करते ही तुझे भान होगा तथा तुम उसको रोक सकते हो’ इस प्रकार की सूचना देनी चाहिए; क्योंकि सोने से पहले के ५ मिनट सम्मोहनावस्था के समान होते हैं । उस समय सूचनाओं के अच्छे परिणाम होते हैं ।
बुरी आदत छूटने हेतु पुरस्कार देना : कभी कभी ‘नाखून नहीं चबाए, तो उपहार दिया जाएगा’, ऐसा बताकर बच्चों को बुरी आदत छोडने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है ।
अघोरी उपचार करना टालना चाहिए : नाखूनों को कडवी औषधि लगाना, चिपकने वाली पट्टियां (स्टिकींग प्लास्टर) लगाना इत्यादि उपचार कतई नहीं करने चाहिए । इससे वह आदत बढने की संभावना होती है ।
अंगूठा चूसना, केश खींचना इत्यादि आदतें होनेपर भी उपरोक्त उपायपद्धति का प्रयोग किया जा सकता है ।
खाने-पीने के संबंध में रुचि-अरुचि
खाने-पीने के संबंध में बच्चों की रुचि-अरुचि होती है, उस स्थिति में माता-पिता को तनिक अधिक समय देना चाहिए । उससे ‘माता-पिता का मेरी ओर ध्यान है’, ऐसा उनको प्रतीत होता है तथा उनकेद्वारा शिकायत करने का अनुपात अल्प होता है ।
बच्चों को कोई भी पदार्थ बलपूर्वक खाने का आग्रह नहीं करना चाहिए : माता-पिता, बच्चे को ‘किसी सब्जी को खाना ही होगा’, ऐसी भूमिका न अपनाएं । उसने किसी पदार्थ को नहीं खाया, तो कुछ सप्ताह तक उस पदार्थ को न दें । अगले समय देते समय उसे भिन्न रूप में देना चाहिए, उदा. पत्तोंवाली सब्जियों में उसकी रुचि नहीं हो तो, पालक, मेथी डालकर पराठे कर देना अथवा ऐसी ही सब्जियां डालकर उसका चीला (घावन) कर देना, इस प्रकार पदार्थों के स्वरूप परिवर्तन कर देने चाहिए । इससे बच्चे उन पदार्थों को रुचि से खाएंगे ।
खाने-पीने के विषय में अनावश्यक समय मर्यादा नहीं दिखानी चाहिए: दो भोजनों के अंतराल में यदि उसे किसी पदार्थ को खाने की इच्छा हुई, तो अवश्य देना चाहिए । ‘सुबह भोजन के समय में तूने नहीं खाया तथा अब खाने को मांग रहा है’, ऐसा बोलकर उसपर क्रोधित नहीं होना चाहिए । भोजन परोस ने के ५-१० मिनट पूर्व ‘अब भोजन परोसनेवाली हूं’, ऐसा उसको सूचित कर देना चाहिए, इससे अपना खेल अथवा अध्ययन की पुस्तक समेटने हेतु उसे समय मिल जाता है ।
बच्चों के साथ भोजन करते समय माता-पिताद्वारा लेनेवाली आवश्यक सावधानियां :
१. भोजन के समय आसपास का वातावरण प्रसन्न होना चाहिए ।
२. भोजन की ओर अनदेखी न हो; इस हेतु बच्चों के निकट खेलने की कोई वस्तु नहीं रखनी चाहिए ।
३. बच्चे के भोजन करने के समय स्वयं की रुचि-अरुचि की चर्चा नहीं करनी चाहिए ।
४. भोजन के समय उसकी प्रगति पुस्तक, गलतियों की चर्चा नहीं करनी चाहिए ।
बच्चों को तिलचट्टा (कोकरोच), छिपकली इत्यादि प्राणी, साथ ही भूत तथा अंधेरा आदि से भय लगना
जिस समय उपरोक्त किसी कारणवश बच्चा भयग्रस्त /भयभीत हो जाता हो, उस समय उसे प्रेमपूर्वक अपने निकट लेकर धीरज देना चाहिए, उसका मजाक नहीं उडाएं ना ही उसपर क्रोधित हों, इस बातपर विशेष ध्यान देना चाहिए ।
अंधेरे का भय दूर हो; इस हेतु पहले ही दीप जलाकर सोने को कहना चाहिए । कुछ दिनों के उपरांत ‘अल्प प्रकाश पडे’, इसकी व्यवस्था करें । इस प्रकार की आदत होने से दीप नहीं जलानेपर भी बच्चा सो सकता है ।
रात में बिस्तर गीला करना
बच्चोंद्वारा बिस्तर गीला करना, यह एक अतिरिक्त आदत है । यह आदत छूटे; इस हेतु निम्न प्रकार की सावधानी लेनी चाहिए ।
१. रात में सोने के पूर्व १ घंटेतक उसे कोई भी पेय पदार्थ नहीं देना चाहिए ।
२. सोने के पूर्व उसे प्रसाधनगृह जाकर आने को कहना चाहिए ।
३. जिस समय बच्चा बिस्तर गीला करता है, उससे १५ मिनट पूर्व गजर लगाकर उसे उठाकर प्रसाधनगृह में लेकर जाना चाहिए ।
४. कुछ दिनों के उपरांत गजर होनेपर बच्चा स्वयं उठकर प्रसाधनगृह में जाने लगेगा, इस प्रकार से उसे प्रोत्साहित करना चाहिए । तत्पश्चात गजर की घडी का अंतर धीरे-धीरे बढाते जाना चाहिए । कुछ दिनों के उपरांत गजर न होनेपर भी, मूत्राशय भर जानेपर बच्चा स्वयं ही जग जाएगा ।
५. जिस रात उसने बिस्तर गीला नहीं किया हो, उसके दूसरे दिवस उसे पुरस्कृत करना चाहिए, उससे उसे स्वयं प्रेरणा से प्रयत्न करने का प्रोत्साहन मिलेगा ।
६. बच्चा के सोने के समय ५ मिनट, ‘जब मूत्राशय भर जाएगा, तब तू जगेगा । जगने के पश्चात तू प्रसाधनगृह जाकर आएगा तथा पुनः शांति से सोएगा’ ऐसी सूचना न्यूनतम दो मासों तक देनी चाहिए ।
बवाल मचाना
बच्चे को बवाल मचाने की आदत हुई, तो माता-पिता को सरदर्द प्रारंभ होता है ।
१. ऐसे समय उसकी ओर पूर्णरूप से अनदेखी करनी चाहिए । उसकी अनुचित मांगों की कतई आपूर्ति नहीं करें ।
२. बच्चे के शांत होनेपर पहले उससे बवाल मचाने का कारण पूछना चाहिए । अधिकतर कारण छोटा ही होता है । उस समय उसपर क्रोधित न होते हुए प्रेम से उसे समझाना चाहिए । उसका मन अन्य बात की ओर व्यस्त हो, ऐसा करना चाहिए । उदा. संगीत, हस्तकला, कोई खेल आदि की रुचि उसमें उत्पन्न करनी चाहिए ।
चोरी करना
बच्चे ने चोरी की तो उसपर क्रोधित होकर मारना नहीं चाहिए । वैसा करना अयोग्य है; किंतु ‘मेरे द्वारा किया गया कृत्य माता-पिता को कतई पसंद नहीं है’, यह उसे समझना चाहिए ।
चोरी करने के पीछे होनेवाले कारण तथा अडचनें समझ लें ! : उससे कारण समझ कर अडचन का समाधान करना चाहिए । कभी कभी माता-पितापर होनेवाले क्रोध के कारण बच्चे ऐसा करते हैं । इस हेतु उनका क्रोध किस विषय में है, उसे जानकर उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए । बच्चेद्वारा चोरी कर उठाकर लार्इ गर्इ अन्यों की वस्तु उसे तुरंत लौटाने को कहना चाहिए ।
गलतियों के कारण दंड देना : कई बार दंड भी देना पडता है, उदा. उसने चुराए हुए पैसों का व्यय किया हो, तो घर के काम करना, स्वयं की थाली धोना , खाने को न देना इस प्रकार के दंड देने चाहिए । इससे भी स्थिति नियंत्रण में न आए तो मानसोपचार विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए ।
अ. घर में रहनेवाले पैसे न दिखनेपर, ‘तूने फला पैसे लिए हैं । उन्हें तुरंत वापस कर दो तथा भविष्य में जब तुझे पैसों की आवश्यकता हो, मुझसे मांग लेना’ । उसके पश्चात क्या करना है, देखेंगे’, ऐसा उसे कहें । यदि उसने चोरी करने से असहमति प्रकट की, तो उससे विवाद नहीं करना चाहिए अथवा उसे सहमत होने हेतु बलपूर्वक विवश भी नहीं करना चाहिए ।
आ. चोरी करनेपर ‘तूने ऐसा क्यों किया’, ऐसा प्रश्न नहीं पूछना चाहिए । पूछनेपर बच्चा कुछ तो झूठ बोलता है । उसे केवल इतना ही कहना चाहिए, ‘तुझे पैसे चाहिए थे, यह तुमने मुझे नहीं बताया, उसका दुख हुआ ।’
झूठ बोलना
झूठ बोलने के कारण : सत्य बताया, तो दंड होगा अथवा माता-पिता क्रोधित होंगे; इसलिए बच्चे झूठ बोलते हैं । कुछ बच्चे स्वयं को महत्त्व प्राप्त होने हेतु झूठ बोलते हैं ।
झूठ बोलने के पीछे होनेवाला कारण खोजकर बच्चे को विश्वास में लेकर समझाना चाहिए : बच्चे किसलिए झूठ बोलते हैं, यह खोजकर उसके अनुसार उपाय करने चाहिए, उदा. दंड का भय होनेपर ‘तुझे दंड नहीं होगा’, ऐसा विश्वास दिलानेपर वह सत्य बोलेगा । तत्पश्चात झूठ नहीं बोलना चाहिए, यह उसे समझाना चाहिए ।
झूठी बातें बताना टालने हेतु करनेवाली कुशलता : यदि न्यूनगंड के कारण बच्चा झूठी आत्मप्रशंसा/ऐंठ दिखाता है, तो उसमें होनेवाले अच्छे गुण, उसका अच्छा आचरण इत्यादि बातों की ओर उसका ध्यान आकर्षित करना चाहिए । इससे उसका स्वयं के विषय में आत्मविश्वास बढता है तथा वह झूठी बातें बताना टालता है ।
अध्ययन न करना
१. विद्यालय से आनेपर बच्चों को तुरंत अध्ययन के लिए न बिठाएं ! : वर्तमान में बच्चों को विद्यालय में अनेक विषय होते हैं तथा उतना ही गृहपाठ भी दिया जाता है । इस भार से उनका अध्ययन से तंग आना स्वाभाविक है । ऐसे समय विद्यालय से आनेपर बच्चों को तुरंत अध्ययन के लिए न बिठाते हुए उनका खाना-पीना होने के उपरांत एक घंटेतक उसको खेलने देना चाहिए तथा उसके पश्चात ही अध्ययन के लिए बिठाएं ।
२. बच्चे की अन्य विषय में होनेवाली रुचियों को ध्यान में लें ! : कभी कभी बच्चे को अन्य विषय में रुचि उत्पन्न होने से अध्ययन की ओर उनकी अनदेखी होती है । ऐसे समय यदि संगीत, चित्रकला अथवा किसी खेल में उसे रुचि उत्पन्न हुई हो, तो उसे वह करने देना चाहिए । किंतु समय की मर्यादा अवश्य डालनी चाहिए । वह प्रतिदिन अध्ययन करे, यह भी देखना चाहिए ।
विद्यालय में आने-जाने की नियमितता के संदर्भ में बच्चे की समीक्षा करनी चाहिए : अभिभावकों को बीच-बीच में विद्यालय जाकर, बच्चा समयपर एवं नियमितरूप से विद्यालय में आता है अथवा नहीं तथा उसका आचरण कैसा है, इसपर भी ध्यान रखना चाहिए; क्योंकि वर्तमानमें ‘इलेक्ट्रॉनिक गेम्स’की ओर बच्चे बहुत आकर्षित होते हुए दिखाई देरहे हैं । कुछ बच्चे तो विद्यालय छोडकर वहां जाते हैं । ऐसे खेलों के लिए भी पैसे लगते हैं । इस हेतु घर के पैसों की चोरी करना प्रारंभ होता है तथा अध्ययन की अनदेखी होती है । ऐसा होनेपर बच्चे के विद्यालय में जाना भी आवश्यक होता है । अन्यथा भविष्य में ये बच्चे अपराधियों के विश्व में खिंच जाते हैं ।
परीक्षा में किसी विषय में अच्छे अंक प्राप्त होनेपर उनकी प्रशंसा करनी चाहिए । छोटासा उपहार देने से उनको ‘और अधिक अध्ययन करना चाहिए’, ऐसा प्रतीत होगा ।
मुख्य रूप से घर का वातावरण आनंदपूर्ण तथा प्रसन्न होना चाहिए । माता-पिता की समस्याओं से बच्चों की मनःशांति को क्षति न पहुंचे, इस विषय में जागरूक रहना चाहिए । एकाग्रता बढाने हेतु सम्मोहनशास्त्र का उपयोग करने से बहुत लाभ होता है ।
सहज घरेलू मानसोपचारों से बच्चों की अधिकतम समस्याएं दूर की जा सकती हैं, साथ ही माता-पिता के योग्य आचरण से उनका व्यक्तित्व निरोगी /स्वस्थ रहने में भी सहायता होती है । उससे भविष्य में मानसिक विकार होने की संभावना अल्प होती है ।
– आधुनिक वैद्या (डॉ.) श्रीमति कुंदा आठवले (संदर्भ : आकाशवाणीपर प्रसारित भाषण, खिस्ताब्द १९८८)