पाठ्य पुस्तक में होनेवाली प्रतिज्ञाओं को आचरण में लाएं !

१. प्रतिज्ञाओं को आचरण में लाने से बच्चों में राष्ट्राभिमान उत्पन्न होकर उनका राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु सिद्ध होना

‘विद्यार्थी मित्रो, हमारी पाठ्य पुस्तक के पहले पृष्ठपर प्रतिज्ञा लिखी हुइ है । वह किस हेतु है ? हमारे जीवन के सभी मूल्य इस प्रतिज्ञा में हैं । प्रतिज्ञा के अनुसार आचरण करना, यही शिक्षा है । यह प्रतिज्ञा व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की आत्मा है । आज हम परीक्षार्थी होने से नैतिक आदर्शों कीअपेक्षा गुणों को अधिक महत्त्व देते हैं । परीक्षा में ‘प्रतिज्ञा ’के विषय में प्रश्न नहीं पूछे जाने से उसका अर्थ समझकर उसके अनुसार आचरण करना तथा जीवन व्यतीत करना ये बातें हमें क्षुद्र लगती हैं । जब तक हमारी इस स्थिति में परिवर्तन नहीं होता, तब तक हम में राष्ट्राभिमान उत्पन्न नहीं होगा तथा हम राष्ट्ररक्षा हेतु सिद्ध नहीं होंगे । चलो, हम सब प्रतिज्ञा के अनुसार जीवन व्यतीत करने का प्रयत्न करें तथा राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु सिद्ध हों ।

२. प्रतिज्ञा में होनेवाले वाक्यों का अर्थ

अब हम इस प्रतिज्ञा में होनेवाले वाक्यों का अर्थ समझ लेते हैं ।

२ अ. ‘भारत मेरा देश है’ : हम,भारत मेरा देश है, ऐसा कहते हैं’; किंतु हमें वह ‘अपना’ लगना चाहिए । तभी हम उसकी ओर ध्यान देंगे तथा उसका संवर्धन करेंगे । यदि प्रत्येक को ही ‘यह देश मेरा है’, ऐसा लगे, तभी प्रत्येक व्यक्ति देश की रक्षा हेतु सिद्ध होगा । देश में कोई भी समस्या नहीं रहेगी तथा ‘सुजलाम् सुफलाम् होकर देश का सर्वांगीण विकास होगा ।

३. ‘सारे भारतीय मेरे बंधु हैं !’

‘देश का प्रत्येक व्यक्ति मेरा भाई/बहन है । ‘संपूर्ण देश ही मेरा परिवार है’, हमारा विचार ऐसा व्यापक होना चाहिए; किंतु क्या प्रत्यक्ष रूप में हम ऐसा आचरण करते हैं ? इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । यदि हम ने इस प्रकार आचरण किया, तो परस्पर झगडे नहीं होंगे, सभी प्रसन्नता से रहेंगे । वर्तमान में विद्यालय में भी बच्चे परस्पर लडते ही रहते हैं, एक दूसरे को भला-बुरा कहते हैं । ‘यह विश्व ही मेरा घर’ ऐसा व्यापक विचार हो, तो रामराज्य आएगा ।

४. ‘मेरे देशपर मेरा प्रेम है !’

मेरा मेरे देशपर प्रेम है, तो हमें देश के प्रत्येक व्यक्ति तथा वस्तु से जी जान अर्पण कर प्रेम करना चाहिए । हमने ऐसा आचरण किया, तो देश में एक भी समस्या नहीं रहेगी । देश में रहनेवाला प्रत्येक परिवार तथा उसके समेत राष्ट्र संतुष्ट होगा ।

५. ‘मेरे देश की समृद्धि तथा विविधताओं से संपन्न परंपराओं का मुझे अभिमान है !’

विद्यार्थी मित्रो, हमारी परंपरा अर्थात हमारी संस्कृति । हमारी संस्कृति विश्व का मार्गदर्शक होने इतनी उच्च है । ‘प्रत्येक व्यक्ति आनंद से रहे ऐसी हमारी संस्कृति की सीख है । त्याग ही हमारी परंपरा है, परस्पर मिलने पर हम एक दूसरे को नमस्कार करते हैं । माथेपर तिलक लगाते हैं । ऐसी परंपराओं का हमें अभिमान होना चाहिए । ऐसी परंपराओं से ही हम में राष्ट्राभिमान जागृत रहनेवाला है । किंतु आधुनिकता तथा पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण हमें इन सबका विस्मरण हो रहा है ।

६. ‘इन परंपराओं का आचरण करने की पात्रता मुझ में आए; इस हेतु मैं सदैव प्रयत्न करूंगा !’

परंपराओं के अनुसार आचरण करना, अर्थात उसका अनुयायी होना । हमारा आचरण, हमारी भाषा हमारी परंपराओं के अनुसार होनी चाहिए; किंतु प्रत्यक्ष रूप में वह कैसे होता है, यह देखेंगे । हम दूरभाषपर ‘नमस्कार न बोलते हुए ‘हैलो’ बोलते हैं । हमारी लडकियां हमारी संस्कृति के अनुसार पोशाक करने के स्थानपर पुरुषों के समान जीन्स, टी शर्ट परिधान करती हैं । वे कुंकुम नहीं लगातीं, कंगन (चूडियां)नहीं धारण करतीं । यदि हम परंपराओं का पालन नहीं करते, तो हम अपनी परंपराओ के अनुयायी कैसे होंगे ?

७. ‘मैं मेरे अभिभाव कों, गुरुजनों तथा वरिष्ठों का आदर करूंगा तथा प्रत्येक के साथ सौजन्यता से व्यवहार करूंगा !’

इस प्रतिज्ञा में होनेवाले वाक्य के अनुसार हम अपने माता-पिताओं को प्रतिदिन नमस्कार नहीं करते । गुरुजनों का आदर नहीं करते । कुछ लडके अपने अध्यापकों का मजाक उडाते हैं, यह सब पाप है । आज से हम हमारे माता-पिता तथा गुरुजनों का वंदन करेंगे । हम यदि प्रत्येक के साथ सौजन्यता से व्यवहार करेंगे, तो हमारी किसी से शत्रुता नहीं रहेगी ।

८. ‘मेरा देश तथा देशबांधव इनके प्रति निष्ठा रखने की मैं प्रतिज्ञा कर रहा हूं !’

हम ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं; परंतु मेरे देशबांधवों की प्रगति तथा देश की रक्षा हेतु मैं क्या करता हूं ? हमारे पडोसी देश पाकिस्तान तथा चीन हमसे युद्ध करने की सिद्धता में हैं । ऐसी कठिन परिस्थिति में हमें हमारा देश, संस्कृति तथा धर्म इनसे एकनिष्ठ रहना चाहिए ।

९. ‘उनका (देश तथा देशबांधवों का) कल्याण तथा उनकी समृद्धि में ही मेरा सुख समाया है !’

हमारा प्रत्येक कृत्य अन्यों के कल्याण हेतु होना चाहिए । अन्यों की प्रगति होनेसे हमें प्रसन्नता होनी चाहिए । वर्तमान में समाज में आसुरी वृत्ति देखने को मिलती है ।

विद्यार्थी मित्रो, हम प्रतिदिन विद्यालय में यह प्रतिज्ञा कहते हैं; किंतु ‘उसके अनुसार आचरण होना चाहिए’, ऐसा विचार भी हमारे मन में नहीं आया । आज से हम प्रतिज्ञा के अनुसार आचरण करने का प्रयत्न करेंगे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने हिंदवी स्वराज्य स्थापना की प्रतिज्ञा ली तथा वह पूर्ण की । यह उनको कैसे संभव हुआ ? शिवरायजी ने उनकी कुलदेवी भवानीमाता की भक्ति की । हम भी हमारी कुलदेवी का नामजप करेंगे । प्रत्येक कृत्य को करने के पूर्व देवता को प्रार्थना करेंगे । मित्रो, भक्ति से ही शक्ति मिलती है ।’

– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल

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