‘शिक्षक वह व्यक्ति है जो विद्यार्थियों को प्रतिदिन नवीन ज्ञान देते हैं । शिक्षक विद्यार्थियों के लिए तन एवं मन का त्याग करते हैं । उनके कारण विद्यार्थियों को जीवन की दिशा मिलती है । बचपन में अनेक विद्यार्थी अच्छे-बुरे का भेद नहीं समझते । शिक्षक उन्हें इस विषय में समझाते हैं । यह करते समय वे कभी-कभी विद्यार्थियों को डांटते भी हैं ! परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे विद्यार्थियों से प्रेम नहीं करते । वे विद्यार्थियोंपर मां के समान ही ममता रखते हैं । विद्यार्थियों के दोषों का भान भी वे प्रेम से करवाते हैं । प्रसंगानुसार उन्हें कठोर बनना पडता है । ऐसा करने में ‘विद्यार्थी अच्छे, सुसंस्कारित एवं ज्ञानी बनें’ यही उनका उद्देश्य होता है । वास्तव में शिक्षकों के कारण ही विद्यार्थियों को योग्य दिशा मिलती है । शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन का दीपस्तंभ ही हैं !
विद्यार्थियो, शिक्षकों से इस प्रकार व्यवहार करें ।
१. विद्यालय के शिक्षकों को ‘सर’ की अपेक्षा ‘गुरुजी’ कहें ।
२. शिक्षक से मिलने पर विनम्रता से हाथ जोडकर उन्हें ‘प्रणाम गुरुजी’ अथवा‘नमस्कार गुरुजी’ कहें ।
३. त्यौहार और उत्सव के समय शिक्षकों को झुक कर प्रणाम अथवा नमस्कार करें।
४. शिक्षकों का आदर कर उनसे नम्रता और प्रेमसे बातें करें ।
५. कक्ष के अन्य बच्चों को भी शिक्षकों का आदर करना सिखाएं ।
६. शिक्षकों के कारण विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है इसलिए उनके प्रति कृतज्ञता भाव रखें ।
उपर्युक्त विषय विद्यार्थियो के लिए संस्कारवर्ग एवं विद्यालय में ले सकते हैं । इस कारण विद्यार्थियों के मन में शिक्षकों के प्रति आदरभाव वृद्धिंगत होगा । यह विषय लेने से शिक्षकों को भी इस विषय में अपनापन लगेगा और वे भी सुसंस्कारित पीढी निर्माण करने तथा ईश्वरीय कार्य में सहभागी होंगे ।
संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘ सुसंस्कार एवं उत्तम व्यवहार’