भक्तिद्वारा स्वयं में विद्यमान देवीतत्त्व जागृत कर राष्ट्र रक्षा हेतु सिद्ध होना एवं अधिक से अधिक भावपूर्ण उपासना कर देवी की कृपा संपादन करना, वास्तव में यह नवरात्र उत्सव !
नवरात्र उत्सव अर्थात स्वयं में विद्यमान दुर्गादेवी की शक्ति जागृत करना । हिंदु धर्म के अनुसार ‘प्रत्येक स्त्री दुर्गामाता का ही रूप है’, इस प्रकार की हमारी श्रद्धा रहने के कारण ही हम उनके साथ आदरपूर्वक आचरण करते हैं । जिस प्रकार जिजाऊ ने शिवराय के चरित्र का विकास किया, उसी प्रकार भावी पीढी को, अर्थात् राष्ट्र का स्त्री निर्माण करती है । स्त्री शक्ति का रूप होने के कारण स्त्रियोंने उपासनाद्वारा स्वयं में विद्यमान शक्ति जागृत करनी चाहिए । वर्तमान में स्त्री दुर्बल होने के कारण उसमें प्रतिकार करने की क्षमता अल्प है; अतएव स्त्रियोंपर होनेवाले अत्याचारो में वृदिध हुई हैं । राणी लक्ष्मीबाईने अंग्रेजों के विरुद्ध युध्द किया । हमें भी स्वयं में विद्यमान देवीतत्त्व भक्तिद्वारा जागृत कर स्वयं की एवं राष्ट्र की रक्षा हेतु सिद्ध होना चाहिए । लडकियों, स्वयं की रक्षाहेतु नवरात्रि के उत्सव में अधिक से अधिक भावपूर्ण उपासना करें एवं देवी की कृपा संपादन करें । हम स्वय में क्षात्रवृत्ती जागृत कर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु सिद्ध रहेंगे, वास्तव में यह ही नवरात्र उत्सव है ।
१. नवरात्र उत्सव में क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं ?
अ. नवरात्र उत्सव में यह क्यों नहीं करें !
१. चलचित्र के गीतोंपर गरबा नहीं खेलें ।
२. असुर का अथवा विचित्र मुखवटा धारण कर अंगविक्षेप के साथ न नाचें ।
३. लडकियों, पुरूषों की वेशभूषा पहनकर गरबा नहीं खेलें ।
४. काले रंग के कपडे परिधान नहीं करें : काला रंग वातावरण में अंतर्भूत रज-तम आकृष्ट कर लेता है, तो सत्त्वगुण आनंद प्रदान करता है । अतः हमारा प्रत्येक कृत्य सत्त्व गुण की हेतु होना चाहिए ।
आ. नवरात्रोत्सव में यह करें !
१.सात्त्विक वेश परिधान करें : वर्तमान में लडकियां स्त्री-पुरुष समानता के नाम पर पुरूषों जैसा वेश परिधान करती हैं । स्त्री का इस प्रकार वेश परिधान करना, अर्थात् उसमें विद्यमान देवीतत्त्व का अनादर करने समान हैं । इस प्रकार के विकृत वेश के कारण मन में अनिष्ट विचारों की मात्रा बढती हैं, साथ ही श्री दुर्गादेवी का चैतन्य ग्रहण करना भी असंभव होता है । देवी से हम प्रार्थना करेंगें एवं आज से हिंदु संस्कृति के अनुसार वेश परिधान करने का निश्चय करेंगे । बच्चों, हम ऐसा करेंगे ना ?
२. लडकियों, नवरात्र में देवी की शक्ति प्राप्त होने के लिए प्रतिदिन चूडियां एवं पायल धारण करें : वर्तमान में स्त्री-पुरुष समानता के नामपर लडकियां चूडियां एवं पायल धारण नहीं करती । देवी के शरीरपर सभी अलंकार हैं । तो हम भी उनके समान सात्त्विक अलंकार धारण करें, तो ही देवी की कृपा हमपर होगी । प्रत्येक अलंकार केवल हम सुंदर दिखें, इसके लिए नहीं, तो उससे हमें देवी की शक्ति प्राप्त होती है; इसलिए धारण करने चाहिए । देवी से हम प्रार्थना करेंगे, ‘माते, आज से मुझे अलंकार धारण करने की शक्ति एवं बुद्धि प्रदान करें ।’
३. आज्ञाचक्र पर कुमकुम लगाकर स्वयं में विद्यमान देवीतत्त्व जागृत करें : आज्ञाचक्र पर कुमकुम लगाना, अर्थात् स्वयं में विद्यमान देवीतत्त्व जागृत करना । यह करने पर स्वयं में अंतर्भूत आत्मविश्वास एवं मन की एकाग्रता में वृद्धि होकर भय नष्ट होता है ।
२. गरबा कैसे खेलें ?
अ. चलचित्र के गीतोंपर नहीं, तो देवी की स्तुतिपर, भक्तिगीतोंपर नृत्य करें
गरबा खेलना, अर्थात् स्वयं में विद्यमान भक्तिभाव जागृत करना । ‘भाव तेथे देव’ नामक उक्तिनुसार स्वयं में भाव जागृत हुआ, तो देवी की कृपा हमपर निश्चित ही होगी । चलचित्र के रज-तमात्मक गीतोंद्वारा भक्तिभाव निर्माण नहीं होगा । इस गीतोंपर नृत्य करना, यह पाप है; अतएव देवी के स्तुतिपर तथा भक्तिगीतों पर नृत्य करें ।
आ. गरबा तालबद्ध लय में करें
विचित्र अभिनय के साथ नृत्य करने से देवी की ओर से आनेवाले चैतन्य को ग्रहण करना असंभव होता है । साथ ही वहां का चैतन्य भी नष्ट होता है ; इसलिए तालबद्ध लय में नृत्य करें ।
इ. देवी का नामजप अधिक से अधिक करें
किस प्रकार हम नृत्य करते हैं, इसकी अपेक्षा ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ यह नामजप हो रहा हैं कि नहीं, इस ओर हमें निरंतर ध्यान देना चाहिए । हमारा नामजप अधिक से अधिक हुआ, तो देवता का चैतन्य हमें ग्रहण करना संभव होगा ।
३. नवरात्रि में देवी की उपासना
बच्चों, नवरात्रि के पहले तीन दिन हम संकट निवारण करनेवाली ‘महाकाली देवी’ की, मध्य के तीन दिन ‘महालक्ष्मी देवी’की एवं अंत के तीन दिन ‘महासरस्वती देवी’ की उपासना करते हैं ।
४. श्री सरस्वतीदेवी की कृपा प्राप्त होने हेतु आवश्यक गुण
बच्चों, हम विद्यार्थी हैं; अतः इस कालावधि में सरस्वती की अधिक से अधिक उपासना करनी चाहिए; क्योंकि वह विद्या एवं कला की देवी हैं । सरस्वती देवी की उपासना करने हेतु हम में निम्नानुसार गुण आने चाहिए ।
अ. निरंतर सीखने की स्थिति रहना : मित्रों, हमें निरंतर सीखने की स्थिति में रहना चाहिए । वास्तविक आनंद सीखने में ही है ।
आ. स्वयं की अपेक्षा अन्यों का विचार अधिक करना : हमें निरंतर अन्यों के लिए जीना चाहिए । स्वातंत्र्य वीर सावरकर एवं भगतसिंह ने राष्ट्र हेतु त्याग किया । अतएव वे अमर हुए । उनके समान हमें भी अन्यों के लिए जीना चाहिए ।
इ. तीव्र लगन : मछली जल के बिना नहीं रह सकती, वैसे ही विद्यार्थी ज्ञान के बिना नहीं रह सकता, ऐसी मन की अवस्था अर्थात् लगन होनी चाहिए ।
ई. दृढता (दृढ इच्छा शक्ति) : ज्ञान ग्रहण करने हेतु निरंतर प्रयास करना चाहिए । हम सुस्ती एवं टालमटोल करते हैं; इसलिए ज्ञान एवं कला ग्रहण नहीं कर पाते हैं । इसके पीछे हमारा ‘आलस्य’ यह दोष रहता है । उसका निर्मूलन किए बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होगा ।
उ. एकाग्रता : मन में अनेक विचार रहेंगे, तो ज्ञान ग्रहण करना असंभव होगा; इसलिए अभ्यास करते समय हमारा मन एकाग्र होना चाहिए ।
ऊ. सदाचरण : हमारा आचरण आदर्श होना चाहिए । कभी भी झूठ नहीं बोलना । किसी को दुःख होगा, ऐसी बात नहीं करना । माता-पिता के साथ आदरपूर्वक बात करना ।
ए. विनम्रता : यह सभी गुणों का राजा है । अध्यापकों से नम्रतापूर्वक बात करना चाहिए । ‘विद्या विनयेन शोभते !’ नम्रता होगी, तो श्री सरस्वतीदेवी विद्यार्थियों पर तुरंत प्रसन्न होती हैं ।
ऐ. शरणागत भाव : प्रत्येक कृत्य करते समय सरस्वती माता को शरण जाकर ‘देवी ही मुझसे करवा रही हैं’, ऐसा भाव निरंतर हमें रखना चाहिए ।
विद्यार्थी मित्रों, शास्त्रानुसार नवरात्रोत्सव मनाकर देवी की कृपा संपादन करें । उसके भक्त होने हेतु स्वयं में अंतर्भूत महिषासुररूपी दोष एवं अहं का नाश कर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु सिद्ध रहें ।’
– श्री. राजेंद्र पावसकर (अध्यापक), पनवेल.