तुकाराम महाराज की कीर्ति सुनकर शिवाजी महाराज को उनके दर्शन करने का आकर्षण था । सावन मास में तुकाराम महाराज के कीर्तन-श्रवण का लाभ लेने के उद्देश्य से शिवाजीराजा तुकाराम महाराज जहां रहते थे वहां आए । तुकाराम महाराज के दर्शन से वे धन्य हुए एवं उनके कीर्तन-श्रवण में लीन होकर वहींपर अपना पडाव डालकर रहे । यह वार्ता चाकण में यवन सेनापति को ज्ञात होते ही शिवाजी राजा को पकडने के लिए अथवा मारने के लिए उसने दो सहस्र पठानों की सेना भेजी । यह समाचार शिवाजी राजा को जब ज्ञात हुआ, तब वे कीर्तन में बैठे थे । शिवबा ने तुरंत तुकाराम महाराज से आज्ञा मांगी, तो तुकाराम महाराज अत्यंत दुःखी हुए । अपने कीर्तन में ऐसा विघ्न देख उन्हें मरणप्राय वेदनाएं हुईं । उन्होंने अपने भक्त की रक्षा करने के लिए भगवान पांडुरंग की गुहार लगाई । तब भगवान पांडुरंग ने अभय दिया ।
चमत्कार क्या हुआ, यवन सेना को तुकाराम महाराज के कीर्तन में बैठे सभी श्रोता शिवजीराजा समान दिखाई देने लगे । तब उसने सभी श्रोताओं का संहार करने का निर्णय लिया; परंतु उसी समय शिवाजी महाराज के रूप में भगवान पांडुरंग वहां से बाहर निकले, यवन सेना के गुप्तचरों ने सेनापति को वही शिवाजी होने की बात कही । पूरी पठानी सेना सेनापति सहित पीछे तथा शिवाजीरूपी पांडुरंग आगे ऐसी स्पर्धा होने लगी । शिवाजीरूपी पांडुरंग पठानी सेना को चकमा देते हुए २० कोस दूर ले गए एवं घने जंगल में कांटों की झाडी में सूर्यास्त के समय संपूर्ण सेना को अटकाकर वे गुप्त हो गए । कांटों के कारण रक्त से लथपथ अवस्था में यवनी सेना के कपडे तथा चमडी फट गई तथा अंधेरे में राह भटकने लगे; परंतु शिवाजी महाराज (शिवाजीरूपी पांडुरंग) उनके हाथ नहीं आए ।
यहां तुकाराम महाराज के कीर्तन में शिवाजी महाराज आनंद का उपभोग करते हुए प्रात:कालतक बैठे थे । आरती होने के उपरांत प्रसाद एवं तुकाराम महाराज के आशीर्वाद लेकर सुरक्षित रूप से सिंहगढपर पहुंचे ।
तात्पर्य : संत तुकाराम महाराज ने स्वयं की पत्नी-बच्चे भूखे होते हुए पांडुरंग की कभी भी गुहार नहीं लगाई थी; परंतु क्षात्रधर्म के प्रतिरूप छ. शिवाजी महाराज की रक्षा के लिए जीवन में एक बार ही एवं अंतिम गुहार लगाई; क्योंकि उन्हें यह ज्ञात था कि शिवाजी महाराज ही हिंदवी राज्य की स्थापना कर सकते हैं ।