मंगलवेढा (महाराष्ट्र) के संत चोखामेला की विठ्ठल भक्ति अपार थी । वे निरंतर विठ्ठल के नामस्मरण में ही मग्न रहते थे । परंतु गांव के कुछ कुटिल लोग उन्हें बहुत कष्ट देते थे । इस कष्ट से त्रस्त होकर एक दिन चोखामेलाजी ने गांव छोड दिया और अपनी पत्नी सोयरा के साथ वे पंढरपुर (महाराष्ट्र) आ गए ।
वे पंढरपुर में एक झोपडी बनाकर रहने लगे । भगवान विठ्ठल की उपासना पहले समान उनकी चल रही थी । एक बार देवालय में ताला होते हुए भी चोखामेलाजी अपने आप विठ्ठल के चरणोंतक पहुंच गए । तब से वहां के पुजारियों ने देवालय में पहरा लगवा दिया । तब चोखामेलाजी की विठ्ठल से मिलने की तीव्र लगन को देखते हुए ईश्वर ही उनके घरपर उनसे मिलने आने लगे । अब चोखामेलाजी अपने घरपर ही तृप्त मन से विठ्ठल की सेवा में मग्न रहने लगे ।
एक बार विठ्ठल ने चोखाजी से कहा, ‘मैं तुम्हारे यहां भोजन करने आ रहा हूं ।’ यह सुनते ही सोयरा को बहुत आनंद हुआ । भगवान को क्या भोजन कराएं, इन विचारों में ही नदीपर मिली एक स्त्री से उन्होंने कुछ खाद्य-सामग्री मांगी । बातों ही बातों में सोयरा के मुख से निकल गया कि उनके यहां प्रत्यक्ष भगवान विठ्ठल ही भोजन करने आनेवाले हैं । यह सुनकर वह स्त्री आश्चर्यचकित हो गई । कुछ ही क्षणों में यह समाचार गांवभर में पैâल गया । इस बातपर किसीने विश्वास ही नहीं किया, अपितु गांववालोंने उनका मखौल उडाया ।
परंतु एक व्यक्ति रात्रि में छुपते-छुपाते चोखामेलाजी की झोपडी के निकट आया । उसने भीतर झांककर देखा, तो देखता क्या है कि भीतर चोखामेलाजी भगवान विठ्ठल की मूर्ति के चरणों में बैठे थे । निकट ही सोयरा नम्रता से खडी थीं । चोखामेलाजी कह रहे थे, ‘देखा ना सोयरा ! भक्तों के लिए कुछ भी करनेवाले ये प्रेममय, भक्तवत्सल ईश्वर हैं ।’ सोयरा ने विट्ठल के चरणों में अपना सिर
रखा । उसकी नेत्रों से अश्रू बह रहे थे । उसे उठाते हुए ईश्वर ने कहा, ‘मुझे भी तुमसे मिलने की लगन लगी रहती है ।’ वह व्यक्ति यह सर्व देख रहा था । सोयरा ने भोजन की थालियां परोसीं । भगवान विठ्ठल ने भोजन आरंभ किया । ईश्वर की मूर्ति के हिलते हुए हाथ उस व्यक्ति को दिखाई दे रहे थे । उसी समय चोखामेलाजी के शब्द उसके कानोंपर पडे, ‘अरे, अरे धीरे ! यह क्या ! भगवान के पीतांबरपर छाछ गिरा दिया ना !’
यह सब देखकर वह व्यक्ति वहां से चला गया और जो भी उसे मिलता, उसे वह देखा हुआ सत्य वृत्तांत बताता गया। लोग एकत्रित होने लगे । यह बात देवालय के पुजारियोंतक पहुंची । वे सभी इस उद्देश्य से तुरंत देवालय में पहुंचे कि वास्तविकता क्या है । वहां पहुंचकर देखते क्या हैं ? तो यह कि सदा की भांति भगवान विट्ठल की मूर्ति पाषाणपर खडी थी । उनके वस्त्र एवं आभूषण भी वैसे ही थे; परंतु परिधान किए गए पीतांबरपर छाछ गिरा हुआ था । इससे प्रमाणित हो गया कि अतिथि बनकर प्रत्यक्ष भगवान विठ्ठल ने ही सगुण रूप में चोखामेलाजी के घर भोजन किया था । इसे देखकर पुजारियों सहित सभी ने उस महान संत चोखामेला के चरण पकड लिए ।
बालमित्रो, देखा ना ! अपनी अपार विठ्ठल भक्ति के कारण चोखामेलाजी, संत चोखामेला हो गए और प्रत्यक्ष भगवान विठ्ठल ही उनके घर उनसे मिलने जाने लगे ।