‘हैरी पॉटर’ जैसी काल्पनिक रोमांचक कथाएं न पढें, अपितु हिंदु राजाओं, राष्ट्रपुरुषों एवं क्रांतिकारियोंकी जीवनीका अध्ययन करें !
बच्चो, ‘हैरी पॉटर’ एक काल्पनिक कथा है जिसका वास्तविकतासे कोई संबंध नहीं है । क्या यह काल्पनिक कथा कभी भी वास्तविक बन पाएगी ? ऐसेमें जो असत्य है (उदा. हैरी पॉटर, टार्जन, अरेबियन नाईटस् आदि कथाएं) उन्हें पढनेमें समय व्यर्थ क्यों गंवाएं ? विदेशी संस्कृतिके साहित्यमें डूबकर हिंदु संस्कृतिकी अनमोल धरोहरको क्यों भुलाएं ? हमारे पास ‘सिंहासन बत्तीसी’, ‘फास्टर फेणे बच्चो’, ‘पंचतंत्र’ जैसी कथाएं हैं । तथा आपके पढनेके लिए रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ हैं । अन्य महान हिंदुराजाओं तथा राष्ट्रपुरुषों एवं क्रांतिकारियोंकी जीवनीका अध्ययन करें । ये पढनेसे आपमें राष्ट्र्र एवं धर्मके प्रति अभिमान बढेगा छत्रपति शिवाजी महाराजकी जीवनी पढें…उन्होंने बचपनमें ही हिंदवी स्वराज्यकी स्थापनाकी शपथ कैसे ली, अफजलखानका वध कैसे किया, शाहिस्ताखानकी उंगलियां कैसे काटीं, ये पढें । बाल्यावस्थामें ‘ज्ञानेश्वरी’ यह महान ग्रंथ लिखनेवाले संत ज्ञानेश्वर ये संत ज्ञानेश्वर कैसे बने, ये पढे ! भक्तिके लिए एवं सेवाके लिए आकाशमें उडान करनेवाले हनुमानकी कथाएं कभीभी अधिक संस्कारक्षम नहीं है क्या ?
किसीको ऐसा लगेगा की, बच्चोंकी कथाओंके बीच धर्म कहांसे लाते हो । साहित्य यह साहित्य ही होता है । उसे देश, धर्मका बंधन नहीं होता है । अभिभावको, ध्यानमें रखें कथाएं आयीं तो ‘संस्कार’ आए । पाश्चात्त्य कथाओमें पाश्चात्त्य रूढीपरंपराएं आयांr, पाश्चात्त्य आदर्श आए; एवं वही हमारे आदर्श बने, ये होगा नहीं; अपितु हो रहा है । वर्तमानमें अभिभावको एवं शिक्षकोंको ऐसा प्रतीत होता है की हॅरीकी रहस्यकथाएं सत्यमें मनोरंजक है । हमारे बालकृष्णहरिकी बाललीलाएं मात्र मनोरंजक ही नहीं अपितु साहसी, रहस्यमय, तथा संस्कार करनेवाली हैं एवं मुख्यतः वे सत्य हैं । यही अभिभावकोंको समझानेका समय आ गया है । ये प्रश्न मात्र एक कथा या बच्चोंकी कथाओंसे संबंधित न रहकर भाषा, संस्कृती, धर्म तक बडा हो गया है । हम इतने पाश्चात्त्य सभ्र्यतामें रम गये हैं कि, अंग्रजी शब्द, खान-पान, वेशभूषा हमारे लिए अपरिहार्य हो गया है । ऐसीही चलता रहा तो कलको उनकी बुरी बातें भी सभीकेलिए अपरिहार्य हूए बिना नहीं रहेंगी ।
‘कार्टून’ देखनेकी अपेक्षा पंचतंत्रकी बोध कथाएं पढें !
‘आजकल बच्चे अनेक घंटोंतक पश्चिमियोंद्वारा बनाए गए ‘टॉम एंड जेरी’ जैसे निरर्थक एवं केवल मनोरंजन करनेवाले लघुपट देखते रहते हैं । इन लघुपटोंमें केवल एक-दूसरेको सताना एवं मारपीट ही दिखाई जाती है, जिससे बच्चोंको कोई बोध नहीं मिलता । इसकी अपेक्षा बच्चे यदि पंचतंत्रकी कथाएं पढें, तो उन्हें उससे नीतिशास्त्र एवं अच्छा व्यवहार करनेका ज्ञान मिलेगा । पंचतंत्रकी कथाओंमें सुभाषित संस्कृत भी सिखायी गयी हैं । अनेक पश्चिमी कथा-लेखकोंको पंचतंत्रसे ही प्रेरणा मिली तथा उन्होंने ‘ईसपकी नीति’ आदि कथाएं लिखीं !’
– प.पू. डॉ. आठवले.