‘राष्ट्रवाद के महानतम पुरोधाओं में एक’ इस प्रकार से वर्णित बिपिनचंद्र पाल, भारत के राजनैतिक इतिहास में लोकमान्य तिलक तथा लाल लाजपत राय के साथ किए गए सहयोग के कारण स्वतंत्रता संग्राम से जुड गए थे । साहस, सहयोग एवं त्याग के द्वारा संपूर्ण राजनैतिक स्वतंत्रता अथवा स्वराज्य की मांग की ।
‘पाल’ शिक्षक, पत्रकार, लेखक तथा ग्रंथपाल थे । ब्राह्मो समाज के समर्थक के रूप में आरंभ कर, बिपिनचंद्र वेदांत की ओर झुके तथा अंततः श्री चैतन्य के वैष्णव दर्शन के पुरोधा रहे । एक कट्टर समाजसुधारक के रूप में उन्होंने जीवन में दो बार उच्चभ्रू समाज की विधवाओं से विवाह किया । उन्होंने राजाराममोहन राय, केशवचंद्र सेन, श्री अरविंद घोष, रविंद्रनाथ टैगोर, आशुतोष मुखर्जी तथा एनी बेसेंट प्रभृति आधुनिक भारत के निर्माताओंपर शोधमूलक ज्ञानप्रद लेखमाला भी लिखी । व्यापक दृष्टिकोण देनेवाली ‘सामंजस देशभक्ति’का उन्होंने उपदेश दिया । ‘परिदर्शक’ (१८८६ – बांग्ला साप्ताहिक), ‘न्यू इंडिया (१९०२ – अंग्रेजी साप्ताहिक) तथा बंदे मातरम (१९०६ – बांग्ला दैनिक) ये उनके द्वारा चलाए गए कुछ पत्र हैं ।
सिलहट (अबका बांग्लादेश) में एक गांव के एक संपन्न परिवार में ७ नवंबर १८५८ के दिन जन्मे पाल को अपना शिक्षण माध्यमिक स्तरपर ही छोड देना पडा । इस समय वे केशवचंद्र सेन तथा पं. शिवनाथ शास्त्री जैसे विख्यात बंगाली नेताओं के प्रभाव में आए । श्री अरविंद के विरुद्ध वंदे मातरम अभियोग में साक्ष्य देना अस्वीकार करने के कारण उन्हें ६ महीने सश्रम कारावास भोगना पडा । उन्होंने इंग्लैंड (३ बार) तथा अमरीका भ्रमण भी किया ।
पालने १९२० में गांधी के असहयोग आंदोलन का विरोध भी किया । १८८६ में सिलहट के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने कॉंग्रेस अधिवेशन में भाग भी लिया । १९२० में सक्रिय राजनीति से लगभग संन्यास लेकर वे राष्ट्रीय प्रश्नोंपर टिप्पणी मात्र करते रहे । २० मई १९३२ के दिन यह महान देशभक्त चिरनिद्रा में लीन हो गया ।