कर्ण दानवीर और महापराक्रमी योद्धा के रूप में सर्वज्ञात है; पर इतिहास ने उसका कभी गौरव नहीं किया । इसका कारण है उसकी दुर्योधन से कुसंगत ! व्यसनी, नटखट, पढाई न करनेवाले, उलटा उत्तर देनेवाले दुर्गुणी लोगों के संग रहने से हम भी उनके जैसा बनते हैं । इसके विपरीत, सज्जनों के संग रहने से हम सद्गुणी और सुसंस्कारित बनते हैं । इसलिए नम्र, अभ्यासी, आज्ञापालक और सत्यशील विचारों की मित्रमंडली के संग रहें ! संस्कारहीन कहानी की पुस्तके, दूरदर्शन आदि के सान्निध्य में भी हम रहते हैं । इनसे हमें बचना है तथा सद्गुणी और सुसंस्कारित होने में सहायता करनेवाली पुस्तकें ही पढनी है अथवा दूरदर्शन-कार्यक्रम देखना है !
अच्छे मित्रों के साथ (सहवास में) अच्छी आदतें लगना
‘हमारे जीवन में मित्रों का अधिक महत्त्व रहता है; क्योंकि विद्यालयीन जीवन में हमें अनेक सहेलीयां तथा मित्र रहते हैं । उनकी कृतीयां अथवा उनकी आदतों का हमारे मनपर कुछ ना कुछ परिणाम होते रहता है ।
आजकल अच्छे (उत्तम) संस्कारोंवालें बच्चों की संख्या कम दिखाई देती है; परंतु बहुतांश बच्चों को अयोग्य संस्कारों के कारण उन्हें खराब आदतें लगना, ऐसा सर्व साधारण तौर पर, कुछ स्थानोंपर किए हुए निरीक्षण से पता चला है ।
अकेलापन तथा अन्य मित्र हंसी उडाएंगे अथवा खिल्ली उडाएंगे, इस भय से अच्छे बच्चे खराब आदतों के शिकार होते हैं
अच्छी आदतोंवालें बच्चों को खराब आदतोंवालें बच्चें हमेशा चिढाते हैं । इसीलिए कुछ बच्चों को ऐसा लगता है कि, हम अधिक अच्छा, ईमानदारी से बर्ताव करनेपर वे सब लोग मुझपर बहिष्कार डालेंगे, मुझ से कोई बात नहीं करेगा, मुझे कोई खेलने के लिए नहीं लेगा । इस अकेलेपन के भय से भी कुछ बच्चे बुरा (कृत्य) व्यवहार करने के लिए प्रवृत्त होते हैं । खराब आदतोंवाले बच्चे अच्छे आदतोंवाले बच्चों को चिढाकर उनसे हम श्रेष्ठ हैं, ऐसा दिखाने का प्रयत्न करते हैं । इसीलिए अच्छे बच्चे भी हम अन्यों से कम नहीं, यह दिखाने के लिए तथा अन्य मित्र हंसी उडायेंगे, इस भय से खराब आदतों के शिकार होते हैं ।
एक सडे हुए आम से टोकरी में रखे हुए सब आम सडना, उसी प्रकार खराब संगत के साथ रहना
फल बेचनेवाला एक मनुष्य था । उसकी टोकरी में बहुत से अच्छे आम थे; मात्र उसमें एक आम सडा हुआ था । उसे लगा, ‘यह सडा हुआ आम अच्छे आम के साथ रखा, तो वह अच्छा हो जाएगा’; इसीलिए उसने वह आम उसी टोकरी में रखा । आठ दिनों के बाद उसने वह टोकरी खोली, तब सभी के सभी आम सडे हुए थे । इस आम की तरह ही अच्छे बच्चे भी खराब संगत के कारण बिगडते हैं । यह सुत्र ध्यान में रखते हुए हमें अच्छे बच्चों की संगत में रहने का प्रयत्न करना चाहिए ।
बुरी संगत के कारण चोरी की आदतें तथा मादक पदाथों के सेवन की लत लगना
मेहनत कर पैसा कमानेवाली व्यक्ति यदि चोरों की संगत में रहेगी तो उसे भी मेहनत से पैसा कमाने की अपेक्षा, ‘चोरी कर किंमती वस्तू, अलंकार तथा पैसा कमाएं’ ऐसा लोभ हो सकता है, तथा वह व्यक्ति भी चोरी करने के मार्ग का अवलंबन करने के लिए सिद्ध होती है । आज के समय में विद्यालय-महाविद्यालयों में मादक पदार्थों के सेवन का व्यसन भी अत्यधिक फैला हुआ है । यह बुरी संगत का परिणाम है । अत: किसी से भी मैत्री करते समय उसका स्वभाव देखकर ही मैत्री करें । हमारा अधिकाधिक समय अच्छे मनुष्यों के साथ बिताकर ही हम अच्छे रह सकते हैं । इस संदर्भ में एक कहानी देखेंगे ।
अच्छों के संगत में अच्छी, तो बुरे लोगों की संगत में बुरी आदतें लगना
एक जंगल में एक तोते की मादी दो बच्चों को जन्म देकर मर गई । उसमें से एक बच्चा कसाई के हाथ, तो दुसरा बच्चा ऋषी के हाथ आया । एक समय एक राजा को जंगल से जाते हुए प्यास लगी, तब वह पानी पिने के लिए कसाई के घर के पास आया । कसाई के पाले हुए उस तोते ने राजा को संबोधित कर, ‘उसे मारो, पिटो, जान से मारो’, ऐसे शब्द कहे । तब राजा वहां का पानी न पीते ही आगे बढ गया । आगे चलकर उसे ऋषी का आश्रम दिखाई दिया । वहां का तोता राजा के आनेपर राजा को संबोधित कर कहने लगा, ‘आइये – आइये, स्वागत है, विश्रांती लीजिए , दूध-फलाहार लीजिए ।’ यह सुनकर उस राजा को अतिशय आनंद हुआ । इससे यही बोध होता है कि, हम जिस किसी के सहवास में या संगत में रहते हैं, उनकी तरह ही हमारा वर्तन होता है । इसीलिए हमें हमेशा अच्छे लोगों की संगत में ही रहना चाहिए । ८-१० बच्चों के समूह में यदि कोई एक बच्चा बुरा हो, तो बाकी के बच्चे बिगडने में देर नहीं लगती । आपको बारबार झगडा करनेवाले, चालाकी करनेवाले बच्चों की संगत में रहना अच्छा लगता है कि, प्रेमयुक्त, समझदार, प्रामाणिक (विश्वासनीय) ऐसे बच्चों की संगत में रहना अच्छा लगता है ? स्वाभाविक है कि अच्छे बच्चों की संगत में रहना ही अच्छा लगता है । आजकल अच्छे मित्र अभाव से ही मिलते हैं । हमें अच्छे बच्चों की संगत में रहना हो तो, संस्कार वर्ग जाना चाहिए ।
संस्कार वर्ग में याने सत्संग में नियमितरूप से जाने का महत्त्व
अच्छे बच्चों का संस्कार वर्ग में टिकना : ‘स्वयं के उपर अच्छे संस्कार हो’ यही उद्देश संस्कार वर्ग में आनेवाले हर एक का होता है । इस कारण यहां आनेपर प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के दोष निकालने का प्रयत्न करता है । जिन बच्चों को ‘हमपर अच्छे संस्कार हो’ ऐसा लगता है वही बच्चे संस्कार वर्ग में नियमितरूप से आते है; परंतु जिन बच्चों को ‘स्वयं के दोष नष्ट होने चाहिए’, ऐसा नहीं लगता, वह बच्चे संस्कार वर्ग के लिए नहीं आते । इस कारण संस्कार वर्ग में केवल अच्छे बच्चे ही टिकते हैं तथा उन्हें हम अपने दोस्त बना सकते हैं ।
संस्कार वर्ग में अच्छे संस्कार होते हैं : संस्कार वर्ग में हमें यह ज्ञान होता है कि, प्रत्युत्तर नहीं करना चाहिए, अपशब्द (गाली) नहीं कहना चाहिए, मारपीट नहीं करनी चाहिए, उसी प्रकार टालमटोल (आलस्य) वृत्ती को झिडकना चाहिए । यह सब ज्ञान होनेपर हम उसी प्रकार कृती करते हैं, अर्थात अच्छे विचार सुनकर हम अच्छा बनते है; इसका यही अर्थ है कि, संस्कार वर्ग कितना महत्त्वपूर्ण है ।
– कु. गायत्री बुट्टे.