अक्षर से मानव की परख करना संभव है, यह कहना अनुचित न होगा । किसी के हस्ताक्षर देखते ही उसके व्यवस्थितता, अनुशासन, कलात्मकता आदि अनेक गुण हमारे ध्यान में आते हैं ।
‘सुंदर अक्षर अलंकार है’, यह सुविचार सर्वज्ञात है । समर्थ रामदासस्वामी कहते हैं–
ब्राह्मणें (बालके) बाळबोध अक्षर । घडसुनी करावें सुंदर । – दासबोध, दशक १९, समास १, ओवी १, ३ |
अर्थ : बच्चों को प्रत्येक अक्षर घोंट-घोंटकर, अर्थात् पुनः-पुनः लिखकर सुंदर बनाने का प्रयत्न करना चाहिए । अक्षर इतने सुंदर हो कि उन्हें देखकर बुद्धिमान व्यक्ति को प्रसन्नता हो । प्रत्येक अक्षर ठीक से लिखा हो । प्रत्येक शब्द में अंतर समान हो । सीधी और आडी मात्राएं भी अच्छे से लिखी हों । उसी प्रकार, रेफ एवं ‘इ’ की मात्रा भी अच्छे से बनाई गयी हो ।
लिखावट सुंदर बनाने के लिए क्या करें ?
अ. अक्षर शांतिपूर्वक और एकाग्रता से लिखें ।
आ. अक्षर सुंदर और घुमावदार हों ।
इ. दो शब्दों में उचित अंतर हो ।
ई. प्रतिदिन दो पंक्तियोंवाली बही में ५ पंक्तियों का सुलेख अवश्य लिखें ।
उ. अच्छे अक्षर लिखनेवाले व्यक्ति से सहायता लें ।
ऊ. लिखने के लिए यथा संभव नीली मसी की (स्याही की) लेखनी का (पेन का) उपयोग करें।
अनुभूति
नियमितरूप से बही में नामजप लिखनेपर पूर्व के असुंदर अक्षर का सुंदर हो जाना :
‘सितंबर २००५ में मैं प्रत्येक रविवार को सनातन के मिरज आश्रम में आयोजित संस्कार वर्ग में जाता था । वहां दीदी ने हमें बही में प्रतिदिन २ पृष्ठ कुलदेवी और दत्त भगवान का नामजप लिखने के लिए कहा । इससे पूर्व मेरे अक्षर बहुत भद्दे थे । परंतु बही में नियमित रूप से नामजप लिखना आरंभ करनेपर मेरे अक्षर सुंदर हो गए ।’
– कु. निखिल भोसले (वय १२ वर्ष), मीरज, महाराष्ट्र.
बच्चो, नामजप लिखते समय सात्त्विकता बढने से एकाग्रते से सुंदर अक्षर बनाने का प्रयत्न होता है । आप भी बही में प्रतिदिन कुलदेवी एवं दत्त (‘श्री गुरूदेव दत्त ।’ ) का नामजप प्रत्येक समय एक-एक पृष्ठ लिखिए !
-संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ ‘ सुसंस्कार एवं उत्तम व्यवहार’