‘विद्यार्थी मित्रों, हम अब तिथि के अनुसार शिवजयंती मनानेवाले हैं । जयंती मनाना, अर्थात केवल शौर्यगीत बजाना अथवा किसी गाने का कार्यक्रम करना यहीं तक मर्यादित है क्या ? खरे अर्थों में शिवजयंती मनाना, अर्थात शिवाजी महाराज के गुण आत्मसात करने का निश्चय करना है । वर्तमान में इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है । हमें इस में परिवर्तन करना है; क्योंकि शिवाजी जैसा आदर्श जीवन व्यतीत करना यह आज के काल की आवश्यकता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे आदर्श युगपुरुष को बनानेवाली उनकी जीवन पद्धति तथा हमारी जीवन पद्धति
खेल खेलना
मर्दानी खेलों के कारण लडने की वृत्ति निर्माण होना : शिवाजी मैदान में खेलखेलते थे । कुश्ती, दांडपट्टा, घोडेपर सवारी करना, तलवार चलाना जैसे खेलों के कारण उनमें निर्भयता, क्षात्रवृत्ति, अन्याय के विरूद्ध चिढ, लडने की वृत्ति तथा नेतृत्वगुण जैसे अनेक गुण निर्मित हुए ।
मित्रों, गुण ही हमारे जीवन की नींव है; इसलिए हम प्रत्यक्ष मर्दानी खेल खेलेंगे, तो ही हम में गुण आएंगे ।
काल्पनिक खेलों के कारण विनाश की ओर मार्गक्रमण होने से उनका बहिष्कार करना आवश्यक : वर्तमान में बच्चे संगणकपर काल्पनिक खेल खेलते हैं । वे खेल विनाशक तथा विकृत विचार निर्माण करनेवाले होते हैं, उदा. विकृत पद्धति से गाडी चलाना, किसी को भी बंदूक से मारना, एक दूसरे को मारना आदि।
मित्रों, ऐसे खेल से बच्चे मन से दुर्बल होकर विकृत बनते हैं । यह खेल काल्पनिक होने से बच्चे वास्तव में न जी कर कल्पना के विश्व में विचरण करते हैं एवं उससे बच्चों को वास्तविक जीवन जीना कठीन हो जाता है । उनकेआत्मकेंदि्रत बनने से ‘मुझे इस राष्ट्र के लिए जीना है’, यह व्यापक विचार उनके मन में नहीं आता । ऐसे बच्चों में राष्ट्रप्रेम ही निर्मित नहीं होता, अत: वे बच्चे राष्ट्र की रक्षा करेंगे क्या ? मित्रों, अब तुम ही बताओ कि हमें संगणकपर खेल खेलकर विकृत होना है अथवा छत्रपति शिवाजी जैसे क्षात्रवृत्ति जागृत कर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु सिद्ध होना है ? अब हम निश्चय करें कि संगणकपर खेलों का बहिष्कार करना है एवं प्रत्यक्ष खेल खेलना है । यही खरी शिवजयंती है । तो करोगे ना ?
कहानी पढना एवं सुनना
उत्तम संस्कार करवा लेना : शिवाजी सदा राम-कृष्ण की कहानियां पढते तथा सुनते थे । प्रत्यक्ष घटी एवं जिन में ईश्वरभक्ति, राष्ट्रप्रेम एवं अन्याय के विरुद्ध चिढ निर्माण होगी, ऐसी कहानियों का पठण करने से उनमें राष्ट्रप्रेम जागृत हुआ। उन्होंने अन्यायी मुगलों को नियंत्रित किया ।
काल्पनिक एवं झूठी कहानियों के माध्यम से विकृति पालना : वर्तमान में बच्चे‘टॉम एंड जेरी’ जैसी काल्पनिक एवं झूठी कहानियां पढते तथा सुनते हैं ।इसलिए बच्चे कल्पना की दुनिया में विचरते हैं । उनमें राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्राभिमान जैसे गुण निर्मित नहीं होते । अपितु वे मन से दुर्बल बनते हैं ।
बच्चों, मुझे बताओ कि हमें रामायण, महाभारत की वास्तविक कहानियां समझकर शिवाजी जैसा राष्ट्रप्रेमी बनना अच्छा लगेगा अथवा ‘टॉम एंड जेरी’जैसी काल्पनिक कहानियां देखकर मन से दुर्बल बनना अच्छा लगेगा ? शिवाजीमहाराज को बताएंगे कि हमें आपके जैसा होकर आदर्श राज्य निर्माण करना है,इस हेतु हम आज से ही वास्तविक कहानियां पढेंगे तथा सुनेंगे ।
मां-पिताजी को नमस्कार करना
उद्दंडता टालकर विनम्रता सहेजना: शिवाजी महाराज प्रतिदिन मां को नतमस्तक होकर नमस्कार करते थे । इसलिए उनमें ‘विनम्रता’का गुण अपने आप ही आया। जहां नम्रता होती है, वहां सरस्वती वास करती है; इसलिए उन्होंने अनेक कलाएं आत्मसात की थीं ।
हमें शिवजी जैसा बनना हो, तो हमें प्रतिदिन अपने मां-पिताजी को नमस्कार करना चाहिए । वर्तमान में अनेक बच्चे अपनी मां से उद्दंडता से बोलते हैं । ऐसे में हम में विनम्रता कैसे आएगी ? हमें शिवाजी को बताना चाहिए कि, ‘महाराज,हमें आपके गुणों का विस्मरण हो गया है । हमें क्षमा करें ।हम आज से प्रतिदिन मां को नमस्कार करेंगे तथा हम में ‘नम्रता’का गुण लाएंगे ।’ मित्रों, ऐसा करोगे ना ? ऐसा करना ही खरी शिवजयंती है ।
योग्य आदर्श निश्चित करना
राम-कृष्ण का आदर्श निशि्चत करना : शिवाजी के आदर्श थे, राम एवं कृष्ण ।बच्चों के जैसे आदर्श होते हैं, वैसे ही बच्चे घडते हैं । हमारे आदर्श अच्छे होंगे, तो हम भी वैसे ही घडेंगे । हमारे जीवन का योग्य आदर्श निश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है ।
चित्रपट के नायकों का आदर्श रखना सर्वथा अयोग्य : वर्तमान में चित्रपट के किसी नायक, उदा. सलमान, शाहरूख, तथा ब्रुस ली, रॉक ऐसे बच्चों केआदर्श होते हैं । मित्रों, आदर्श के समान ही वह व्यक्ति घडती है । उपरोक्त आदर्शों कौनसा गुण है कि जो राष्ट्र एवं समाज के लिए हितकर है ? मित्रों,यह परदेपर झूठा नाटक करते हैं; परंतु उनका वास्तविक वर्तन/आचरण आदर्श नहीं होता ।
हम अपना आदर्श ऐसा निश्चित करें कि जिसमें सर्व गुण हैं । जो जैसा बोलता है, वैसा आचरण करता है । मित्रों, शिवाजी महाराज ऐसे ही थे;इसलिए उन्हें अपने आदर्श के रूप में मानें ।
उपासना
कुलदेवता की उपासना करना : उपासना यह शिवाजी महाराज के जीवन का प्राण था । वे प्रतिदिन अपनी कुलदेवता का नामजप तथा राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा हेतु प्रार्थना करते थे । ‘राष्ट्र ही मेरा परिवार है’, ऐसा शिवाजी महाराज मानते थे इसलिए श्री भवानीमाता ने उन्हें तलवार दी थी ।
उपासना को महत्व न देना : वर्तमान में बच्चे उपासना को महत्व नहीं देते । ऐसे में उनके जीवन में निर्भयता, आनंद तथा मन में व्यापक विचार नहीं आते । बच्चे‘शुभं करोति’ बोलना तथा नामजप के लिए बैठना आदि बातें टालते हैं । उस समय कार्टून, विकृत चित्रपट अथवा धारिका देखते हैं ।
उपासना को विकल्प न होने से आज से हम उपासना करने का निश्चय करें ।वही शिवाजी महाराज को अच्छा लगेगा एवं खरे अर्थों में शिवजयंती मनाई, ऐसा होगा ।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसरपर ली जानेवाली प्रतिज्ञा
अ. मैं प्रतिदिन कुलदेवता का नामजप करूंगा एवं ‘मेरा राष्ट्र आदर्श हो’, ऐसी प्रार्थना करूंगा ।
आ. रामायण, महाभारत की कहानियां पढूंगा ।
इ. प्रतिदिन मां को नमस्कार करूंगा ।
ई. छ. शिवाजी महाराज को आदर्श के रूप में देखूंगा ।
उ. दूरदर्शनपर राष्ट्रप्रेम जागृत करनेवाली धारिका, उदा. छ. शिवाजी महाराज,झांसी की रानी आदि देखूंगा एवं ‘राष्ट्र मेरा परिवार है’, ऐसा विचार करूंगा ।
ऊ. मित्रों को जन्मदिन की भेंट स्वरूप शिवाजी महाराज का चित्र दूंगा ।
ए. शिवाजी महाराज के बचपन की शौर्यकथा पढूंगा ।
ऐ. स्वसंरक्षण हेतु कराटे अथवा लाठीकाठी का प्रशिक्षण लूंगा ।
ओ. प्रतिदिन ‘बालसंस्कार डॉट कॉम’ देखूंगा ।
चलो मित्रों, नीचे दी हुई बातें टालें एवं राष्ट्ररक्षण हेतु सिद्ध होने का छ.शिवाजी महाराज को वचन दें !
अ. मैं मां से उद्दंडता से बात नहीं करूंगा ।
आ. अंग्रजों जैसा पहरावा परिधान नहीं करेंगे ।
इ. ‘शेकहैंड’ नहीं करेंगे ।
ई. मैं आज से कार्टून नहीं देखूंगा ।
उ. संगणकपर विकृत खेल नहीं खेलूंगा ।
मित्रों, आज से उपरोक्त प्रत्येक कृति आचरण में लाने का हम प्रयास करेंगे तो खरी शिवजयंती मनाने जैसा होगा । यह सर्व कृति में लाएं, तो शिवाजी महाराज को अपेक्षित ऐसा आदर्श राज्य निर्माण होगा ।
हमारी वास्तविक स्थिति का हमें भान करवाया एवं उपाय बताए, इस हेतु ईश्वर चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करें । ‘हे भवानीमाता, हम सभी को यह कृति में लाने की शक्ति एवं बुद्धी दो’, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना !’
– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरूजी), पनवेल