‘विद्यार्थी मित्रो, अब अपकी परीक्षाएं समाप्त होकर छुट्टी आरंभ हुई है । छुट्टी अपने व्यक्तित्त्व को सुंदर आकार देनेवाली एवं नए-नए कलाकौशल सीखने की मुक्त पाठशाला ही है । इस छुट्टी में मस्ती करनी ही है; परंतु साथ में नई कलाएं भी सीखनी हैं । ‘स्वयं में किन गुणों की न्यूनता है’ (किन गुणों का अभाव है,), इसका अभ्यास कर उन गुणों की प्रगति करने हेतु यह छुट्टी हमारे लिए ईश्वर की ओर से प्रदान की गई एक अमूल्य संधि है । जो निरंतर सीखने की स्थिति में रहता है, उसे ‘विद्यार्थी’ कहते हैं । कौन से रिश्तेदारों के पास सीखने के कौन-कौन से साधन हैं, उनके पास जाकर हम क्या सीख सकते हैं, इसका हमें अभ्यास करना चाहिए, उदा. मामा के पास संगणक है, तो वहां जाकर टंकलेखन, साथ ही अच्छे संस्कार डालनेवाले संगणकीय संकेतस्थल कैसे खोलना, यह सीख सकते हैं । ‘यह छुट्टी आनंद में व्यतीत करनी चाहिए’, क्या आपको भी ऐसा ही प्रतीत होता है ? तो मित्रो, सीखने में ही वास्तविक आनंद है ।
शारीरिक दृष्टि से उन्नति हो इस दृष्टि से करने हेतु कुछ कृत्य
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१ अ. आखाडे के खेल खेलना : खो-खो, कबड्डी तथा लंगडी जैसे खेल खेलने चाहिए । उससे व्यायाम होकर शरीर निरोगी एवं स्वस्थ रहता है ।
१ अ १. आत्मसात किए जानेवाले गुण : संगभावना, तत्परता, प्रतिनिधित्व करना, अन्यों का विचार करना, निर्णयक्षमता में उन्नति, अन्यों की बातें सुनना इत्यादि
१ आ. सूर्यनमस्कार करना : शरीर सक्षम होने हेतु प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने चाहिए ।
१ इ. संगणक के खेल नहीं खेलना ! : कुछ विद्यार्थी प्रत्यक्ष खेल न खेलकर संगणकपर विकृत खेल खेलना पंसद करते हैं । मित्रो, ऐसा नहीं करें । इससे शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से अपनी ही हानि होती है ।
१ इ १.शरीर में आनेवाले दुर्गुण : शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता, शारीरिक व्यायाम का अभाव, संकोची वृत्ति ।
मानसिक प्रगति होने के लिए करने योग्य कृत्य
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मित्रो, हम जैसे पढते हैं, वैसे हमारे विचार होते हैं एवं हमारे विचार के अनुसार वैसे ही कृत्य हमारी ओर से होते हैं; अत एव अच्छे विचार आने के लिए अच्छे ग्रंथ एवं पुस्तकों का पठन करना आवश्यक है ।
राष्ट्र एवं धर्म के विषय समाविष्ट होनेवाली पुस्तकें एवं ग्रंथों का पठन करें ।
२ अ १. देवीदेवता एवं संत : श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्री गणपति, श्री सरस्वती इत्यादि, साथ ही संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम महाराज, संत सखुबाई, भक्त प्रल्हाद इत्यादिपर प्रस्तुत किए गए ग्रंथों का पठन करें ।
२ अ २. वीर राजा : छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज इत्यादि ।
२ अ ३. क्रांतिकारी : भगतसिंग, राजगुरु, सुखदेव, वीर सावरकर, झांसीकी रानी इत्यादि ।
२ अ ४. सनातन की बालसंस्कार ग्रंथमालिका : ‘सुसंस्कार एवं अच्छे आचरण के कृत्य’, ‘दोष दूर करें एवं गुणकी वृद्धि करें’, ‘अभ्यास करने की पद्धति ?’ सनातन संस्थाद्वारा प्रकाशित किए गए उपरोक्त ग्रंथों का पठन करें ।
काल्पनिक कथाएं नहीं पढें !
मित्रो, ‘समय बीत जाए’, इसलिए कुछ ना कुछ पढना है; अत एव आप काल्पनिक कथाएं पठन करते हैं । वास्तव में जिन्होंने आदर्श जीवन जीकर हमारे सामने उसके उदाहरण रखे हैं, उनकी कथाएं ही हमें पठन करनी चाहिए । काल्पनिक अर्थात जिसे वास्तविकता का कोई भी आधार नहीं है । मित्रो, क्या हमें इससे चैतन्य एवं आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा कभी भी प्राप्त होगी ? तो मित्रो, आप ‘टॉम ऐंड जेरी’ जैसी काल्पनिक कथाएं पठन करेंगे कि वास्तविक एवं प्रेरणा देनेवाली कथाएं ?
इस छुट्टी में देवीदेवता, संत, राजा, साथ ही क्रांतिकारियों की कथाएं पढें, तो ही हमारे व्यक्तित्त्व का विकास होगा । इसलिए आप balsanskar.com नामक संकेतस्थल का उपयोग करें । इस संकेतस्थलपर आपको अनेक कथाएं पढने के लिए प्राप्त होंगी ।
धारिका एवं ध्वनिचित्र-चक्रिका देखें
१. ‘स्टार उत्सव’ नामक दूरचित्रवाहिनीपर श्रीकृष्ण तथा रामायण की धारिका देखें ।
२. संत ज्ञानेश्वर एवं क्रांतिकारियों के जीवनपर आधारित चित्रपटों की ध्वनिचित्र-चक्रिकाएं लेकर हम घर में भी देख सकते हैं ।
३. कार्टून, हत्या एवं मारपीट के विषयोंपर होनेवाले विकृत चित्रपट नहीं देखे ।
चित्रों में रंग भरना
मित्रो, छुट्टी होने के कारण समय व्यतीत होना चाहिए, अत एव कार्टून, साथ ही मनद्वारा काल्पनिक चित्र आप निकालते हैं, उसकी अपेक्षा सात्त्विक चित्र निकालकर निम्नलिखित विषय के अनुसार चित्रों में रंग भरें । कार्टून में देवता एवं संतों के चित्रों में रंग नहीं भरें ।
२ ई १. देवता : श्री गणपति, श्रीराम, हनुमान, श्रीकृष्ण, दत्त, शिव, दुर्गादेवी एवं लक्ष्मी
२ ई २. भक्ति जागृत करनेवाले : संत तुकाराम महाराज, संत ज्ञानेश्वर, संत मीराबाई, संत गोरा कुंभार तथा संत तुकडोजी महाराज
२ ई ३. राष्ट्रप्रेम जागृत करनेवाले : भगतसिंह, झांसी की रानी एवं शिवाजी महाराज
२ ई ४. उत्सव : गणेशोत्सव, दीपावली एवं रंगपंचमी
स्तोत्र एवं श्लोक पठन करना
रामरक्षा, हनुमान स्तोत्र, संकटनाशन स्तोत्र एवं मन के श्लोक इत्यादि का पठन करने से वाणी शुद्ध होना, उच्चारण में सुधार होना, पठन का स्वभाव बनना इत्यादि लाभ होते हैं ।
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प्रार्थना
‘हे श्रीकृष्णा, स्वयं में सदगुण लाने हेतु इस छुट्टी का उपयोग करने की क्षमता हमें प्रदान करें । हमें अपने दोषों का ज्ञान होकर आपको प्रत्याशित/अपेक्षित ऐसा ही प्रत्येक कृत्य करने की प्रेरणा हमें दें । उपर्युक्त प्रत्येक सूत्र हमारे आचरण में आने की बुद्धि दें, आपके चरणों में ऐसी ही विनम्र प्रार्थना है!’
– श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी),पनवेल
माता-पिताजी को उनके कार्य में सहायता कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की संधि का लाभ प्राप्त करना
‘हमारे माता-पिता पूरे वर्ष पाठशाला एवं पढाई करने में हमारी सहायता करते रहते हैं । मां अपने सारे गृहकार्य संभालकर हमें दोपहर का भोजन तैयार कर देना, जलपान (नाश्ता) बनाना, अभ्यास लेना इत्यादि द्वारा सहायता करती हैं । छुट्टी में हमें भी मां को उनके कार्यों में सहायता करनी चाहिए । जो माता-पिता हमारे ऊपर अनंत उपकार करते हैं, उनके प्रति हम आस्था दिखाएं, तो ही उनके प्रति कुछ अंश में हमारी कृतज्ञता व्यक्त होगी ।’
– श्रीमती सई अमरे, मुंबई